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फॉरेंसिक विशेषज्ञता : विज्ञान एवं न्याय 

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।)

संदर्भ

10 नवंबर 2025 को दिल्ली के लाल किला परिसर के पास एक भयंकर विस्फोट हुआ, जिसमें कम से कम 13 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। इस तरह की घटनाओं में फॉरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि उनके वैज्ञानिक विश्लेषण से यह तय किया जा सकता है कि विस्फोट दुर्घटनावश हुआ या सुनियोजित अपराध था।

फॉरेंसिक विशेषज्ञों की भूमिका 

  • लाल किला विस्फोट की घटना के तुरंत बाद दिल्ली फॉरेंसिक प्रयोगशाला के विस्फोट विभाग के विशेषज्ञ पुलिस के साथ घटनास्थल पर पहुँच गए। उनका मुख्य कार्य है :
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विस्फोट के कारणों की जाँच कर प्रमाण एकत्र करना।
  • प्रयोगशाला विश्लेषण द्वारा यह पता लगाना कि किस प्रकार का विस्फोटक उपयोग हुआ।
  • अपराधियों की पहचान में सहायता करना।
  • विस्फोट की जांच सामान्य अपराधों से अधिक जटिल होती है, क्योंकि सब कुछ पलभर में नष्ट हो जाता है। 
  • इसके बावजूद, विशेषज्ञ “लोकार्ड के सिद्धांत (Locard’s Principle of Exchange)” पर काम करते हैं, इसके अनुसार  “हर अपराधी अपराध स्थल पर कुछ छोड़कर जाता है और कुछ अपने साथ लेकर जाता है।” 
  • यही वैज्ञानिक सिद्धांत अपराध स्थल से साक्ष्य एकत्र करने का आधार बनता है।

नमूना संग्रह और विश्लेषण की प्रक्रिया

  • घटनास्थल से जले हुए मलबे, कार के टुकड़े, राख और अन्य अवशेषों को इकट्ठा किया जाता है। 
  • इसके बाद विशेषज्ञ स्पेक्ट्रोस्कोपिक और क्रोमैटोग्राफिक तकनीकों का उपयोग करते हैं ताकि यह जाना जा सके कि कौन से रासायनिक पदार्थों या विस्फोटकों का उपयोग किया गया।
  • अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (जैसे टाइमर या सर्किट बोर्ड) मिला हो तो यह संकेत देता है कि विस्फोट रिमोट-कंट्रोल्ड हो सकता है।

मुख्य वैज्ञानिक परीक्षण 

  • फूरियर ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (FTIR) एटेन्यूएटेड टोटल रिफ्लेक्टेंस-FTIR (ATR-FTIR) : इन्फ्रारेड प्रकाश के साथ नमूनों की प्रतिक्रिया का विश्लेषण, जिससे रासायनिक संरचना ज्ञात होती है।
  • रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी : विस्फोटकों की रासायनिक पहचान के लिए प्रयोग।
  • स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (SEM) : विस्फोट के बाद बचे टुकड़ों की सूक्ष्म संरचना का अध्ययन।
  • एनर्जी डिस्पर्सिव एक्स-रे (EDX) : अवशेषों का मौलिक (elemental) विश्लेषण।
  • थर्मल एनालिसिस : विस्फोटक पदार्थों की स्थिरता और तापीय गुणों का अध्ययन।
  • लेजर आधारित मानचित्रण और फ़्लैश पॉइंट टेस्टिंग : आग के फैलाव, दिशा, और स्रोत का निर्धारण कर यह तय करना कि विस्फोट दुर्घटना थी या साजिश।

अन्य फॉरेंसिक शाखाओं की भागीदारी

इस प्रकार की घटनाओं में केवल विस्फोट विशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि कई विभाग मिलकर काम करते हैं:

  • एक्सप्लोसिव विभाग : विस्फोटक पदार्थों की पहचान।
  • फॉरेंसिक फिजिक्स डिवीज़न : कार के इंजन और चेसिस नंबरों की थर्मोकेमिकल जाँच।
  • साइबर फोरेंसिक : CCTV फुटेज और डिजिटल साक्ष्यों की जांच।
  • DNA एवं बायोलॉजी विभाग : शवों की पहचान और जैविक साक्ष्यों का परीक्षण।

संवैधानिक और विधिक पहलू

1. संविधान के तहत वैज्ञानिक जांच का अधिकार

  • अनुच्छेद 21 : “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार” केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति को न्याय और निष्पक्ष जांच का अधिकार मिले। फॉरेंसिक साक्ष्य, वैज्ञानिक जांच और पारदर्शिता इस अधिकार का विस्तार हैं।
  • अनुच्छेद 51A (g) : नागरिकों पर पर्यावरण और विज्ञान के प्रति जागरूकता की जिम्मेदारी डालता है। फॉरेंसिक विज्ञान इसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का व्यावहारिक उदाहरण है, जिससे समाज में न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

2. विधिक ढांचा 

  • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 
    • धारा 101(2), धारा 226, धारा 227, धारा 324(4) विस्फोटक पदार्थों के अनुचित उपयोग और संपत्ति को हानि पहुँचाने से संबंधित अपराधों को परिभाषित करती हैं।
    • धारा 103(2) : विस्फोट से मृत्यु पर हत्या का अपराध लागू होता है।
  • विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 : विस्फोटकों के निर्माण, भंडारण और उपयोग को नियंत्रित करता है। फॉरेंसिक विशेषज्ञ इस अधिनियम के तहत प्रयुक्त रासायनिक सामग्री की जांच में सहयोग करते हैं।
  • आतंकवादी गतिविधियाँ (UAPA, 1967): यदि विस्फोट को आतंकवादी गतिविधि माना जाता है, तो UAPA के तहत साक्ष्य एकत्रित करने में फॉरेंसिक रिपोर्ट अहम भूमिका निभाती है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872): धारा 45 के तहत “विशेषज्ञ गवाही” को वैध साक्ष्य माना गया है। अतः फॉरेंसिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट न्यायिक प्रक्रिया में निर्णायक महत्व रखती है।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 : धारा 329 और 330 फॉरेंसिक रिपोर्ट और वैज्ञानिक अधिकारियों की गवाही को न्यायालय में स्वीकार्य बनाती हैं।

निष्कर्ष

विस्फोट जैसी जटिल घटनाओं की जांच केवल पुलिस कार्रवाई नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और संवैधानिक प्रक्रिया है। फॉरेंसिक विशेषज्ञ अपनी तकनीकी दक्षता और कानूनी दायित्वों के बीच संतुलन रखते हुए न केवल अपराध की तह तक पहुँचते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि हर साक्ष्य न्यायालय में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो। इस प्रकार, फॉरेंसिक जांच संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष न्याय का अभिन्न अंग है, जहाँ विज्ञान और न्याय साथ-साथ चलते हैं।

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