(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय) |
संदर्भ
इज़राइल द्वारा अधिकृत वेस्ट बैंक पर ‘E1 सेटलमेंट प्लान’ के विस्तार को मंज़ूरी दिए जाने पर द्वि-राज्य समाधान और मध्य-पूर्व शांति प्रक्रिया पर इसके प्रभावों को देखते हुए विभिन्न देशों ने कड़ी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं।
क्या है ‘E1 सेटलमेंट प्लान’
- इसके तहत वर्ष 1967 से इज़राइली नियंत्रण वाले वेस्ट बैंक क्षेत्रों में हज़ारों नए आवास इकाइयों को मंज़ूरी दी गई है।
- यह इज़रायल के कब्ज़े वाले पूर्वी यरुशलम को माले अदुमिम की मौजूदा इज़राइली बस्ती से जोड़ेगी।
- इज़रायली वित्तमंत्री स्मोट्रिच के अनुसार अन्य देशों द्वारा फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के जवाब में इस योजना को पुनर्जीवित किया जा रहा है।
- फ़िलिस्तीन एवं अंतर्राष्ट्रीय निकाय इन बस्तियों को अंतर्राष्ट्रीय कानून (विशेषकर चौथे जिनेवा कन्वेंशन) के तहत अवैध मानते हैं।
- इज़राइल इन्हें ‘सुरक्षा’ एवं ‘ऐतिहासिक अधिकार’ के आधार पर उचित ठहराता है।

वैश्विक प्रतिक्रियाएँ
फिलिस्तीन
- फ़िलिस्तीन ने E1 सेटलमेंट प्लान को फ़िलिस्तीनी राज्य को अपनी मातृभूमि पर स्थापित करने के अवसर और उसकी भौगोलिक एवं जनसांख्यिकीय एकता को कमज़ोर करने वाली योजनाओं का एक विस्तार माना है।
- बस्तियों को ‘अमान्य’ घोषित करते हुए फ़िलिस्तीन ने क्षेत्र में बढ़ते तनाव और संभावित अशांति की चेतावनी दी है।
क़तर
- कतर के विदेश मंत्रालय ने इस कदम की निंदा करते हुए इज़राइली कब्जे की नीतियों के प्रति अपनी स्पष्ट अस्वीकृति की पुष्टि की।
- क़तर के अनुसार इस योजना का उद्देश्य बस्तियों का विस्तार करना और फिलिस्तीनी लोगों को जबरन विस्थापित करना है जो फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को रोकने के लिए किए गए उपाय हैं।
सऊदी अरब
- सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने इस सेटलमेंट प्लान की‘ कड़े शब्दों में’ निंदा करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन तथा द्वि-राज्य समाधान की संभावना के लिए एक गंभीर खतरा बताया है।
- इसनेअंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपनी कानूनी एवं नैतिक ज़िम्मेदारियाँ निभाने, फ़िलिस्तीनी लोगों की रक्षा करने और फ़िलिस्तीनी राज्य की मान्यता सहित उनके वैध अधिकारों को पूरा करने का आह्वान किया।
जॉर्डन
- जॉर्डन ने इस सेटलमेंट योजना और इज़राइल के अवैध उपायों की निंदा कि है। उसके अनुसार यह अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन है।
- इसने वेस्ट बैंक में इज़राइली सरकार की निरंतर विस्तारवादी नीति के ख़िलाफ़ चेतावनी देते हुए कहा कि यह क्षेत्र में हिंसा एवं संघर्ष को बढ़ावा देती है।
तुर्किये
- तुर्किये के विदेश मंत्रालय के अनुसार यह योजना अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की अवहेलना करने के साथ ही फिलिस्तीन राज्य की क्षेत्रीय अखंडता, द्वि-राज्य समाधान के आधार और स्थायी शांति को बाधित करती है।
- इसने वर्ष 1967 की सीमाओं पर आधारित एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के लिए तुर्किये के समर्थन की पुष्टि की, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम होगी।
यूनाइटेड किंगडम
ब्रिटेन इज़राइली सरकार की E1 का कड़ा विरोध करता है, जो भविष्य के फिलिस्तीनी राज्य को दो भागों में विभाजित कर देगी। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन है।
जर्मनी
- इज़राइल की प्रबल समर्थक जर्मन सरकार ने इज़राइल से E1 सेटलमेंट योजना को रोकने का आग्रह करते हुए नए विकास की योजना को ‘पूरी तरह से अस्वीकार’ करने की घोषणा की है।
- बर्लिन स्थित विदेश कार्यालय के अनुसार बस्तियों का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों का उल्लंघन करता है।
- यह बातचीत के ज़रिए तय किए गए द्वि-राज्य समाधान और पश्चिमी तट पर इज़राइल के कब्जे की समाप्ति को जटिल बनाता है, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने मांग की है।
स्पेन
- स्पेनिश विदेश मंत्री जोस मैनुअल अल्बेरेस ने इस विस्तार योजना को ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून’ का उल्लंघन बताया।
- उनके अनुसार यह शांति के एकमात्र मार्ग ‘द्वि-राज्य समाधान’ कीव्यवहार्यता को कमज़ोर करता है।
संयुक्त राष्ट्र
- संयुक्त राष्ट्र ने इज़रायल के इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन और शांति के लिए एक बड़ी बाधा बताया है।
- इसने फ़िलिस्तीनी भूमि के जनसांख्यिकीय एवं भौगोलिक स्वरूप को बदलने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी।
- संयुक्त राष्ट्र ने इज़राइल से अपने फ़ैसले को वापस लेने का आग्रह किया। उसके अनुसार इस योजना से द्वि-राज्य समाधान की संभावनाएँ समाप्त हो जाएँगी।
संयुक्त राज्य अमेरिका
- इज़राइल के प्रमुख सहयोगी अमेरिका ने इस प्रस्ताव की तुरंत आलोचना नहीं की है।
- अमेरिकी हस्तक्षेप गाजा में युद्ध को समाप्त करने और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित है कि हमास उस क्षेत्र पर फिर कभी शासन न कर सके।
- एक स्थिर पश्चिमी तट इज़राइल को सुरक्षित रखता है और इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के इस प्रशासन के लक्ष्य के अनुरूप है।
यूरोपीय संघ
- यूरोपीय संघ ने कड़ा विरोध जताते हुए इज़राइल के साथ एक व्यवहार्य फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए समर्थन दोहराया।
- कुछ यूरोपीय संघ के देश राजनयिक विरोध और आर्थिक उपायों पर भी विचार कर रहे हैं।
अरब जगत और इस्लामिक सहयोग संगठन
- इस योजना की निंदा ‘विलय’ की कार्रवाई के रूप में की।
- फिलिस्तीनी अधिकारों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप का आह्वान किया।
भारत का रुख
- भारत ने लगातार बातचीत के ज़रिए द्वि-राज्य समाधान (Two States Solution) का समर्थन किया है।
- इसमें इज़राइल एवं फ़िलिस्तीन सुरक्षित व मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर साथ-साथ रहें और पूर्वी यरुशलम फ़िलिस्तीन की राजधानी हो।
- भारत ने चिंता व्यक्त की है कि E1 योजना सहित एकतरफ़ा बस्तियों का विस्तार शांति की संभावनाओं को कमज़ोर करता है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने आम तौर पर अवैध बस्तियों की आलोचना करने वाले प्रस्तावों के समर्थन में मतदान किया है। साथ ही, इज़राइल के साथ अपने संतुलित राजनयिक संबंध भी बनाए रखे हैं।
- भारत इस बात पर ज़ोर देता है कि बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ने का एकमात्र स्थायी रास्ता है।
- भारत दोनों पक्षों के साथ अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अतिवादी रुख़ अपनाने से बचता है।
परिणाम
- इज़रायल की यह योजना पहले से ही नाज़ुक ओस्लो समझौते के ढाँचे को और कमज़ोर करता है।
- इससे पश्चिम एशिया में तनाव में वृद्धि के साथ ही हिंसा का खतरा बढ़नेकी संभावना है।
- इससे इज़राइल-फिलिस्तीन शांति वार्ता में वैश्विक विश्वास में कमी आएगी।
- गाजा संघर्ष और ईरान-इज़राइल तनाव के बीच क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।