(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन के लगभग 3% के लिए वैश्विक शिपिंग ज़िम्मेदार है।
वैश्विक शिपिंग द्वारा निर्धारित लक्ष्य
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) का लक्ष्य :
- वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को शून्य करना
- वर्ष 2030 तक 30% और वर्ष 2040 तक 80% की कमी (2008 के स्तर से)
- उद्देश्य : समुद्री परिवहन को पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप बनाना और वैश्विक तापमान में अतिरिक्त वृद्धि को रोकना
- शिपिंग उद्योग को स्वच्छ ईंधन, प्रौद्योगिकियों एवं परिचालन दक्षताओं को अपनाने के लिए प्रेरित करना।
शिपिंग क्षेत्र के वि-कार्बनीकरण की आवश्यकता
- उत्सर्जन का स्तर : यदि इसका समाधान नहीं किया गया, तो वर्ष 2050 तक समुद्री GHG उत्सर्जन 50-250% तक बढ़ सकता है।
- विकल्पों का अभाव : उच्च ऊर्जा माँग एवं जहाजों के लंबे परिचालन जीवनकाल के कारण नौवहन एक ऐसा क्षेत्र है जिसे कम करना मुश्किल है।
- वैश्विक व्यापार निर्भरता : मात्रा के हिसाब से वैश्विक व्यापार का 80% से अधिक समुद्री मार्ग से होता है।
वि-कार्बनीकरण के लिए उठाए गए कदम
आई.एम.ओ. की संशोधित ग्रीनहाउस गैस रणनीति (2023)
- लक्ष्य : वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
- वर्ष 2030 तक 20-30% और वर्ष 2040 तक 70-80% की कमी (2008 के स्तर की तुलना में)।
कार्बन तीव्रता सूचकांक
यह शिपिंग कंपनियों को प्रति किलोमीटर प्रति कार्गो इकाई उत्सर्जन की निगरानी के लिए प्रोत्साहित करता है।
स्वच्छ ईंधन एवं ऊर्जा विकल्पों को बढ़ावा
- जैव ईंधन : सीमित मापनीयता; खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंताएँ।
- ग्रीन अमोनिया एवं ग्रीन मेथनॉल : आशाजनक विकल्प किंतु विषाक्तता (अमोनिया) और ऊर्जा-गहन उत्पादन जैसे चुनौतियाँ
- हाइड्रोजन : वि-कार्बनीकरण की उच्च क्षमता किंतु इसके लिए क्रायोजेनिक भंडारण एवं बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।
- तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) : अंतरिम समाधान और निम्न CO₂ उत्सर्जित होता है किंतु कार्बन-मुक्त नहीं है।
- इलेक्ट्रिक जहाज : बैटरी की सीमाओं के कारण केवल कम दूरी की शिपिंग के लिए ही व्यवहार्य।
कार्बन मूल्य निर्धारण और बाज़ार-आधारित उपाय
प्रदूषणकारी ईंधनों को हतोत्साहित करने के लिए IMO कार्बन लेवी या उत्सर्जन व्यापार योजनाओं पर विचार कर रहा है।
तकनीकी नवाचार
- पवन-सहायक प्रणोदन (जैसे- रोटर सेल)
- पतवार घर्षण को कम करने के लिए वायु स्नेहन प्रणालियाँ
- उन्नत पतवार डिज़ाइन और धीमी गति से भाप बनाने की प्रथाएँ
कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- उच्च लागत : हरित ईंधन पारंपरिक ईंधनों की तुलना में 3-5 गुना अधिक महंगे हो सकते हैं।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव : बंदरगाह एवं बंकरिंग सुविधाएँ अभी तक हरित ईंधनों का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं हैं।
- विखंडित विनियमन : इस संबंध में विभिन्न राष्ट्रों की नीतियों में असमानता सामूहिक प्रगति को धीमा करती है।
- अनिश्चित निवेश प्रतिफल : यह जोखिम स्वच्छ प्रौद्योगिकी में निजी निवेश को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
- वैश्विक एकरूपता का अभाव : बाध्यकारी नियम का अभाव तथा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के तहत प्रगति स्वैच्छिक है।
- तकनीकी कमियाँ : स्केलेबल स्वच्छ शिपिंग तकनीकों की सीमित उपलब्धता।
भारत की भूमिका एवं अवसर
यह विशाल तटरेखा एवं नौवहन क्षमता वाले भारत के लिए अपार संभावनाएँ प्रस्तुत करता है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए भारत को निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:
- हरित बंकरिंग सुविधाओं के साथ बंदरगाहों का उन्नयन
- जहाजों के नवीनीकरण व स्वच्छ ईंधन में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना
- समुद्री व्यापार हितों की रक्षा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के लक्ष्यों के अनुरूप कार्य करना
निष्कर्ष
- वैश्विक शिपिंग को कार्बन-मुक्त बनाना एक तकनीकी, वित्तीय एवं नियामक चुनौती है किंतु एक स्थायी वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
- समन्वित अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई, नवोन्मेषी वित्तपोषण एवं सार्वजनिक-निजी सहयोग से यह क्षेत्र कम कार्बन वाले भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।