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कृत्रिम हीरा ग्रेडिंग प्रणाली में परिवर्तन

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

विश्व की अग्रणी रत्न विज्ञान संस्था जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका (GIA) ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2025 के अंत से प्रयोगशाला में बनाए गए हीरे की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए अपनी पारंपरिक 4C प्रणाली के स्थान पर सरल वर्णनात्मक शब्दों जैसे प्रीमियम एवं स्टैंडर्ड का उपयोग करेगी।

हीरे के बारे में

  • क्या है : यह कार्बन (रासायनिक तत्व- C) का एक शुद्ध क्रिस्टलीय रूप (नियमित परमाणु संरचना) है।

  • इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
    • रासायनिक संरचना : हीरा शुद्ध कार्बन से बना होता है, जिसमें कार्बन परमाणु एक त्रि-आयामी टेट्राहेड्रल संरचना (चार कोणों वाली ज्यामितीय व्यवस्था) में व्यवस्थित होते हैं।
    • क्रिस्टल सिस्टम : हीरा एक सममित क्रिस्टल संरचना में बनता है जो इसकी चमक एवं मजबूती का कारण है।
    • कठोरता : मोह्स पैमाने (Mohs Scale: खनिजों की कठोरता मापने का पैमाना) पर हीरे की कठोरता 10 है जो इसे सबसे कठोर प्राकृतिक पदार्थ बनाता है।
    • अशुद्धियां : प्राकृतिक हीरों में नाइट्रोजन या बोरॉन जैसे तत्वों की अशुद्धियां हो सकती हैं जो उनके रंग को प्रभावित करती हैं, जैसे- नीला या पीला हीरा।
  • अनुप्रयोग : आभूषण निर्माण, औद्योगिक उपयोग, कटिंग एवं ड्रिलिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स (सेमीकंडक्टर, संचार), चिकित्सा (सर्जिकल उपकरण व लेजर तकनीक), वैज्ञानिक अनुसंधान (जैसे- क्वांटम कंप्यूटिंग) में

कृत्रिम हीरा ग्रेडिंग प्रणाली में परिवर्तन के बारे में

वर्तमान ग्रेडिंग प्रणाली

  • परिचय : GIA ने वर्ष 1953 में 4C प्रणाली (4Cs: Cut, Color, Clarity, Carat Weight) विकसित की थी, जो हीरा गुणवत्ता मूल्यांकन का वैश्विक मानक बन गई। 
  • इसके चार घटक हैं:
    • कट (Cut- हीरे की तराश एवं आकार): यह हीरे की चमक एवं सौंदर्य को प्रभावित करता है।
    • रंग (Color- हीरे का रंग, D से Z तक): D सबसे रंगहीन एवं सबसे मूल्यवान होता है।
    • स्पष्टता (Clarity- हीरे की शुद्धता): इसमें हीरे के अंदर की अशुद्धियां या दोष (Inclusions- आंतरिक दोष) मापे जाते हैं।
    • कैरेट वजन (Carat Weight- हीरे का वजन): यह हीरे का आकार एवं वजन दर्शाता है।
  • यह प्रणाली प्राकृतिक हीरों की दुर्लभता और मूल्य को दर्शाने के लिए बनाई गई थी।
  • हालाँकि, प्रयोगशाला में कुछ हफ्तों में निर्मित लैब-निर्मित हीरे के लिए यह प्रणाली भ्रम पैदा कर सकती है।

GIA का नया ग्रेडिंग दृष्टिकोण

  • GIA अब लैब-निर्मित हीरों के लिए 4C प्रणाली के बजाय सरल वर्णनात्मक शब्दों का उपयोग करेगी:
    • प्रीमियम (Premium- उच्च गुणवत्ता): रंग, स्पष्टता और फिनिश (सतह की चमक) में बेहतर हीरे
    • स्टैंडर्ड (Standard- सामान्य गुणवत्ता): मध्यम गुणवत्ता वाले हीरे
    • शून्य ग्रेड : यदि हीरे की गुणवत्ता न्यूनतम मानक से कम है तो उसे कोई ग्रेड नहीं दिया जाएगा।
  • GIA के अनुसार, लैब-निर्मित हीरों का 95% से अधिक हिस्सा रंग व स्पष्टता के एक सीमित दायरे में आता है, इसलिए 4C प्रणाली उनके लिए उपयुक्त नहीं है। 

लैब-निर्मित हीरों की उत्पादन तकनीक के बारे में

  • HPHT (High Pressure High Temperature): प्राकृतिक हीरे की तरह उच्च दाब एवं तापमान में कार्बन को क्रिस्टल में परिवर्तित करना।
  • CVD (Chemical Vapor Deposition): कार्बन गैस को एक सब्सट्रेट पर जमा करके हीरा बनाना। 

बदलाव का कारण

  • पारदर्शिता : प्राकृतिक एवं लैब-निर्मित हीरों के बीच अंतर स्पष्ट करना, ताकि उपभोक्ता भ्रमित न हों।
  • प्राकृतिक हीरों की विशिष्टता : प्राकृतिक हीरे अरबों वर्षों में बनते हैं और इनका भावनात्मक मूल्य लैब-निर्मित हीरों से अलग है।
  • उपभोक्ता विश्वास : नई प्रणाली उपभोक्ताओं को सूचित निर्णय लेने में मदद करेगी।

चुनौतियाँ

  • उद्योग समायोजन : हीरा व्यापारियों एवं जौहरियों को नई प्रणाली के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
  • उपभोक्ता स्वीकृति : 4C प्रणाली से परिचित उपभोक्ताओं को नई प्रणाली समझने में समय लग सकता है।
  • वैश्विक समन्वय : अन्य रत्न विज्ञान संस्थानों को भी इस प्रणाली को अपनाने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वैश्विक स्तर पर एकरूपता बनी रहे।

आगे की राह

  • उपभोक्ता शिक्षा : भारत जैसे बाजारों में हीरे का सांस्कृतिक एवं भावनात्मक महत्व होता है, इसलिए उपभोक्ताओं को नई प्रणाली के बारे में जागरूक करना आवश्यक है।
  • वैश्विक मानकीकरण : GIA की नई प्रणाली को वैश्विक स्तर पर अपनाने के लिए अन्य रत्न विज्ञान संस्थानों के साथ सहयोग करना होगा।
  • लैब-निर्मित हीरों का विकास : लैब-निर्मित हीरे पर्यावरण-अनुकूल एवं सस्ते होते हैं। नई प्रणाली उनके बाजार को अधिक बढ़ा सकती है, विशेष रूप से युवा उपभोक्ताओं में।
  • तकनीकी नवाचार : लैब-निर्मित हीरों की पहचान एवं मूल्यांकन के लिए नई तकनीकों (जैसे- उन्नत स्पेक्ट्रोस्कोपी) का विकास किया जा सकता है।

भारत की भूमिका

  • भारत हीरा कटिंग एवं पॉलिशिंग में अग्रणी केंद्र है और इस बदलाव का लाभ उठाकर अपने निर्यात को बढ़ा सकता है। 
  • सरकार एवं GJEPC आत्मनिर्भर भारत व मेक इन इंडिया जैसे पहलों के तहत इस क्षेत्र को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

विश्व में प्रमुख हीरा उत्पादक देश

  • रूस : लगभग 40% वैश्विक उत्पादन के साथ विश्व का सबसे बड़ा हीरा उत्पादक 
    • प्रमुख खान : मिर एवं उडाचनाया
  • बोत्सवाना : विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, उच्च गुणवत्ता वाले हीरे
  • प्रमुख खान : ज्वानेन्ग (विश्व की सबसे मूल्यवान हीरा खान) एवं ओरापा
  • कनाडा : उत्तरी क्षेत्रों में नई खानों के साथ उत्पादन में तीव्र वृद्धि
    • प्रमुख खान : डायविक एवं एकाटी
  • दक्षिण अफ्रीका : ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण और अब भी शीर्ष उत्पादकों में शामिल
  • प्रमुख खान : किम्बरली एवं वेनेटिया
  • ऑस्ट्रेलिया : रंगीन हीरों (जैसे- गुलाबी व पीले) के लिए प्रसिद्ध
  • प्रमुख खानें : आर्गाइल (गुलाबी हीरों की सबसे बड़ी खान)
  • अन्य देश : कांगो गणराज्य, जिम्बाब्वे एवं अंगोला भी उल्लेखनीय उत्पादन होता है।
  • भारत का योगदान
    • भारत में प्राकृतिक हीरों का खनन सीमित है (मुख्यत: मध्य प्रदेश के पन्ना क्षेत्र में) किंतु भारत हीरे की कटिंग एवं पॉलिशिंग में वैश्विक नेतृत्वकर्ता है। 
    • सूरत (गुजरात) विश्व का सबसे बड़ा हीरा कटिंग एवं व्यापार केंद्र है।
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