(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
असम के सिलसाको (गुवाहाटी) और अन्य क्षेत्रों में हाल ही में चलाए गए बेदखली अभियानों के खिलाफ पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र विशेषकर नागालैंड और मिज़ोरम जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
असम में बेदखली अभियान: एक अवलोकन
- असम सरकार सरकारी या आर्द्रभूमि (जैसे सिलसाको बील) पर ‘अतिक्रमण’ होने का दावा करते हुए आदिवासी समुदायों को उनके स्थान से हटा रही है।
- इस दौरान कई सरकारी कर्मचारियों और आदिवासी समुदायों (नागा, मिज़ो, कुकी, कार्बी सहित) के घर ध्वस्त कर दिए गए।
पूर्वोत्तर की जनजातीय भावनाओं पर प्रभाव
- बेदखल किए गए लोगों में नागालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर के आदिवासी शामिल हैं जो कई दशकों से असम में रह रहे हैं।
- इनके भीतर अलगाव और असुरक्षा की भावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
- जनजातीय समूह इसे मूल निवासियों के अधिकारों का उल्लंघन और जातीय (ethnic) पहचान पर हमला मानते हैं।
कानूनी और प्रशासनिक पहलू
- असम का दावा है कि ये ज़मीनें सरकारी या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हैं (जैसे, संरक्षित आर्द्रभूमि)।
- हालाँकि, कई बेदखल लोगों के पास बिजली के बिल, राशन कार्ड और व्यापार लाइसेंस जैसे दस्तावेज़ हैं, जिससे कानूनी पुनर्वास और उचित प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में चिंता का विषय
- जातीय एकजुटता: पूर्वोत्तर की जनजातियों के बीच घनिष्ठ जातीय और पारिवारिक संबंध हैं।
- निशाना बनाए जाने का डर: यह धारणा कि कुछ समुदायों को चुनिंदा तरीके से बेदखल किया जा रहा है।
- असम में असुरक्षा: पूर्वोत्तर के प्रवासी (विशेषकर आदिवासी) अब असम में भेदभाव या मताधिकार से वंचित होने का डर महसूस कर रहे हैं।
पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों की प्रतिक्रियाएँ
- मिज़ोरम: विधानसभा ने असम में मिज़ो लोगों की बेदखली की निंदा करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया।
- नागालैंड और मणिपुर: नागरिक समाज समूहों और छात्र संगठनों ने इस अभियान की निंदा की।
- असम सरकार: कानून के अनुसार कार्रवाई का बचाव किया और स्पष्ट किया कि अतिक्रमण हटाना निष्पक्ष और पारिस्थितिक संतुलन के लिए आवश्यक है।
संवैधानिक एवं विधिक दृष्टिकोण
- अनुच्छेद 19(घ), (ङ): भारतीय क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास और बसने का अधिकार।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006: पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- उचित मुआवजे का अधिकार अधिनियम, 2013: विस्थापन के मामलों में अनिवार्य।
- असम भूमि नीति एवं आर्द्रभूमि नियम: बेदखली का आधार प्रदान करते हैं, लेकिन इसे पुनर्वास के साथ संतुलित होना चाहिए।
आगे की राह
- पुनर्वास और पुनर्स्थापन के साथ पारदर्शी, निष्पक्ष बेदखली प्रक्रिया।
- आदिवासी नेताओं के साथ संवाद और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के साथ समन्वय।
- शहरी और पर्यावरणीय शासन के प्रति एक मानवीय, अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का पालन किया जाना आवश्यक।