(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने तिरुवनंतपुरम में एक सैन्य समारोह में युवाओं के लिए अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण की वकालत की। उन्होंने इसे अनुशासन, देशभक्ति एवं निस्वार्थपरकता जैसे मूल्यों को युवाओं में विकसित करने के लिए आवश्यक बताया।
अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण की अवधारणा
- अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण एक ऐसी नीति है जिसमें 18-25 वर्ष की आयु के युवाओं को कुछ महीनों से लेकर 1-3 वर्ष तक के लिए सैन्य प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होता है।
- यह प्रशिक्षण शारीरिक फिटनेस, हथियारों का उपयोग, आपदा प्रबंधन और नेतृत्व कौशल पर केंद्रित हो सकता है।
- भारत में यह विचार राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) एवं टेरिटोरियल आर्मी जैसे मौजूदा ढांचों को और विस्तार देने के रूप में देखा जा सकता है।
हालिया मुद्दे के बारे में
- अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण नीति लागू करने का तात्पर्य होगा कि देश के सभी युवाओं को एक निश्चित आयु में सैन्य प्रशिक्षण लेना अनिवार्य हो।
- भारत की विशाल युवा आबादी के लिए अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण की अवधारणा राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने, बेरोजगारी को कम करने और सामाजिक एकता को बढ़ाने के संभावित समाधान के रूप में देखी जा रही है।
- हालांकि, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लागत एवं सामाजिक प्रभाव जैसे मुद्दों को भी उठाता है।
पक्ष और विपक्ष में तर्क
पक्ष में तर्क
- नेतृत्व विकास : सैन्य प्रशिक्षण युवाओं में अनुशासन, समयबद्धता और नेतृत्व के गुण विकसित करता है। यह उन्हें चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।
- राष्ट्रीय एकता : विभिन्न सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के युवाओं को एक साथ लाकर यह प्रशिक्षण सामाजिक एकता एवं राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा : एक प्रशिक्षित रिजर्व बल देश को आपातकालीन स्थिति (जैसे- युद्ध या प्राकृतिक आपदा) में त्वरित प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाता है।
- रोजगार एवं कौशल : सैन्य प्रशिक्षण तकनीकी और व्यावसायिक कौशल प्रदान करता है जो रोजगार के अवसरों को बढ़ा सकता है।
- देशभक्ति और नागरिक जिम्मेदारी : यह युवाओं में देश के प्रति निष्ठा एवं सामाजिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाता है।
विपक्ष में तर्क
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन : अनिवार्य प्रशिक्षण व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित करता है क्योंकि सभी युवा सैन्य जीवन के लिए इच्छुक या उपयुक्त नहीं हो सकते हैं।
- आर्थिक बोझ : बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम लागत-गहन हैं। प्रशिक्षण केंद्र, उपकरण और प्रशिक्षकों की आवश्यकता सरकारी बजट पर दबाव डाल सकती है।
- सामाजिक असमानता : धनी एवं प्रभावशाली लोग छूट प्राप्त कर सकते हैं, जिससे निम्न और मध्यम वर्ग के युवाओं पर अनुचित बोझ पड़ सकता है।
- शिक्षा और करियर में व्यवधान : प्रशिक्षण की अवधि युवाओं की शिक्षा या करियर की शुरुआत में बाधा डाल सकती है।
- नैतिक और वैचारिक आपत्तियाँ : कुछ युवा हिंसा या सैन्य गतिविधियों के प्रति नैतिक या धार्मिक आपत्तियां रख सकते हैं, जैसे कि शांतिवादी।
अन्य देशों के उदाहरण
- इज़राइल: यहाँ पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा है। इससे उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा और अनुशासन मजबूत हुआ है।
- दक्षिण कोरिया: हर युवा पुरुष को सेना में सेवा करनी होती है। यह उनके देशभक्ति भाव को मजबूत करता है।
- स्विट्ज़रलैंड: यहाँ भी नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य है और समय-समय पर रिजर्व फोर्स में शामिल किया जाता है।
चिंताएं और चुनौतियां
- आर्थिक लागत: प्रशिक्षण केंद्रों, उपकरणों और प्रशिक्षकों की लागत।
- सामाजिक असमानता: छूट या भ्रष्टाचार के कारण धनी वर्ग के लिए अनुचित लाभ।
- नैतिक विरोध : हिंसा को अस्वीकार करने वाले शांतिवादी या धार्मिक समूहों का विरोध
- शिक्षा में व्यवधान : प्रशिक्षण की अवधि से युवाओं की शिक्षा या प्रारंभिक करियर पर प्रभाव
- प्रशिक्षण की गुणवत्ता : बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण में गुणवत्ता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण
सरकार को क्या करना चाहिए
- पायलट प्रोजेक्ट: छोटे स्तर पर अनिवार्य प्रशिक्षण शुरू करके इसके प्रभाव का मूल्यांकन करें।
- छूट और समावेशिता: धार्मिक, नैतिक या चिकित्सा आधार पर छूट के लिए स्पष्ट नीतियां बनाएं।
- आर्थिक सहायता: प्रशिक्षण के बाद रोजगार या शिक्षा के लिए प्रोत्साहन, जैसे छात्रवृत्ति या नौकरी की गारंटी।
- आधुनिक प्रशिक्षण: साइबर सुरक्षा, ड्रोन प्रौद्योगिकी और आपदा प्रबंधन जैसे आधुनिक कौशल शामिल करें।
- सामाजिक समावेश: सभी सामाजिक और आर्थिक समूहों के लिए निष्पक्ष नीतियां हों।
अन्य विकल्प
- स्वैच्छिक सैन्य प्रशिक्षण: NCC और टेरिटोरियल आर्मी जैसे स्वैच्छिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- राष्ट्रीय सेवा: सैन्य प्रशिक्षण के बजाय नागरिक सेवा, जैसे- सामुदायिक विकास, पर्यावरण संरक्षण या आपदा प्रबंधन में सेवा।
- स्कूलों में प्रशिक्षण: स्कूल और कॉलेज स्तर पर बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल करना।
- रोजगार-उन्मुख प्रशिक्षण: सैन्य प्रशिक्षण को तकनीकी और व्यावसायिक कौशल के साथ जोड़ना।
- सामाजिक सेवा मॉडल: नाइजीरिया के नेशनल यूथ सर्विस कॉर्प्स की तरह गैर-सैन्य राष्ट्रीय सेवा।
निष्कर्ष
अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण को लागू करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सरकार को पहले पायलट प्रोजेक्ट शुरू करना चाहिए ताकि लागत, सामाजिक प्रभाव और प्रभावशीलता का आकलन हो सके। इज़राइल और सिंगापुर जैसे देशों के अनुभवों से सीखते हुए भारत को अपनी सांस्कृतिक व सामाजिक विविधता को ध्यान में रखकर नीति बनानी चाहिए।