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भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन : कारण, प्रभाव, नीतिगत ढाँचा, संस्थागत व्यवस्था, सरकार की प्रमुख पहलें

ई-अपशिष्ट (Electronic Waste या E-Waste) ऐसे इलेक्ट्रॉनिक एवं विद्युत उपकरणों को कहा जाता है जो अब उपयोग योग्य नहीं रहे — जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, आदि। इन उपकरणों में एक ओर जहाँ मूल्यवान धातुएँ (सोना, चाँदी, तांबा) होती हैं, वहीं दूसरी ओर हानिकारक पदार्थ (सीसा, पारा, कैडमियम, बेरिलियम) भी मौजूद रहते हैं। इसलिए ई-अपशिष्ट का सही प्रबंधन केवल एक पर्यावरणीय आवश्यकता ही नहीं, बल्कि एक आर्थिक अवसर भी है।

वर्तमान परिदृश्य (Current Scenario in India)

  • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक देश है — चीन और अमेरिका के बाद।
  • Global E-Waste Monitor 2024 के अनुसार, 2023-24 में भारत ने लगभग 1.8 मिलियन टन (18 लाख टन) ई-अपशिष्ट उत्पन्न किया।
  • केवल 40–45% ई-अपशिष्ट का ही औपचारिक रूप से संग्रहण एवं पुनर्चक्रण (Recycling) होता है।
  • शेष 70% से अधिक अपशिष्ट अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) द्वारा असंगठित व असुरक्षित ढंग से निपटाया जाता है।
  • प्रमुख ई-अपशिष्ट उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल।

ई-अपशिष्ट के  कारण (Causes of Rising E-Waste)

  1. तेजी से तकनीकी परिवर्तनउपकरण जल्दी अप्रचलित हो जाते हैं।
  2. उपभोक्तावादी संस्कृति (Consumerism)नए मॉडल की लगातार माँग।
  3. ई-कॉमर्स एवं डिजिटलाइजेशन का प्रसार।
  4. सस्ती इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की बाढ़।
  5. जागरूकता और नीति-पालन की कमी

ई-अपशिष्ट का प्रभाव (Impacts of E-Waste )

क्षेत्र

प्रभाव

पर्यावरणीय

ई-वेस्ट के जलने या गलाने से वायु, जल और मिट्टी प्रदूषण होता है। विषाक्त तत्व भूजल में मिलकर दीर्घकालिक पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करते हैं।

स्वास्थ्य

सीसा व पारा से मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र, फेफड़े व किडनी प्रभावित होते हैं। बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर विशेष असर।

आर्थिक

मूल्यवान धातुएँ (Gold, Silver, Palladium) बेकार चली जाती हैं; अनुमानतः प्रति वर्ष 7000 करोड़ से अधिक मूल्य की धातुएँ व्यर्थ जाती हैं।

सामाजिक

अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत श्रमिक बिना सुरक्षा उपकरणों के जहरीले धुएँ में काम करते हैं।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन पर नीतिगत ढाँचा (Policy & Legal Framework)

(a) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2011

  • भारत का पहला व्यापक कानूनी ढाँचा।
  • Extended Producer Responsibility (EPR) की अवधारणा शुरू की गई।

(b) संशोधित नियम, 2016 एवं 2018

  • उत्पादकों, कलेक्टर्स और रिसाइक्लर्स की जिम्मेदारियाँ स्पष्ट की गईं।
  • Producer Responsibility Organisations (PROs) की स्थापना।
  • कलेक्शन लक्ष्य (Collection Targets) तय किए गए (पहले वर्ष में 30%, पाँचवें वर्ष तक 70%)।

(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022

  • EPR Registration Portal (CPCB) की शुरुआत — ट्रैकिंग व पारदर्शिता के लिए।
  • रीसाइक्लिंग सर्टिफिकेट और क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम लागू किया गया।
  • “Reduce–Reuse–Recycle–Recover सिद्धांत पर ज़ोर।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन  पर संस्थागत व्यवस्था (Institutional Mechanism)

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)राष्ट्रीय निगरानी एवं नीति निर्धारण।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) लाइसेंस, निरीक्षण, प्रवर्तन।
  • EPR पोर्टल (2022)डेटा पारदर्शिता और रिपोर्टिंग के लिए एकीकृत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म।
  • Recycling Units & Collection Centres देशभर में ~450 मान्यता प्राप्त केंद्र (2024 तक)।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन  पर सरकार की प्रमुख पहलें (Major Government Initiatives)

  1. Digital India Missionई-गवर्नेंस के साथ डिजिटल उपकरणों के जिम्मेदार निपटान पर बल।
  2. Swachh Digital Bharat Abhiyan ई-कचरे पर जनजागरूकता अभियान।
  3. Green E-Waste Management Programme औपचारिक रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार।
  4. Startup SupportMSMEs व Startups को ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग तकनीक हेतु प्रोत्साहन।
  5. Public–Private Partnerships (PPP)PROs और नगर निकायों के बीच सहयोग।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन  की प्रमुख चुनौतियाँ (Key Challenges)

  • अनौपचारिक क्षेत्र का वर्चस्वबिना सुरक्षा उपायों के रीसाइक्लिंग।
  • डाटा की पारदर्शिता की कमी अपशिष्ट की सटीक मात्रा का अभाव।
  • तकनीकी क्षमता का अभाव आधुनिक रीसाइक्लिंग संयंत्र सीमित हैं।
  • जागरूकता की कमी नागरिक एवं उद्योग दोनों स्तरों पर।
  • अवैध आयात (Illegal Imports)विदेशी ई-वेस्ट भारत लाया जा रहा है।
  • सर्कुलर इकोनॉमी का धीमा कार्यान्वयन।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन  पर आगे की राह (Way Forward)

क्षेत्र

रणनीति

नीति

EPR नियमों के कठोर अनुपालन व डिजिटल मॉनिटरिंग को और सशक्त करना।

तकनीक

Eco-Friendly Recycling Technologies (जैसे हाइड्रो-मेटलर्जिकल तकनीक) को बढ़ावा देना।

संरचना

प्रत्येक जिले में “ई-वेस्ट कलेक्शन सेंटर” स्थापित करना।

सामाजिक

अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र में समायोजित कर प्रशिक्षण देना।

जागरूकता

“Recycle your Device” जैसे राष्ट्रीय अभियान।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

Basel Convention के दिशा-निर्देशों के अनुरूप सीमा-पार अपशिष्ट नियंत्रण।

निष्कर्ष (Conclusion)

ई-अपशिष्ट केवल प्रदूषण का नहीं, बल्कि संभावनाओं का विषय है। यदि भारत सर्कुलर इकोनॉमी, EPR प्रणाली, और वैज्ञानिक रीसाइक्लिंग को प्राथमिकता देता है, तो वह न केवल पर्यावरणीय जोखिम घटा सकता है बल्कि Green Economy की दिशा में अग्रसर भी हो सकता है। सतत ई-अपशिष्ट प्रबंधन SDG-12 (Responsible Consumption & Production) तथा SDG-13 (Climate Action) की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता को सशक्त बनाता है।

“E-waste is not a problem to be buried, but a resource to be recovered.”

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