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भारत में साइबर धोखाधड़ी एवं संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें)

संदर्भ

गृह मंत्रालय (MHA) के विश्लेषण के अनुसार, भारत हर महीने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, विशेष रूप से कंबोडिया, म्यांमार, वियतनाम, लाओस एवं थाईलैंड से होने वाली साइबर धोखाधड़ी के कारण लगभग 1,000 करोड़ रुपए का नुकसान उठा रहा है।

साइबर धोखाधड़ी के बारे में

  • यह एक ऐसी आपराधिक गतिविधि है जिसमें इंटरनेट एवं डिजिटल तकनीकों का उपयोग करके व्यक्तियों या संगठनों से धन या संवेदनशील जानकारी चुराई जाती है। 
  • यह व्यक्तिगत, व्यावसायिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती है। 
  • भारत में प्रचलित प्रमुख साइबर धोखाधड़ी के प्रकार:
    • स्टॉक ट्रेडिंग/निवेश घोटाले : धोखेबाज लोगों को शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग के नाम पर आकर्षक रिटर्न का लालच देकर ठगते हैं।
    • डिजिटल अरेस्ट : इसमें अपराधी सरकारी अधिकारी बनकर लोगों को डराते हैं और कथित अपराधों के लिए पैसे की मांग करते हैं।
    • कार्य-आधारित एवं निवेश-आधारित घोटाले : लोगों को छोटे कार्यों के लिए भुगतान का वादा करके बड़े निवेश के लिए प्रलोभन दिया जाता है।

गृह मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट

गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने वर्ष 2025 में साइबर धोखाधड़ी के आंकड़ों का विश्लेषण किया। 

प्रमुख निष्कर्ष

  • कुल हानि : जनवरी से मई 2025 तक भारत ने साइबर धोखाधड़ी के कारण 7,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान उठाया, जिसमें से आधे से अधिक नुकसान दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से उत्पन्न हुआ।
  • मासिक नुकसान : जनवरी में 1,192 करोड़, फरवरी में 951 करोड़, मार्च में 1,000 करोड़, अप्रैल में 731 करोड़ और मई में 999 करोड़ रुपए।
  • स्कैम कंपाउंड्स : कंबोडिया में 45, लाओस में 5 और म्यांमार में 1 स्कैम कंपाउंड की पहचान की गई, जो मुख्य रूप से चीनी ऑपरेटर्स द्वारा नियंत्रित हैं।
    • इन स्कैम कंपाउंड्स में भारत सहित अफ्रीकी, पूर्वी एशियाई, दक्षिण एशियाई, यूरोपीय एवं अन्य देशों के लोग जबरन काम करने के लिए बाध्य हैं।

रिपोर्ट के अनुसार साइबर धोखाधड़ी के प्रमुख कारण

  • दक्षिण-पूर्व एशिया में स्कैम कंपाउंड : ये उच्च-सुरक्षा वाले केंद्र हैं जहाँ मानव तस्करी के शिकार लोगों को जबरन साइबर अपराध करने के लिए मजबूर किया जाता है।
  • फर्जी भर्ती एजेंट : महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में एजेंट फर्जी नौकरी के विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को लालच देते हैं।
  • बैंकिंग, आप्रवासन एवं दूरसंचार क्षेत्रों में खामियाँ : घोस्ट सिम कार्ड और म्यूल खातों का उपयोग धन शोधन एवं धोखाधड़ी को आसान बनाता है।
  • उन्नत तकनीक का दुरुपयोग : अपराधी सोशल इंजीनियरिंग, फिशिंग एवं स्पूफिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं।

लोगों और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • वित्तीय क्षति : गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2025 में अनुमानित 1.2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है जो भारत के जी.डी.पी. का 0.7% है।
  • विश्वास की कमी : बैंकिंग एवं डिजिटल सेवाओं पर लोगों का भरोसा कम होता है, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।
  • मानव तस्करी : हजारों भारतीय, विशेष रूप से कंबोडिया में, फर्जी नौकरी के ऑफर के बहाने फंसाए गए और साइबर अपराध करने के लिए मजबूर किए गए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा : साइबर धोखाधड़ी से प्राप्त धन का उपयोग आतंकवाद वित्तपोषण एवं मनी लॉन्ड्रिंग के लिए हो सकता है।

सरकारी पहल

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) : यह साइबर अपराधों से निपटने के लिए वर्ष 2020 में स्थापित एक नोडल एजेंसी है। यह साइबर धोखाधड़ी की निगरानी एवं रोकथाम के लिए काम करता है।
  • नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग एवं प्रबंधन प्रणाली (CFCFRMS) : यह प्रणाली वित्तीय धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्टिंग और धन की निकासी को रोकने में मदद करती है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) : नागरिकों को साइबर अपराध की शिकायत दर्ज करने और उसकी प्रगति को ट्रैक करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : भारत ने कंबोडिया एवं अन्य देशों के साथ मिलकर स्कैम सेंटर्स के खिलाफ कार्रवाई के लिए समन्वय स्थापित किया है। 360 भारतीयों को कंबोडिया से वापस लाया गया।
  • जांच और कार्रवाई : केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने फर्जी सिम कार्ड जारी करने वाले PoS एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज की। 3.2 लाख म्यूल खातों को फ्रीज किया गया और 3,000 से अधिक URL एवं 595 ऐप्स को ब्लॉक किया गया।

चुनौतियाँ

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति : साइबर अपराधों का दक्षिण-पूर्व एशिया से संचालन एवं चीन के ऑपरेटर्स की संलिप्तता अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को जटिल बनाती है।
  • तकनीकी जटिलता : उन्नत तकनीकों, जैसे- AI एवं लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLMs) का उपयोग अपराधियों को अधिक विश्वसनीय और बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी करने में सक्षम बनाता है।
  • मानव तस्करी : फंसे हुए भारतीयों को बचाने और अवैध भर्ती नेटवर्क को तोड़ने में कठिनाई।
  • प्रणालीगत खामियाँ : बैंकिंग, आप्रवासन एवं दूरसंचार क्षेत्रों में खामियां धोखाधड़ी को बढ़ावा देती हैं।
  • जागरूकता की कमी : जनता को फर्जी नौकरी के ऑफर और निवेश योजनाओं के प्रति जागरूकता की कमी।

आगे की राह

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना : कंबोडिया, म्यांमार एवं लाओस जैसे देशों के साथ ठोस कार्रवाई के लिए समन्वय बढ़ाना
  • तकनीकी उन्नयन : बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों को असामान्य लेनदेन का पता लगाने और धोखाधड़ी को रोकने के लिए अपने सिस्टम को अपग्रेड करना 
  • जागरूकता अभियान : जनता को नौकरी के फर्जी ऑफर, निवेश घोटालों व डिजिटल अरेस्ट जैसे खतरों के प्रति शिक्षित करने के लिए व्यापक अभियान चलाना 
  • कानूनी ढांचा : साइबर अपराधियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई और तेजी से जांच प्रक्रिया को लागू करना
  • मानव तस्करी पर रोक : अवैध भर्ती एजेंट्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई और फंसे हुए भारतीयों को बचाने के लिए विशेष अभियान

निष्कर्ष

साइबर धोखाधड़ी भारत के लिए एक गंभीर खतरा बन चुकी है जो न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाती है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा एवं नागरिकों के विश्वास को भी प्रभावित करती है। दक्षिण-पूर्व एशिया से उत्पन्न होने वाली यह समस्या अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी उन्नयन और जन जागरूकता के माध्यम से ही हल हो सकती है। सरकार की मौजूदा पहल सराहनीय हैं किंतु इनके प्रभावी कार्यान्वयन और निरंतर निगरानी की आवश्यकता है। साइबर अपराधों के खिलाफ एक समन्वित और व्यापक दृष्टिकोण भारत को इस बढ़ते खतरे से निपटने में सक्षम बनाएगा।

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