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चीन का विदेशों में पुलिसिंग नेटवर्क: एक गहन विश्लेषण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

चीन ने अपनी पुलिसिंग गतिविधियों को विदेशों में विस्तारित किया है जिसके तहत वह कई देशों में संयुक्त गश्त और पुलिस सेवा केंद्र स्थापित कर रहा है। यह कदम वर्ष 2014 में शुरू हुए ऑपरेशन ‘फॉक्स हंट’ और वर्ष 2015 के ‘स्काई नेट’ के तहत उठाया गया है।

चीन का विदेशों में पुलिसिंग नेटवर्क

  • संयुक्त गश्त : वर्ष 2017 के चीन-क्रोएशिया पुलिस सहयोग समझौते के तहत चीन की पुलिस क्रोएशिया में संयुक्त गश्त कर रही है। 16 जुलाई, 2025 को चीन का आठ सदस्यीय पुलिस दल क्रोएशिया भेजा गया, जो छठी ऐसी गश्त थी।
  • पुलिस सेवा केंद्र : चीन ने विश्व भर में 50 से अधिक ‘पुलिस सेवा केंद्र’ स्थापित किए हैं जिन्हें वह प्रशासनिक सहायता के रूप में प्रस्तुत करता है किंतु इनका उपयोग असंतुष्ट तत्वों पर नजर रखने और दबाव डालने के लिए भी हो रहा है।
  • ऑपरेशन फॉक्स हंट और स्काई नेट : ये अभियान भ्रष्टाचार के आरोपित व्यक्तियों को वापस लाने के लिए शुरू किए गए किंतु इनका उपयोग राजनीतिक विद्रोहियों एवं आलोचकों को चुप कराने के लिए भी हो रहा है।

उद्देश्य

  • चीनी पर्यटकों की सुरक्षा : चीन का दावा है कि संयुक्त गश्त एवं सेवा केंद्र चीनी पर्यटकों और विदेश में रहने वाले चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए हैं। उदाहरण के लिए, क्रोएशिया में वर्ष 2024 में 2,50,000 चीनी पर्यटक आए जो पिछले वर्ष से 41% अधिक है।
  • भ्रष्टाचार विरोधी अभियान : ऑपरेशन फॉक्स हंट और स्काई नेट के तहत चीन भ्रष्टाचार के आरोपियों को वापस लाने का प्रयास करता है। वर्ष 2014 से 2023 तक 120 से अधिक देशों से 12,000 से अधिक लोग वापस लाए गए।
  • विरोधियों पर नियंत्रण : इन अभियानों का छिपा उद्देश्य विदेशों में रहने वाले चीन के विद्रोहियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं आलोचकों पर निगरानी रखना और उन्हें चुप कराना है, जिसे ‘ट्रांसनेशनल रिप्रेशन’ कहा जाता है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: ये गतिविधियाँ चीन को वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत करने और अन्य देशों पर प्रभाव डालने में मदद करती हैं।

क्या आप जानते हैं ?

ट्रांसनेशनल रिप्रेशन (Transnational Repression) का अर्थ है जब कोई सरकार अपने देश की सीमाओं के बाहर जाकर लोगों को डराने, धमकाने या नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती है, विशेषकर उन लोगों को जो उस देश के प्रवासी या शरणार्थी हैं। यह एक वैश्विक समस्या है और इसका मतलब है कि सरकारें अपने विरोधियों को चुप कराने या उन पर नियंत्रण पाने के लिए दूसरे देशों में भी कार्रवाई करती हैं।

शामिल देश

  • यूरोप : क्रोएशिया, सर्बिया, इटली, हंगरी, नीदरलैंड्स (एम्स्टर्डम और रॉटरडम में सेवा केंद्र), स्पेन, पुर्तगाल
  • एशिया : नेपाल, थाईलैंड, मंगोलिया, म्यांमार, कंबोडिया
  • अफ्रीका : मिस्र, केन्या, तंजानिया
  • उत्तरी अमेरिका : अमेरिका (न्यूयॉर्क में मैनहट्टन के चाइनाटाउन में एक सेवा केंद्र)
  • अन्य : विश्व भर में 53 देशों में 102 से अधिक पुलिस सेवा केंद्र स्थापित किए गए हैं।

अन्य देश कैसे निपट रहे हैं

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ने चीन की पुलिसिंग गतिविधियों को गंभीरता से लिया है। वर्ष 2023 में FBI ने न्यूयॉर्क में एक चीनी पुलिस सेवा केंद्र से जुड़े दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया, जिन पर चीन सरकार के एजेंट के रूप में काम करने और सबूत नष्ट करने का आरोप था। FBI ने ट्रांसनेशनल रिप्रेशन पर जागरूकता बढ़ाने के लिए वेबसाइट एवं बुलेटिन जारी किए हैं।
  • नीदरलैंड्स: वर्ष 2023 में एम्स्टर्डम और रॉटरडम में चीन के पुलिस सेवा केंद्रों की जानकारी के बाद डच सरकार ने इसकी जांच शुरू की।
  • इटली : चीन के सेवा केंद्रों से संबंधित चिंताओं के कारण इटली ने संयुक्त पुलिस गश्त को निलंबित कर दिया।
  • सर्बिया, क्रोएशिया, मंगोलिया : ये देश आर्थिक एवं सुरक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए चीन के साथ सहयोग कर रहे हैं और अभी तक कोई सार्वजनिक जांच शुरू नहीं की गई है।
  • तंजानिया : चीन के दूतावास और स्थानीय पुलिस ने दार-ए-सलाम में चीन के पुलिस स्टेशन की मौजूदगी से इनकार किया।

भू-राजनीतिक महत्व

  • वैश्विक प्रभाव : चीन की पुलिसिंग गतिविधियाँ उसके वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने का हिस्सा हैं, जिससे वह अन्य देशों की नीतियों और सुरक्षा व्यवस्थाओं पर प्रभाव डाल सकता है।
  • निगरानी एवं नियंत्रण : ये अभियान चीन को विदेशों में अपने नागरिकों और आलोचकों पर नजर रखने की अनुमति देते हैं, जिससे वह अपनी एकदलीय शासन व्यवस्था को वैश्विक स्तर पर लागू कर सकता है।
  • आर्थिक लाभ : संयुक्त गश्त और सेवा केंद्र उन देशों में चीन के पर्यटकों और निवेश को बढ़ावा देते हैं जो आर्थिक रूप से चीन पर निर्भर हैं।
  • नियंत्रण की रणनीति : ट्रांसनेशनल रिप्रेशन के माध्यम से चीन ने तिब्बती, उइगर, हांगकांग के लोकतंत्र समर्थकों और फालुन गॉन्ग जैसे समूहों को दबाने का प्रयास किया है जिससे उसकी वैश्विक छवि और आंतरिक स्थिरता पर असर पड़ता है।

भारत के लिए चुनौतियाँ

  • सीमा पर तनाव: वर्ष 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद नीदरलैंड्स में चीन के एक पुलिस सेवा केंद्र ने चीन एवं डच नागरिकता वाले एक व्यक्ति से संपर्क किया, जो इस संघर्ष पर सवाल उठा रहा था। इससे भारत के खिलाफ चीन की निगरानी की संभावना उजागर होती है।
  • जासूसी गतिविधियाँ: भारत में चीन के जासूसी के मामले सामने आए हैं, जैसे वर्ष 2020 में दिल्ली में तिब्बती समुदाय और दलाई लामा पर नजर रखने वाला चीन का एक नागरिक पकड़ा गया।
  • साइबर हमले: वर्ष 2021 में चीन के हैकरों ने भारत में कोवैक्सिन एवं कोविशील्ड इकाइयों पर हमला किया और बिजली इकाइयों को निशाना बनाकर राष्ट्रीय ब्लैकआउट की कोशिश की।
  • सीमा क्षेत्रों में खतरा: वर्ष 2024 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने भारत-नेपाल सीमा पर चीन के एक नागरिक को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया, जिसके पास भारतीय सैन्य संस्थानों की तस्वीरें थीं। 
  • आर्थिक और तकनीकी खतरा : चीन की राज्य सुरक्षा नीतियाँ कंपनियों को खुफिया कार्यों में सहयोग करने के लिए बाध्य करती हैं, जिससे भारत में चीन की तकनीक (जैसे- CCTV) से डाटा चोरी का जोखिम बढ़ता है।

आगे की राह

  • जागरूकता और निगरानी : भारत को अपनी खुफिया और साइबर सुरक्षा प्रणालियों को मजबूत करना चाहिए ताकि चीन की जासूसी एवं निगरानी गतिविधियों का पता लगाया जा सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ एवं अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर ट्रांसनेशनल रिप्रेशन के खिलाफ रणनीति बनानी चाहिए।
  • कानूनी कार्रवाई : चीन के पुलिस सेवा केंद्रों और जासूसी गतिविधियों की जांच के लिए विशेष टास्क फोर्स गठित किया जाए।
  • तकनीकी सुरक्षा : भारत को चीन की तकनीक पर निर्भरता कम करनी चाहिए और स्वदेशी साइबर सुरक्षा समाधानों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • सामुदायिक सुरक्षा : भारत में तिब्बती और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को चीन की निगरानी से बचाने के लिए विशेष सुरक्षा उपाय किए जाएं।
  • कूटनीतिक दबाव : भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन की ट्रांसनेशनल रिप्रेशन नीतियों की निंदा करनी चाहिए और इनके खिलाफ वैश्विक सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए।
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