(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।) |
संदर्भ
सितंबर, 2025 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम और 1,500 करोड़ रुपये की खनिज पुनर्चक्रण योजना।
ई-कचरा क्या है ?
- ई-कचरा (Electronic Waste) उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उपकरणों को संदर्भित करता है जो उपयोग के बाद निष्क्रिय या अनुपयोगी हो जाते हैं।
- भारत में प्रतिवर्ष लाखों टन ई-कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें कीमती धातुएं जैसे सोना, चांदी, और दुर्लभ पृथ्वी तत्व जैसे लिथियम, कोबाल्ट, और निकल मौजूद होते हैं।
प्रकार
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट, और टीवी।
- घरेलू उपकरण: रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव।
- औद्योगिक उपकरण: सर्वर, मेडिकल डिवाइस, और औद्योगिक मशीनरी।
- बैटरी और सहायक उपकरण: रिचार्जेबल बैटरी, चार्जर, और केबल।
प्रभाव
- आर्थिक संभावनाएं: ई-कचरे से तांबा, एल्यूमीनियम, सोना, और लिथियम जैसी कीमती धातुओं की रीसाइक्लिंग से भारत की आयात निर्भरता कम हो सकती है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: अनुचित निपटान से मिट्टी, पानी, और हवा में विषाक्त पदार्थ (जैसे लेड, मरकरी) फैलते हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
- सामाजिक प्रभाव: असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
पुनर्चक्रण प्रक्रिया के चरण
- संग्रह: ई-कचरे को उपभोक्ताओं, व्यवसायों या असंगठित क्षेत्र से एकत्र किया जाता है।
- वर्गीकरण और पृथक्करण: उपयोगी धातुओं और गैर-धातुओं को अलग किया जाता है।
- प्रसंस्करण: कीमती धातुओं (सोना, चांदी, तांबा) और दुर्लभ तत्वों (लिथियम, कोबाल्ट) को निकालने के लिए रासायनिक और भौतिक प्रक्रियाएं।
- पुन: उपयोग: निकाले गए पदार्थों को नए इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में उपयोग किया जाता है।
- सुरक्षित निपटान: गैर-पुनर्चक्रण सामग्री को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से निपटाया जाता है।
हालिया रिपोर्ट: रीसाइक्लिंग में कमियां
- ICEA रिपोर्ट 2023 : इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन ने बताया कि ई-कचरा पुनर्चक्रण में असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व है, जो सर्कुलर अर्थव्यवस्था बनाने में बाधा है।
- आंकड़े: वर्ष 2022 में भारत में 41.7 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ, जिसमें से केवल एक-तिहाई ही औपचारिक चैनलों के माध्यम से संसाधित हुआ।
- पेपर ट्रेडिंग: कुछ रीसाइक्लर प्रोत्साहन भुगतान पाने के लिए रीसाइक्लिंग की मात्रा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, जिसे ‘पेपर ट्रेडिंग’ कहा जाता है।
- सामग्री ट्रेसबिलिटी की कमी: असंगठित बाजारों और पंजीकृत रीसाइक्लरों में उत्पादों का सटीक इन्वेंट्री न होना रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
प्रभाव
- आर्थिक नुकसान: असंगठित क्षेत्र की प्रभुता के कारण कीमती धातुओं का पूरा उपयोग नहीं हो पाता, जिससे आयात पर निर्भरता बनी रहती है।
- पर्यावरणीय क्षति: अनुचित पुनर्चक्रण से विषाक्त पदार्थ पर्यावरण में फैलते हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम: असंगठित क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों को खतरनाक रसायनों और असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
- नीतिगत असफलता: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) ढांचे के बावजूद, कार्यान्वयन में कमियां बनी हुई हैं।
चुनौतियां
- असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: असंगठित रीसाइक्लर मरम्मत और पुर्जों की निकासी पर ध्यान देते हैं, न कि रीसाइक्लिंग पर।
- सामग्री ट्रेसबिलिटी: उत्पादों की जीवनचक्र जानकारी का अभाव, क्योंकि भारत में उपकरण कई मालिकों के बीच बदलते हैं।
- गैर-मानकीकृत इन्वेंट्री: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एकसमान इन्वेंट्री विधि का उपयोग नहीं करते, जिससे डेटा में असमानता रहती है।
- सीमित जागरूकता: उपभोक्ताओं और छोटे रीसाइक्लरों में ई-कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूकता की कमी।
आगे की राह
- औपचारिक ढांचे को मजबूत करना: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा रीसाइक्लरों की नियमित ऑडिटिंग, जैसा कि पिछले पांच महीनों में 50 से अधिक फर्मों के साथ शुरू हुआ है, को और बढ़ाना चाहिए।
- तृतीय-पक्ष ऑडिट: पर्यावरणीय सुरक्षा और डाउनस्ट्रीम विक्रेताओं की निगरानी के लिए स्वतंत्र ऑडिट अनिवार्य करना।
- सामग्री ट्रेसबिलिटी: एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाना, जो उत्पादों के जीवनचक्र को ट्रैक करे।
- जागरूकता अभियान: उपभोक्ताओं और असंगठित क्षेत्र के लिए ई-कचरा रीसाइक्लिंग के लाभों पर जागरूकता कार्यक्रम।
- नीतिगत सुधार: EPR ढांचे को और सख्त करना, ताकि निर्माता और रीसाइक्लर जिम्मेदारीपूर्वक काम करें।