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टेलीविजन की विकास यात्रा: तकनीक एवं संभावनाएँ

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान और प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास व अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

टेलीविजन (TV) हमारी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो मनोरंजन एवं जानकारी का साधन है। पहले भारी-भरकम कैथोड रे ट्यूब (CRT) टी.वी. से लेकर आज के पतले LED एवं OLED स्क्रीन तक समय के साथ टी.वी. की तकनीक में अत्यधिक बदलाव आया है। आंशिक चार्ज वाले कणों (Fractional Charge Particles) की खोज जैसे हालिया वैज्ञानिक शोध भविष्य में टी.वी. को और भी उन्नत बना सकती है।

टी.वी. और इसकी विभिन्न पीढ़ियाँ

  • पहली पीढ़ी (CRT टी.वी.)
    • 1930-1940 के दशक में शुरूआत हुई, जब कैथोड रे ट्यूब (CRT) का आविष्कार हुआ।
    • भारी एवं बक्से जैसे टी.वी., जिनमें कांच की मोटी स्क्रीन होती थी।
    • इलेक्ट्रॉन बीम और फॉस्फोर सामग्री का उपयोग करके तस्वीरें बनती थीं।
  • दूसरी पीढ़ी (प्लाज्मा एवं LCD)
    • 1990 के दशक में शुरू, पतली स्क्रीन एवं बेहतर तस्वीर गुणवत्ता
    • प्लाज्मा टी.वी. में गैस-आधारित पिक्सल और LCD में लिक्विड क्रिस्टल का उपयोग
    • हल्की एवं बिजली की कम खपत किंतु अभी भी मोटी एवं सीमित रिजॉल्यूशन
  • तीसरी पीढ़ी (LED एवं OLED)
    • 2000 के दशक से लोकप्रिय, LED (Light Emitting Diode) और OLED (Organic LED) तकनीक
    • बहुत पतली स्क्रीन, उच्च रिजॉल्यूशन (4K, 8K) और बेहतर रंग
    • बिजली की कम खपत और अधिक आयु 
  • चौथी पीढ़ी (स्मार्ट टी.वी.)
    • इंटरनेट से जुड़े टी.वी., जो स्ट्रीमिंग सेवाएँ (नेटफ्लिक्स, यूट्यूब) और स्मार्ट फीचर्स प्रदान करते हैं।
    • टचस्क्रीन, वॉयस कंट्रोल एवं AI-आधारित फीचर्स शामिल।

टी.वी. के पीछे का विज्ञान: स्क्रीन एवं चुंबकीय क्षेत्र

  • इलेक्ट्रॉन्स से प्रकाश (रोशनी) निर्माण की विधि
    • टी.वी. में विद्युत् प्रवाह इलेक्ट्रॉन्स के रूप में होता है जो स्क्रीन पर प्रकाश उत्पन्न करता है।
    • फॉस्फोरस सामग्री : यह विशेष सामग्री इलेक्ट्रॉन्स के टकराने पर प्रकाश (रोशनी) देती है। पुराने ट्यूबलाइट्स एवं CRT टी.वी. में इसका उपयोग होता था।
    • जब इलेक्ट्रॉन्स फॉस्फोरस से टकराते हैं तो यह सामग्री ऊर्जा अवशोषित करती है और फिर उसे प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करती है।
  • कैथोड रे ट्यूब (CRT)
    • पुराने टी.वी. में एक ट्यूब होती थी जो इलेक्ट्रॉन्स की धारा (बीम) बनाती थी।
    • यह बीम स्क्रीन की ओर जाती थी जहाँ फॉस्फोरस कोटिंग से तस्वीरें बनती थीं।
  • चुंबकीय क्षेत्र (लोरेंज बल)
    • इलेक्ट्रॉन्स को स्क्रीन पर सही जगह भेजने के लिए चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग होता था।
    • चुंबकीय क्षेत्र इलेक्ट्रॉन्स को गोलाकार या दिशा बदलने के लिए मजबूर करता है जिससे अलग-अलग जगहों पर रोशनी बनती थी।
    • कॉपर की तार एवं कॉइल्स से बने एनालॉग सर्किट इस प्रक्रिया को नियंत्रित करते थे।
  • आधुनिक स्क्रीन (LED/OLED)
    • LED में गैलियम-आर्सेनाइड-फॉस्फाइड (GaAsP) जैसे पदार्थों का उपयोग होता है जो इलेक्ट्रॉन्स के प्रवाह से रोशनी बनाते हैं।
    • OLED में कार्बनिक पदार्थों का उपयोग होता है जो बेहतर रंग एवं गहरे काले रंग (True Black) प्रदान करते हैं।
    • इलेक्ट्रॉन्स को सटीक रूप से नियंत्रित करने के लिए मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक मदरबोर्ड का उपयोग होता है।

अन्य महत्वपूर्ण पहलू

  • टी.वी. में चित्र निर्माण 
    • टी.वी. स्क्रीन पर कुछ हिस्से रोशनी करते हैं और कुछ हिस्से अंधेरे रहते हैं, जिससे तस्वीर बनती है।
    • तस्वीरें इतनी तेजी से बदलती हैं कि हमारा दिमाग उन्हें चलती-फिरती तस्वीर (मूविंग पिक्चर) के रूप में देखता है।
  • ट्रांजिस्टर का योगदान
    • वर्ष 1947 में बेल लैब्स (अमेरिका) में ट्रांजिस्टर का आविष्कार हुआ, जिससे टी.वी. छोटी एवं सस्ती हुई।
    • ट्रांजिस्टर ने एनालॉग सर्किट्स का स्थान लिया और डिजिटल तकनीक को जन्म दिया।
  • आयाम (Dimensions) का महत्व
    • पुराने टी.वी. में इलेक्ट्रॉन्स तीन आयामों (3D) में हिलते थे (ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, आगे-पीछे)।
    • भविष्य में दो आयामों (2D) में चलने वाले इलेक्ट्रॉन्स का उपयोग हो सकता है, जैसे- टेबल पर चलने वाली चींटी।
  • क्वांटम भौतिकी एवं एन्यॉन्स (Anyons)
    • दो आयामों में कम तापमान पर इलेक्ट्रॉन्स ‘आंशिक क्वांटम हॉल अवस्था’ का निर्माण करते हैं, जिससे नए कण (एन्यॉन्स) बनते हैं।
    • एन्यॉन्स में इलेक्ट्रॉन का केवल एक-तिहाई चार्ज (आवेश) होता है और ये सामग्री के किनारों पर चलते हैं।
    • वर्ष 1998 में रॉबर्ट लाफलिन, होर्स्ट स्टॉर्मर और डैनियल त्सुई को इसके लिए नोबेल पुरस्कार मिला।
    • वर्ष 2025 में प्रो. जैनेंद्र जैन (IIT कानपुर के पूर्व छात्र) को इस क्षेत्र में योगदान के लिए वुल्फ पुरस्कार प्रदान किया गया।

भविष्य के टी.वी.

  • क्वांटम तकनीक
    • एन्यॉन्स का उपयोग करके क्वांटम कंप्यूटर बनाए जा सकते हैं जो भविष्य के टी.वी. को पूरी तरह बदल सकते हैं।
    • ये टी.वी. आज की तुलना में कई गुना तेज, हल्के एवं ऊर्जा-कुशल हो सकते हैं।
  • नई सामग्री
    • भविष्य में नई सामग्रियों (जैसे- ग्राफीन या अन्य क्वांटम सामग्री) का उपयोग हो सकता है जो स्क्रीन को और पतला व लचीला बनाएगी।
  • वर्चुअल एवं ऑगमेंटेड रियलिटी
    • टी.वी. स्क्रीन 3D होलोग्राम या वर्चुअल रियलिटी में बदल सकती हैं, जिससे दर्शक कहानी का हिस्सा बन सकें।
  • AI एवं स्मार्ट फीचर्स
    • भविष्य के टी.वी. दर्शकों की पसंद के अनुसार सामग्री सुझाएँगे और वॉयस या जेस्चर कंट्रोल से चलेंगे।
  • ऊर्जा दक्षता
    • कम विद्युत् खपत एवं पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग बढ़ेगा।

निष्कर्ष

टेलीविजन की तकनीक ने भौतिकी एवं इंजीनियरिंग के बल पर लंबा सफर तय किया है। CRT से LED एवं OLED तक और अब क्वांटम भौतिकी तथा एन्यॉन्स की खोज के साथ टी.वी. का भविष्य अधिक रोमांचक होने वाला है। जिस प्रकार वर्ष 1947 में ट्रांजिस्टर ने टी.वी. को बदल दिया, उसी प्रकार क्वांटम तकनीक भी अगले 30 वर्षों में टी.वी. को वर्तमान कल्पना से परे बना सकती है। 

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