- भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India: ECI) भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निभाता है।
- हाल ही में, ECI अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, जो 25 जनवरी, 1950 को हुई थी। लेकिन इससे कहीं अधिक, यह आयोग विभिन्न विवादों और आरोपों के कारण सुर्खियों में है।
- जिसमें वर्तमान वोट चोरी के आरोपों को भी शामिल है

चर्चा में क्यों ?
- ECI हाल ही में कई कारणों से सुर्खियों में रहा है। सबसे पहले, इसने अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगांठ का उत्सव मनाया, जो भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है। लेकिन इससे अधिक ध्यान आकर्षित करने वाले मुद्दे हैं चुनावी तैयारियां और विवाद।
- सितंबर 2025 में, ECI ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEOs) के साथ एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision: SIR) की तैयारियों की समीक्षा की गई।
- यह SIR वर्ष के अंत तक राष्ट्रव्यापी स्तर पर आयोजित किया जाएगा, जो 2025 के अंत में होने वाले राज्य चुनावों से पहले महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, 9 सितंबर 2025 को उपराष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें सी.पी. राधाकृष्णन विजयी घोषित किए गए।
- हालांकि, ECI की सबसे बड़ी सुर्खियां विवादों से जुड़ी हैं।
- विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस नेता राहुल गांधी, ने ECI पर "वोट चोरी" (vote theft) के गंभीर आरोप लगाए हैं।
- राहुल गांधी ने रायबरेली में कहा कि भाजपा और ECI मिलकर वोट चुरा रहे हैं, और यह स्लोगन "वोट चोर, गद्दी छोड़" पूरे देश में सिद्ध हो रहा है।
- ये आरोप मुख्य रूप से मतदाता सूची में अनियमितताओं से जुड़े हैं, जैसे डुप्लिकेट नाम, गलत पते (जैसे हाउस नंबर 0), और एक ही व्यक्ति का दो लोकसभा क्षेत्रों में नाम होना।
- बिहार SIR में भी ऐसे आरोप लगे हैं, जहां दस्तावेजों की जांच में कथित हेराफेरी का दावा किया गया।
- अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी ECI की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, जिसमें मतदाता सूची संशोधन और वोट चोरी के दावों को शामिल किया गया है।
- ECI ने इन आरोपों को खारिज किया है और राहुल गांधी से माफी या शपथ-पत्र की मांग की है।
- मद्रास हाई कोर्ट ने भी एक PIL को खारिज कर दिया, जिसमें ECI से स्पष्टीकरण मांगा गया था, और इसे "अनुचित और तथ्यहीन" बताया।
- ये विवाद ECI की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, विशेष रूप से जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन न करने पर आलोचना हो रही है, जैसे आधार को ID के रूप में स्वीकार न करना।
भारत निर्वाचन आयोग
- भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India - ECI) भारत का एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है, जो देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और नियमित निर्वाचनों के संचालन के लिए जिम्मेदार है।
- यह आयोग लोक सभा, राज्य सभा, राज्य विधान सभाओं, राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
- आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी, और यह संविधान के भाग XV (अनुच्छेद 324 से 329) के अंतर्गत कार्य करता है।
संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रमुख प्रावधान हैं। ये प्रावधान आयोग की स्वतंत्रता, शक्तियों और कार्यों को सुनिश्चित करते हैं। मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- अनुच्छेद 324:
- यह निर्वाचन आयोग का मूल प्रावधान है। इसके अनुसार, संसद के लिए, राज्य विधान मंडलों के लिए तथा राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के पदों के लिए होने वाले सभी निर्वाचनों (संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अधीन न आने वाले) के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित होगी।
- आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner - CEC) और राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर निर्धारित अन्य निर्वाचन आयुक्तों (Election Commissioners) की व्यवस्था है।
- यदि अन्य आयुक्त नियुक्त होते हैं, तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त आयोग का अध्यक्ष होगा।
- आयोग के निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं, और यदि मतभेद हो तो बहुमत से। आयोग की शक्तियाँ कार्यपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं हो सकतीं; ये केवल संवैधानिक उपबंधों और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों (जैसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951) से बंधी हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, आयोग के निर्णय न्यायिक पुनरीक्षण के पात्र हैं, लेकिन यह स्वेच्छाचारी कार्य नहीं कर सकता।
- अनुच्छेद 325: कोई व्यक्ति धर्म, जाति, वर्ण या लिंग के आधार पर मतदाता सूची से वंचित नहीं किया जाएगा। यह एकसमान मतदाता सूची सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 326: वयस्क मताधिकार का प्रावधान, अर्थात् 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिक मतदान का अधिकार रखते हैं।
- अनुच्छेद 327 और 328: संसद और राज्य विधान मंडलों को निर्वाचन संबंधी कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 329: निर्वाचन संबंधी विवादों को न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता।
ये प्रावधान आयोग को स्वतंत्र बनाते हैं, और इसका उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। 2023 में "मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम" द्वारा इन प्रावधानों को मजबूत किया गया, जिसमें आयोग की स्वायत्तता बढ़ाने पर जोर दिया गया।
नियुक्ति प्रक्रिया
निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। वर्तमान में आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं (1989 में इसे तीन सदस्यीय बनाया गया)। नियुक्ति से संबंधित मुख्य बिंदु निम्न हैं:
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) की नियुक्ति:
- राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- 2023 के अधिनियम के अनुसार, नियुक्ति के लिए एक चयन समिति गठित की जाती है, जिसमें:
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष),
- लोक सभा में विपक्ष के नेता,
- एक केंद्रीय मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामित)।
- यह प्रक्रिया 1991 के पुराने अधिनियम को प्रतिस्थापित करती है और आयोग की स्वतंत्रता बढ़ाती है।
- योग्यता: अधिनियम में स्पष्ट योग्यता निर्धारित की गई है, जैसे प्रशासनिक या न्यायिक अनुभव।
- अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति:
- राष्ट्रपति द्वारा, मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सलाह से।
- चयन समिति वही रहती है जो CEC के लिए है।
- कार्यकाल और सेवा शर्तें:
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त: 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो।
- अन्य निर्वाचन आयुक्त: 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो (हालांकि 2023 अधिनियम में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है)।
- वेतन और भत्ते: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष (CEC के लिए)।
- पद से हटाना: मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है। अन्य आयुक्तों को CEC की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
- सेवानिवृत्ति के बाद: 2023 अधिनियम में पुनर्नियुक्ति प्रतिबंधित है, लेकिन सरकार के अन्य पदों पर नियुक्ति पर स्पष्ट प्रतिबंध नहीं है।
- क्षेत्रीय निर्वाचन आयुक्त: अनुच्छेद 324(4) के अनुसार, राष्ट्रपति आयोग की सहायता के लिए क्षेत्रीय आयुक्त नियुक्त कर सकता है, लेकिन वर्तमान में यह प्रावधान उपयोग में नहीं है।
ECI की प्रमुख उपलब्धियां
- यह भारतीय लोकतंत्र की मजबूती दर्शाती हैं। अब तक 18 लोकसभा चुनाव और 400 से अधिक राज्य विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित किए गए हैं।
- मतदाता पंजीकरण में 100 करोड़ का लक्ष्य हासिल करना एक बड़ी सफलता है।
- पंजीकृत मतदाताओं के लिंगानुपात में सुधार हुआ है—2019 में 1,000 पुरुषों पर 928 महिलाएं थीं, जो 2024 में 948 हो गया।
- राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए उम्मीदवारों को आपराधिक मामलों का विवरण प्रकाशित करना अनिवार्य किया गया।
- विभिन्न पहलें जैसे सिस्टेमैटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन (SVEEP) मतदाताओं को जागरूक करती हैं, जबकि SAKSHAM ऐप दिव्यांग मतदाताओं के लिए मतदान को सुलभ बनाता है।
चुनौतियां: वोट चोरी के आरोप और अन्य मुद्दे
- ECI के समक्ष कई चुनौतियां हैं, जो इसकी स्वायत्तता और प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।
- पूर्ण स्वायत्तता की कमी एक प्रमुख मुद्दा है—चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों का बहुमत होने से स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं।
- CEC के विपरीत, ECs को CEC की सिफारिश पर हटाया जा सकता है।
- ECI के पास राजनीतिक दलों के पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है, भले ही वे नियमों का उल्लंघन करें।
- इसके अलावा, ECI सरकारी कर्मचारियों पर निर्भर है, जिससे स्वतंत्र कार्यबल की कमी महसूस होती है।
वर्तमान में, वोट चोरी के आरोप
- वोट चोरी के आरोप ECI की सबसे बड़ी चुनौती हैं।
- 2025 में, विपक्ष ने ECI पर मतदाता सूची में हेराफेरी का आरोप लगाया है, जैसे बिहार SIR में डुप्लिकेट एंट्रीज और गलत डेटा।
- राहुल गांधी ने "वोटर अधिकार यात्रा" में ECI और भाजपा की साझेदारी का दावा किया, जिससे गरीबों और पिछड़ों के वोट चुराए जा रहे हैं।
- ECI ने इन आरोपों को "अनुचित" बताते हुए खारिज किया और कहा कि मतदाता सूची पारदर्शी है, लेकिन विपक्ष CCTV फुटेज और पूर्ण डिजिटल रोल जारी करने की मांग कर रहा है।
- अन्य आरोपों में आधार निर्देशों का पालन न करना शामिल है, जिस पर कांग्रेस ने ECI की आलोचना की।
- ये मुद्दे ECI की विश्वसनीयता को चुनौती दे रहे हैं, जैसा कि BBC ने रिपोर्ट किया।
समाधान: सुधार और आगे की राह
- ECI को मजबूत बनाने के लिए कई सिफारिशें हैं। गोस्वामी समिति (1990) और विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट में चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा विपक्ष नेता और मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल करने का सुझाव दिया गया है।
- सेवानिवृत्ति के बाद CEC और ECs को सरकारी पदों से अपात्र घोषित करने की सिफारिश है, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।
- ECI के लिए स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना से प्रशासनिक स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी।
- अनुच्छेद 324(5) में संशोधन कर CEC और ECs के हटाने की प्रक्रिया समान बनाई जानी चाहिए।