(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने देश के 50 शहरों में 10 वायरसों के लिए अपशिष्ट जल निगरानी शुरू करने की घोषणा की है।
पर्यावरणीय निगरानी (Environmental Surveillance) के बारे में
- पर्यावरण निगरानी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पर्यावरण के नमूनों, जैसे कि अपशिष्ट जल, मृदा या सार्वजनिक स्थानों से एकत्रित सामग्री का विश्लेषण करके रोगजनक (Pathogens: बैक्टीरिया व वायरस) सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति और उनके बदलावों का पता लगाया जाता है।
- यह निगरानी रोगों के प्रसार को समझने और उनके प्रकोप को रोकने में मदद करती है।
कार्यप्रणाली
- सीवेज उपचार संयंत्रों, अस्पतालों के अपशिष्ट, रेलवे स्टेशनों या हवाई जहाज के शौचालयों जैसे सार्वजनिक स्थानों से नमूने एकत्र किए जाते हैं।
- ये नमूने रोगजनकों की दैनिक बदलावों को दर्शाते हैं क्योंकि संक्रमित व्यक्तियों के मल या मूत्र में रोगजनक उत्सर्जित होते हैं।
- परजीवी कृमियों (जैसे- राउंडवर्म व हुकवर्म) से होने वाली बीमारियों को भी अपशिष्ट जल एवं मृदा के नमूनों के माध्यम से निगरानी की जा सकती है।
- सख्त प्रोटोकॉल के तहत नमूने को एकत्र एवं विश्लेषण किया जाता है जिसमें रोगजनकों का पता लगाने और उनके जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से उनके प्रकारों की पहचान की जाती है।
- यह तुलनात्मक विश्लेषण एवं रोगजनकों की मात्रा का आकलन संभव बनाता है।
महत्व
- परंपरागत रूप से किसी समुदाय में संक्रमण के स्तर का पता लगाने के लिए रोगियों में नैदानिक जांच (क्लिनिकल केस डिटेक्शन) की जाती थी।
- हालांकि, सभी संक्रमित लोग में लक्षण प्रदर्शित नहीं होता है और हल्के लक्षण होने पर जांच नहीं करवाते हैं।
- इससे वास्तविक संक्रमित लोगों की संख्या का सटीक आकलन नहीं हो पाता है।
- पर्यावरण निगरानी इस कमी को पूरा करती है और संभावित प्रकोपों की शुरुआती चेतावनी देती है।
- अपशिष्ट जल में रोगजनकों का स्तर बढ़ने से एक सप्ताह पहले ही प्रकोप की संभावना का संकेत मिल सकता है।
भारत की प्रगति
- भारत में अपशिष्ट जल निगरानी की शुरुआत वर्ष 2001 में मुंबई में पोलियो के लिए हुई थी।
- कोविड-19 महामारी के दौरान पांच शहरों में इस तरह के निगरानी कार्यक्रम शुरू किए गए, जो अभी भी जारी हैं।
- आई.सी.एम.आर. ने 50 शहरों में 10 वायरसों के लिए अपशिष्ट जल निगरानी शुरू करने की योजना बनाई है।
- यह समुदायों में वायरल लोड में वृद्धि का पता लगाने में मदद करेगा।
- इसके अलावा एवियन इन्फ्लूएंजा जैसे वायरसों की निगरानी भी शुरू की गई है।
वैश्विक उदाहरण
- पोलियो निगरानी: विश्व स्तर पर अपशिष्ट जल निगरानी का उपयोग पोलियो उन्मूलन कार्यक्रमों में किया जाता है। यह उन क्षेत्रों में प्रभावी है जहाँ नैदानिक जांच सीमित है।
- कोविड-19: नीदरलैंड एवं अमेरिका जैसे देशों ने महामारी के दौरान अपशिष्ट जल निगरानी का उपयोग करके प्रकोप की शुरुआती चेतावनी प्राप्त की।
- खसरा और हैजा: अफ्रीकी एवं एशियाई देशों में इन रोगों की निगरानी के लिए अपशिष्ट जल का विश्लेषण किया जाता है।
- नई तकनीकें: कुछ देशों में, सार्वजनिक स्थानों पर खांसी की ध्वनियों का विश्लेषण मशीन लर्निंग के माध्यम से श्वसन रोगों की निगरानी के लिए किया जा रहा है।
भारत के लिए चुनौतियां
- डाटा साझा करने में कमी: विभिन्न संस्थानों के बीच डाटा व प्रोटोकॉल का आदान-प्रदान सीमित होना
- बुनियादी ढांचा: अपशिष्ट जल निगरानी के लिए उन्नत प्रयोगशालाओं एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी
- एकीकृत दृष्टिकोण की कमी: वर्तमान में निगरानी परियोजना-आधारित है, न कि राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत
- वित्तीय और तकनीकी संसाधन: जीनोम अनुक्रमण एवं डाटा विश्लेषण के लिए संसाधनों की कमी
- जागरूकता: स्थानीय प्रशासनों एवं समुदायों में पर्यावरण निगरानी के महत्व को लेकर जागरूकता की कमी
आगे की राह
- भारत को एक राष्ट्रीय अपशिष्ट जल निगरानी प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जो नियमित रोग निगरानी के साथ एकीकृत हो।
- डाटा साझा करने के लिए मानकीकृत प्रोटोकॉल व टेम्पलेट्स बनाए जाने चाहिए।
- उन्नत तकनीकों, जैसे मशीन लर्निंग और जीनोम अनुक्रमण, को अपनाने के लिए निवेश बढ़ाना होगा।
- स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
- इसके अलावा अन्य पर्यावरणीय निगरानी विधियों (जैसे- ध्वनि विश्लेषण) को भी अपनाया जा सकता है।
- एक मजबूत और समन्वित दृष्टिकोण से भारत रोग प्रकोपों को रोकने एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने में सक्षम होगा।