New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

धर्मान्तरित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा

प्रारंभिक परीक्षा के लिए - अनुसूचित जाति एवं इनसे संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मुख्य परीक्षा के लिये : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय 

संदर्भ 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई एक याचिका में धर्मान्तरित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की जांच के लिए आयोग के गठन को चुनौती दी गई।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • इस याचिका में माँग की गयी है, कि इस आयोग के कामकाज पर रोक लगाई जाये, तथा इसका गठन करने वाली अधिसूचना को रद्द कर दिया जाये।
  • याचिका में तर्क दिया गया, कि चूंकि अभी तक गठित अधिकांश आयोगों और अध्ययनों ने दलित ईसाइयों और मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की स्थिति का समर्थन किया है, तो नए आयोग के गठन का उद्देश्य पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट प्राप्त करना भी हो सकता है।  
  • अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए धर्म के मानदंड को चुनौती देने वाली याचिकाओं में 1955 में काका कालेलकर की अध्यक्षता वाले प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग के बाद से कई स्वतंत्र आयोग की रिपोर्टों का संदर्भ लिया गया है।
  • जिनमें भारतीय ईसाइयों और भारतीय मुसलमानों के बीच जाति और जातिगत भेदभाव के अस्तित्व का दस्तावेजीकरण किया गया है, इनका निष्कर्ष है कि दलित धर्मांतरित लोगों को हिंदू धर्म छोड़ने के बाद भी समान सामाजिक अक्षमताओं का सामना करना पड़ता है। 
    • इनमें 1969 में अनुसूचित जातियों के आर्थिक और शैक्षिक विकास पर समिति की रिपोर्ट, 1983 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों पर एचपीपी की रिपोर्ट, 2006 में गठित प्रधान मंत्री की उच्च-स्तरीय समिति की रिपोर्ट, रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट आदि शामिल हैं।

आयोग का गठन 

  • केंद्र सरकार ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया है, जो सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के धर्मान्तरित दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिये जाने से संबंधित प्रश्नों की जांच करेगा। 
  • आयोग इस बात की भी जांच करेगा, कि एक दलित व्यक्ति दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के बाद किन बदलावों से गुजरता है और इसका उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर क्या प्रभाव पड़ता है। 
    • इनमें उनकी परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा सामाजिक भेदभाव के अन्य रूपों की जांच करना भी शामिल होगा।
  • आयोग को किसी भी अन्य संबंधित प्रश्नों की जांच करने का भी अधिकार दिया गया है, जिसे वह केंद्र सरकार के परामर्श और सहमति से उचित समझे।
  • केंद्र सरकार, दलित ईसाइयों और मुसलमानों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के पक्ष में नहीं है, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2019 में दायर अपने हलफनामे में कहा था, कि दलित ईसाइयों और मुसलमानों की तुलना बौद्ध धर्मांतरितों से नहीं की जा सकती, क्योंकि इनके धर्मांतरण की प्रेरणा अलग-अलग थी।

अनुसूचित जाति

  • ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1931 में साइमन कमीशन ने भारत में अछूत जातियों के सर्वे का आदेश जारी किया था, इसके तहत जेएच हट्‌टन को जनजातीय जीवन एवं प्रणाली के पूर्ण सर्वेक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई।
  • हट्टन कमेटी ने देश की सभी जातियों का सर्वे किया, और 68 जातियों को अछूत की श्रेणी में रखा।
  • अंग्रेजी सरकार ने इस रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट के तहत 68 जातियों को विशेष दर्जा दिया, ये जातियां स्पेशल कास्ट(एससी) कहलायी।
  • संविधान के निर्माण के बाद समाज के निचले तबके को मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का प्रस्ताव किया गया, इसके तहत छुआछूत की शिकार जातियों को आरक्षण के दायरे में लाया गया। 
  • संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 केवल उन्ही समुदायों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देता है, जो हिन्दू धर्म से सम्बंधित हैं।
  • 1956 में काका कालेलकर आयोग की सिफारिश पर संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में संसोधन करने के बाद सिख धर्म से सम्बंधित समुदायों को भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया गया।
  • संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 में, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर उच्चाधिकार प्राप्त पैनल की रिपोर्ट के आधार पर 1990 में एक बार फिर संसोधन किया गया, और बौद्ध धर्म से सम्बंधित समुदायों को भी अनुसूचित जाति की सूची  में शामिल कर लिया गया।

अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया

  • किसी भी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की प्रक्रिया की शुरुआत राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
  • राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजती है।
  • जिसके बाद इस प्रस्ताव पर भारत के महापंजीयक तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की मंजूरी ली जाती है।
  • इसके बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, संसद में संसोधन विधेयक पेश करता है।
  • संसद से प्रस्ताव पास किए जाने के बाद तथा राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद प्रस्ताव में वर्णित समुदाय अनुसूचित जाति की सूची में शामिल हो जाते है।
  • अनुसूचित जाति की मान्यता राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश विशिष्ट होती है। अर्थात अनुसूचित जाति की सूची प्रत्येक राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेश के लिये अलग-अलग होती है। 
  • यदि कोई समुदाय जो एक राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत है तो आवश्यक नहीं है, कि वो किसी अन्य राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश में भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल हो।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR