(प्रारंभिक परीक्षा: लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय; केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय) |
संदर्भ
- भारत सरकार केंद्र एवं राज्य सरकार के संगठनों, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, विश्वविद्यालयों आदि में विभिन्न नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण में ‘क्रीमी लेयर’ की शर्त के अनुप्रयोग में ‘समतुल्यता’ सुनिश्चित करने के तरीकों पर विचार कर रही है।
- इसका उद्देश्य आरक्षण के पात्र उम्मीदवारों के बीच निष्पक्षता व एकरूपता सुनिश्चित करना और केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा वर्षों से जारी परिपत्रों से इस संबंध में उत्पन्न हुई कुछ विसंगतियों को दूर करना है।
क्रीमी लेयर की अवधारणा
इंद्रा साहनी वाद
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले के ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा है।
- हालाँकि, यह भी कहा कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संपन्न वर्ग, तथाकथित ‘क्रीमी लेयर’ को नौकरी के कोटे से बाहर रखा जाना चाहिए।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा निर्धारण
- 8 सितंबर, 1993 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें आय/संपत्ति परीक्षण का उल्लेख किए जाने के साथ ही उस क्रीमी लेयर की पहचान की गई जो ओ.बी.सी. आरक्षण के लिए अपात्र होगा। इसके तहत निम्नलिखित लोगों को शामिल किया गया :
- उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों, सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सशस्त्र बलों के अधिकारियों के पुत्र-पुत्रियों को इस सूची में शामिल किया गया था।
- पेशेवर वर्ग और व्यापार एवं उद्योग में संलग्न लोगों व संपत्ति मालिकों को भी इसके अंतर्गत शामिल किया गया।
- विशेष रूप से वह व्यक्ति, जिसके माता-पिता में से कोई भी समूह ए/क्लास I सरकारी नौकरी में सीधी भर्ती से आया हो, या यदि माता-पिता को 40 वर्ष की आयु से पहले समूह ए में पदोन्नत किया गया हो, ओ.बी.सी. कोटे के लिए पात्र नहीं था।
- वह व्यक्ति जिसके माता-पिता दोनों समूह बी की नौकरियों में सीधी भर्ती से आए हों, क्रीमी लेयर का हिस्सा होगा।
- केवल लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक के सशस्त्र बलों के अधिकारियों की संतान ही इस कोटे का लाभ उठा सकते थे।
- सरकारी क्षेत्र से बाहर कार्यरत लोगों के लिए आय सीमा 1 लाख रुपए प्रति वर्ष निर्धारित की गई थी।
- बाद में इसे संशोधित कर वर्ष 2017 से 8 लाख रुपए कर दिया गया। हालाँकि, कृषि आय को इसमें शामिल नहीं किया गया।
वर्ष 2004 में पुनर्निर्धारण
- 14 अक्तूबर, 2004 को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने ‘अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच क्रीमी लेयर के संबंध में विस्तृत स्पष्टीकरण’ जारी किया।
- ताकि ऐसे संगठनों में कार्यरत व्यक्तियों के पुत्रों व पुत्रियों की क्रीमी लेयर स्थिति का निर्धारण किया जा सके जहाँ सरकारी पदों के साथ पदों की समतुल्यता या तुलना का मूल्यांकन नहीं किया गया है।
- इसके तहत यह निर्धारित किया गया कि:
- माता-पिता की वेतन और अन्य स्रोतों से आय अलग-अलग निर्धारित की जाती है।
- यदि माता-पिता की वेतन से आय या अन्य स्रोतों से आय लगातार तीन वर्षों तक 2.5 लाख रुपए प्रति वर्ष से अधिक हो, तो ऐसे व्यक्तियों के पुत्र व पुत्रियों को क्रीमी लेयर में माना जाएगा।
- वर्ष 2014 के अंत में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने वर्ष 2004 के ‘स्पष्टीकरण’ के अनुपालन का निर्धारण करने के लिए विभिन्न प्राधिकारियों द्वारा जारी जाति-प्रमाणपत्रों की जाँच शुरू की।
- आय सीमा को 2004, 2008, 2013 एवं 2017 में संशोधित किया गया था।
- वर्तमान सीमा : ₹8 लाख से अधिक वार्षिक आय (कृषि आय को छोड़कर) या वरिष्ठ सरकारी पदों पर आसीन व्यक्ति।
- उद्देश्य : आरक्षण के लाभों पर संपन्न ओ.बी.सी. व्यक्तियों के एकाधिकार को रोकना।
क्या है क्रीमी लेयर में 'समतुल्यता'
- यह ₹8 लाख की एक समान आय सीमा के बजाय विभिन्न क्षेत्रों (वेतनभोगी, स्व-नियोजित, कृषक) में ‘समतुल्य स्थिति’ का आकलन करने का विचार है।
- क्रीमी लेयर बहिष्करण लागू करते समय सरकारी कर्मचारियों, पेशेवरों एवं व्यवसायियों के बीच समानता सुनिश्चित करता है।
- यह विसंगतियों को रोकने में सक्षम है। उदाहरण के लिए, प्रथम श्रेणी के अधिकारी के बच्चे को इससे बाहर रखा जाता है किंतु एक धनी व्यापारी/किसान के बच्चे को अभी भी कोटा लाभ मिलता है।
क्रीमी लेयर 'समतुल्यता' निर्धारण से संबंधित मुद्दे
- आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, ‘समतुल्यता’ स्थापित करने के प्रस्ताव में कुछ मुद्दे इस प्रकार हैं:
- चूँकि सहायक प्रोफेसर से लेकर उच्च स्तर के विश्वविद्यालय शिक्षकों का वेतन प्राय: ‘लेवल-10’ से शुरू होता है, जो सरकार में प्रवेश स्तर के ग्रुप ‘ए’ पदों के बराबर है, इसलिए यह प्रस्ताव किया गया है कि विश्वविद्यालय शिक्षकों के संतानों को क्रीमी लेयर में वर्गीकृत किया जाए।
- केंद्रीय/राज्य स्वायत्त एवं वैधानिक निकायों के लिए केंद्र सरकार के अधिकारियों के साथ उनके स्तर/समूह/वेतनमान के आधार पर ‘समतुल्यता’ स्थापित करने का प्रस्ताव है जो केंद्र व राज्य सरकारों के संबंधित वेतन के अनुरूप हो।
- विश्वविद्यालयों के गैर-शिक्षण कर्मचारियों को उनके स्तर/समूह/वेतनमान के आधार पर क्रीमी लेयर में रखने का प्रस्ताव है।
- यह प्रस्तावित है कि राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों में सभी कार्यकारी स्तर के पदों को क्रीमी लेयर माना जाए, जैसा कि वर्ष 2017 से केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के लिए लागू ‘समतुल्यता’ है।
- हालाँकि, यह प्रस्तावित है कि जिन अधिकारियों की आय 8 लाख रुपए से कम है उन्हें क्रीमी लेयर के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।
- यह प्रस्तावित है कि सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों के कर्मचारी, जो आमतौर पर केंद्र या संबंधित राज्य सरकार की सेवा शर्तों और वेतनमानों का पालन करते हैं, को उनके पद एवं सेवा शर्तों व वेतनमानों की ‘समतुल्यता’ के आधार पर उपयुक्त श्रेणियों में रखा जाए।
संभावित लाभार्थी
सार्वजनिक क्षेत्र
- यदि समतुल्यता संबंधी प्रस्ताव लागू होते हैं, तो 8 लाख रुपए से अधिक वार्षिक वेतन वाले निचले स्तर के सरकारी कर्मचारियों के पुत्र/पुत्रियों को सर्वाधिक लाभ होने की संभावना है।
- इससे वह विसंगति दूर होगी जिसके तहत सरकारी शिक्षकों के बच्चों को ओ.बी.सी. कोटे का लाभ मिलता है किंतु सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में समान पद के कर्मचारियों के संतानों को आय के आधार पर इससे वंचित कर दिया जाता है।
- कई राज्य स्तरीय सरकारी संगठनों में भी ऐसी ही स्थिति है। सरकार के समक्ष प्रस्तुत एक मामले में एक सरकारी तेल विपणन कंपनी द्वारा संचालित पंप पर वाहनों में ईंधन भरने वाले एक व्यक्ति के संतानों को आय के आधार पर क्रीमी लेयर घोषित किया गया है।
निजी क्षेत्र
निजी क्षेत्र में कर्मचारियों के बच्चों के लिए अधिक बदलाव की उम्मीद नहीं है। संभवत: प्रस्ताव में यह उल्लेख किया गया है कि निजी रोज़गार में पदों, वेतन एवं सुविधाओं की विस्तृत श्रृंखला को देखते हुए ‘समतुल्यता’ स्थापित करना मुश्किल है और क्रीमी लेयर का निर्धारण आय/संपत्ति के मानदंडों के आधार पर किया जा सकता है।
महत्त्व
- ओ.बी.सी. कोटे में समानता : यह सुनिश्चित करता है कि लाभ वास्तव में वंचितों तक पहुँचें।
- नीति सुधार : यह इस आलोचना का समाधान करता है कि वर्तमान मानदंड आय-पक्षपाती हैं, न कि व्यवसाय/संपत्ति-संवेदनशील।
- सामाजिक न्याय : यह मंडल आयोग के मूल उद्देश्य के अनुरूप है जो पहले से ही उन्नत समूहों के बजाय पिछड़े समूहों का उत्थान करता है।
निष्कर्ष
क्रीमी लेयर मानदंडों में ‘समतुल्यता’ पर विचार करने के केंद्र के कदम का उद्देश्य ओ.बी.सी. आरक्षण को अधिक न्यायसंगत, समावेशी एवं वास्तविक पिछड़ेपन को प्रतिबिंबित करने वाला बनाना है।