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सेबी द्वारा न्यूनतम शेयरधारिता मानदंडों में बदलाव

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।निवेश मॉडल)

संदर्भ

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India: SEBI) ने भारत के तेज़ी से बढ़ते पूंजी बाजार को देखते हुए सूचीबद्ध कंपनियों के लिए न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (Minimum Public Shareholding: MPS) और न्यूनतम सार्वजनिक निर्गम (Minimum Public Offer: MPO) नियमों को आसान बनाने का प्रस्ताव दिया है।

सेबी द्वारा मानदंडों में हालिया परिवर्तन 

  • वर्तमान नियम: सूचीबद्ध कंपनियों को सूचीबद्ध होने के तीन वर्षों के भीतर कम से कम 25% सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखनी होगी।
  • प्रस्तावित परिवर्तन: सेबी बड़ी कंपनियों को धीरे-धीरे एम.पी.एस. हासिल करने के लिए अधिक लचीली समय-सीमा और छूट प्रदान कर सकता है।
  • निर्गम के बाद बाजार पूंजीकरण (एम-कैप) के लिए सीमा में निम्न परिवर्तन किया है : 
    • 4,000 करोड़ रुपए से 50,000 करोड़ रुपए  
    • 50,000 करोड़ रुपए से 1 लाख करोड़ रुपए  
    • 1,00,000 करोड़ रुपए से 5 लाख करोड़ रुपए  
    • 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक 
  • वर्तमान में यह सीमा 4,000 करोड़ रुपए, 1 लाख करोड़ रुपए और 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक है।
  • 50,000 करोड़ रुपए से अधिक किंतु 1,00,000 करोड़ रुपए से कम या उसके बराबर के पोस्ट-इश्यू मार्केट कैप वाले जारीकर्ताओं के लिए 25% एम.पी.एस. की आवश्यकता के अनुपालन की समय-सीमा को लिस्टिंग की तारीख से मौजूदा 3 वर्षों से बढ़ाकर 5 वर्ष करने का प्रस्ताव है।
    • इससे पूर्व 15% शेयरधारिता प्राप्त करने के लिए यह समय सीमा पाँच वर्ष और लिस्टिंग के बाद 25% एम.पी.एस. प्राप्त करने के लिए 10 वर्ष निर्धारित करने का प्रस्ताव था।
  • प्रतिभूति अनुबंध विनियमन नियमों के अनुसार, मौजूदा नियमों के तहत 1,00,000 करोड़ रुपए से अधिक के पोस्ट इश्यू मार्केट कैप वाले जारीकर्ताओं को 5,000 करोड़ रुपए का एम.पी.ओ. और पोस्ट इश्यू शेयर पूंजी का कम से कम 5% सुनिश्चित करना आवश्यक है। 
  • इसके अतिरिक्त उन्हें लिस्टिंग की तारीख से 2 वर्ष के भीतर अपनी सार्वजनिक शेयरधारिता को कम से कम 10% तक और लिस्टिंग की तारीख से 5 साल के भीतर न्यूनतम 25% तक बढ़ाना अनिवार्य है। 

न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता

  • यह किसी सूचीबद्ध कंपनी में शेयरों का वह न्यूनतम अनुपात जो जनता (गैर-प्रवर्तक निवेशकों) के पास होना चाहिए।
  • इसका उद्देश्य बाज़ार में तरलता, व्यापक स्वामित्व और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।

न्यूनतम सार्वजनिक निर्गम

  • यह शेयरों का वह न्यूनतम प्रतिशत है जो किसी कंपनी को आरंभिक सार्वजनिक पेशकश के समय जनता को पेश करना होता है।
  • यह व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करता है और सूचीबद्ध कंपनियों में प्रवर्तकों के अत्यधिक नियंत्रण को रोकता है।

मानदंडों में परिवर्तन कारण

  • बड़े आई.पी.ओ. और मेगा लिस्टिंग में वृद्धि
  • यह सुनिश्चित करना कि प्रमोटरों को अचानक शेयरों को बेचने के लिए मजबूर न किया जाए।
  • बाजार में स्थिरता और निवेशकों का विश्वास बनाए रखना

बाजारों पर प्रभाव

  • अधिक कंपनियों को भारत में सूचीबद्ध होने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
  • वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में भारत को आकर्षक गंतव्य के रूप में बढ़ावा देता है।
  • व्यापार सुगमता के साथ नियामक अनुपालन को संतुलित करता है।

निष्कर्ष

सेबी का यह कदम नियामक मानदंडों को एक विस्तारित बाजार की वास्तविकताओं के साथ संरेखित करने का प्रयास करता है, जिससे निवेशक सुरक्षा और बाजार की वृद्धि दोनों सुनिश्चित होती है।

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