(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
चर्चा में क्यों
22 मई, 2025 को एक ऐतिहासिक समझौते के तहत यूनाइटेड किंगडम ने चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंपने की घोषणा की है। इस समझौते से हिंद महासागर द्वीपसमूह पर ब्रिटिश प्रशासन के दशकों पुराने शासन का अंत हो गया है जो वर्ष 1965 में मॉरीशस से द्वीपों के अलग होने के बाद से चल रहे कानूनी व कूटनीतिक विवादों का विषय रहा है।
समझौते के प्रमुख प्रावधान
- संप्रभुता का स्थानांतरण : ब्रिटेन ने आधिकारिक रूप से चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस की संप्रभुता स्वीकार कर ली है।
- इसे औपनिवेशिक विघटन की प्रक्रिया की पूर्णता के रूप में देखा जा रहा है।
- डिएगो गार्सिया का विशेष प्रावधान : डिएगो गार्सिया पर अमेरिका का एक प्रमुख सैन्य अड्डा स्थित है जो अफ्रीका, मध्य एशिया एवं एशिया के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- समझौते के तहत मॉरीशस को संप्रभुता प्राप्त होगी किंतु ब्रिटेन एवं अमेरिका डिएगो गार्सिया स्थित रणनीतिक सैन्य अड्डे का संयुक्त उपयोग 99 वर्षों की प्रारंभिक अवधि के लिए करेंगे तथा मॉरीशस को इसके लिए प्रति वर्ष 136 मिलियन डॉलर प्राप्त होंगे।
चागोस द्वीपसमूह के बारे में

- प्रमुख द्वीप : चागोस द्वीपसमूह के सबसे बड़े एटॉल दक्षिण-पूर्व में स्थित डिएगो गार्सिया तथा उत्तर में स्थित पेरोस बानहोस व सॉलोमन द्वीप हैं।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : वर्ष 1965 में ब्रिटेन ने इस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग कर दिया और इसे ब्रिटिश इंडियन ओशियन टेरिटरी (BIOT) घोषित कर दिया। इसके कुछ समय बाद इस द्वीप के मूल निवासियों को जबरन बाहर निकाल दिया गया और डिएगो गार्सिया पर अमेरिका ने सैन्य अड्डा स्थापित किया।
- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका
- वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने अपने परामर्शात्मक मत में कहा कि ब्रिटेन ने चागोस द्वीपसमूह को अवैध रूप से अलग किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी ब्रिटेन से इसे मॉरीशस को लौटाने की अपील की थी।
क्षेत्रीय प्रभाव और भारत के लिए निहितार्थ
- हिंद महासागर में शक्ति संतुलन
- मॉरीशस के साथ भारत की मजबूत साझेदारी के चलते यह घटनाक्रम भारत के लिए कूटनीतिक सफलता है।
- यह चीन जैसे बाहरी प्रभावों के मुकाबले स्थानीय सहयोगियों के साथ जुड़ाव को मजबूती देता है।
- सागर नीति एवं भारत की समुद्री दृष्टि
- भारत की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region: SAGAR) नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा एवं सहयोग को बढ़ावा देना है।
- इस संदर्भ में चागोस विवाद का समाधान समुद्री शांति, स्थिरता व समृद्धि को मजबूत करता है।
- भारत-मॉरीशस संबंधों को बढ़ावा : दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, भाषायी, ऐतिहासिक एवं आर्थिक संबंध प्रगाढ़ हैं। यह घटनाक्रम द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा एवं रणनीतिक गहराई प्रदान करता है।
निष्कर्ष
चागोस द्वीपसमूह का मॉरीशस को पुनः हस्तांतरण केवल एक क्षेत्रीय भू-राजनीतिक घटना नहीं है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय न्याय, उपनिवेशवाद से मुक्ति और वैश्विक कानूनों के पालन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। भारत का समर्थन इस प्रक्रिया में उसकी स्थायी विदेश नीति सिद्धांतों की पुष्टि करता है और हिंद महासागर में स्थायित्व के लिए भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।