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मौद्रिक नीति में परिवर्तन एवं इसके प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक आर्थिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2025 में अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में मौद्रिक नीति को संशोधित किया है।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति में परिवर्तन

रेपो दर में कटौती

  • परिवर्तन : आर.बी.आई. ने रेपो दर को 25 आधार अंक घटाकर 6.25% से 6% कर दिया है।
    • रेपो दर वह दर होती है जिस पर आर.बी.आई. वाणिज्यिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है। जब रेपो दर घटती है तो बैंकों को सस्ता ऋण मिलता है, जिससे उधार देने की क्षमता एवं निवेश को बढ़ावा मिलता है।
  • उद्देश्य : इस निर्णय का उद्देश्य देश की अर्थव्यवस्था में विकास को प्रोत्साहित करना और मुद्रास्फीति को निर्धारित लक्ष्य सीमा के अंदर रखना है।
  • कारण : वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता, कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने के बावजूद भारत के आर्थिक संकेतक आशाजनक हैं, जिससे आर.बी.आई. ने यह कदम उठाया।

तरलता समायोजन सुविधा (LAF)

    • इसके तहत स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर को 5.75% पर समायोजित किया गया।
    • मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) दर और बैंक दर को बढ़ाकर 6.25% कर दिया गया है।

मुद्रास्फीति लक्ष्य

मौद्रिक नीति समिति का उद्देश्य सी.पी.आई. मुद्रास्फीति को 4% (±2%) तक बनाए रखना है।

जी.डी.पी. एवं मुद्रास्फीति के अनुमान

  • आर.बी.आई. ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जी.डी.पी. वृद्धि का अनुमान 6.5% रखा है।
  • यह पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा कम है किंतु फिर भी आर्थिक सुधार की उम्मीद है।
  • मुद्रास्फीति के अनुमान में भी सुधार हुआ है और इसे 4% के आसपास रहने की संभावना जताई गई है जो विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण संभव हो सकता है।

मौद्रिक नीति के प्रभाव

  • उधारी एवं निवेश में वृद्धि : जब रेपो दर घटती है तो बैंकों के लिए उधार देना सस्ता हो जाता है। इसका तात्पर्य है कि ब्याज दरों में गिरावट से घरेलू निवेश एवं उधारी बढ़ेगी। इससे व्यावसायिक गतिविधियाँ एवं उपभोक्ता व्यय बढ़ सकते हैं जो अर्थव्यवस्था को गति देंगे।
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण : मौद्रिक नीति समिति का प्रमुख उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है। खाद्य मुद्रास्फीति में कमी और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण से मुद्रास्फीति में स्थिरता आ सकती है।
  • बैंकिंग क्षेत्र में सुधार : बैंकिंग प्रणाली में तरलता की स्थिति में सुधार होगा, जिससे बैंकों को अधिक ऋण देने और निवेश के लिए पूँजी उपलब्ध होगी। ब्याज दरों में नरमी का परिणाम ऋण बाजार के लिए सकारात्मक हो सकता है जिससे कंपनियों को सस्ता वित्तपोषण मिलेगा।
  • ग्रामीण माँग एवं कृषि क्षेत्र पर प्रभाव : कृषि क्षेत्र में रबी फसल के अच्छे उत्पादन और समान मानसून के कारण ग्रामीण मांग में सुधार हो सकता है। इससे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन मिल सकता है जिसकी गति पिछले कुछ समय से धीमी थी।
  • वैश्विक अनिश्चितताएँ : हालाँकि, भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं किंतु वैश्विक अनिश्चितताएँ (जैसे- व्यापारिक तनाव, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव एवं वैश्विक मुद्रास्फीति) से जोखिम बना हुआ है। इन कारकों से घरेलू विकास दर प्रभावित हो सकती है।

वित्तीय स्थिति और बाह्य आर्थिक प्रभाव

  • विदेशी मुद्रा भंडार : आर.बी.आई. के पास लगभग 676.3 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है जो लगभग 11 महीने के आयात कवर के बराबर है।
    • यह स्थिति भारत को बाह्य वित्तीय अस्थिरता से बचाती है और चालू खाता घाटा को नियंत्रित करने में मदद करती है।
  • विदेशी निवेश : भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी निवेश प्रवाह में वृद्धि का अनुमान जताया है, विशेष रूप से संचयी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के माध्यम से।
    • हालाँकि, उच्च प्रत्यावर्तन (Reversion) एवं बाहरी निवेश में कुछ कमी देखी जा सकती है किंतु ऋण प्रवाह में सुधार हुआ है।

निष्कर्ष

भारतीय रिज़र्व बैंक का यह कदम न केवल विकास को बढ़ावा देने में मदद करेगा बल्कि मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के साथ-साथ बैंकों के लिए एक स्थिर एवं सुरक्षित वातावरण भी प्रदान करेगा।

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