(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी नींव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। हालाँकि, जब यह स्वतंत्रता साहित्य, रंगमंच या सिनेमा के माध्यम से अभिव्यक्त होती है तो उसे बार-बार ‘भावनाएँ आहत होने’ के नाम पर चुनौती दी जाती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में कमल हासन अभिनीत फिल्म ‘Thug Life’ के संदर्भ में दिए गए निर्णय एवं संबंधित टिप्पणियाँ इस बहस को एक बार फिर से प्रासंगिक बना देती हैं।
हालिया प्रकरण का संक्षिप्त विवरण
- तमिल अभिनेता कमल हासन द्वारा अभिनीत फिल्म ‘Thug Life’ की कर्नाटक में रिलीज को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि फिल्म प्रचार के दौरान उनकी कन्नड़ भाषा को लेकर की गई टिप्पणियों से कुछ समूहों की भावनाएँ आहत हो गईं।
- इससे फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर भीड़ जनित हिंसा व धमकियों का वातावरण बन गया। इस विवाद के चलते निर्माता ने स्वयं ही रिलीज रोक दी।
- इस मामले में सुनवाई करते समय सर्वोच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ-
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भीड़ के भय में नहीं जी सकती।
- हर किसी की भावना आहत हो जाती है.…तो क्या अब फिल्म, नाटक, कविता सब बंद कर देना चाहिए?
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ: लोकतांत्रिक चेतना का संदेश
- ‘भावनाएँ आहत’ होने का अंतहीन तर्क : न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने कहा कि ‘हर दिन कोई न कोई किसी न किसी बात से आहत होता है और फिर तोड़फोड़ शुरू हो जाती है’। यह मानसिकता रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए खतरा बनती जा रही है।
- राज्य की जिम्मेदारी : न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य का कर्तव्य है कि वह ऐसे समूहों एवं भीड़ों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे जो हिंसा या धमकी के माध्यम से सेंसरशिप थोपते हैं।
- वैधानिक उपायों पर बल : न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि यदि किसी को किसी टिप्पणी से आपत्ति है तो वह कानूनी प्रक्रिया अपनाए, न कि स्वेच्छा से कानून को अपने हाथ में ले।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सांस्कृतिक संवेदनशीलता
- संविधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 19(1)(a) : सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
- अनुच्छेद 19(2) : इस स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं (जैसे- सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्र की अखंडता आदि)।
- लेकिन ‘भावनाएँ आहत होना’ एक अस्पष्ट अवधारणा है जिसे वैधानिक परिभाषा नहीं दी गई है और इसका दुरुपयोग कई बार अभिव्यक्ति को दबाने के लिए होता है।
भीड़ द्वारा सेंसरशिप : एक खतरनाक प्रवृत्ति
- ‘अनौपचारिक प्रतिबंध’ (Unofficial Ban): जब राज्य द्वारा औपचारिक रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है किंतु असुरक्षा के माहौल के कारण निर्माता स्वयं ही रिलीज रोक देते हैं।
- इससे रचनात्मक स्वतंत्रता, आर्थिक हित एवं लोकतांत्रिक मूल्यों तीनों पर प्रभाव पड़ता है।
वर्तमान प्रकरण का महत्व
- न्यायपालिका की भूमिका : न्यायपालिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संरक्षक बनी है। सर्वोच्च न्यायालय के यह निर्देश भविष्य में ऐसे मामलों के लिए दृष्टांत बन सकते हैं।
- राज्य की भूमिका : भीड़ के प्रभाव में आकर अगर राज्य चुप्पी साध ले, तो यह लोकतंत्र की असफलता होगी। राज्य को अभिव्यक्ति करने वालों की सुरक्षा एवं अधिकारों की गारंटी देनी होगी।
- वैधानिक एवं संस्थागत उपायों की आवश्यकता : स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है जो फिल्मों, नाटकों व अन्य अभिव्यक्ति के माध्यमों को गैर-सरकारी प्रतिबंधों से सुरक्षा प्रदान करें।
निष्कर्ष
भारत जैसे बहुलतावादी समाज में मतभेद होना स्वाभाविक है किंतु इन्हें हिंसा व सेंसरशिप में नहीं बदला जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत का संविधान विचारों की स्वतंत्र बहस एवं असहमति की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है। यदि भारत को एक वैश्विक सांस्कृतिक शक्ति बनना है तो उसे अपनी सहिष्णुता, आलोचना के प्रति सहनशीलता, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखना होगा।
भारत में फिल्म निर्माण एवं रिलीज से संबंधित कानून
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड
- यह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक फिल्म प्रमाणन निकाय है।
- यह बोर्ड फिल्मों को प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए जिम्मेदार है जिसके बाद ही कोई फिल्म सिनेमा या टेलीविजन पर दिखाई जा सकती है।
- बोर्ड ने फिल्म की विषय-वस्तु के आधार पर अपने प्रमाणन को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया है।
- यू (Unrestricted): सभी आयु वर्ग के लिए उपयुक्त, परिवार के साथ देखने योग्य फिल्में
- यू/ए (Unrestricted with Parental Guidance)
- यू/ए 7+: 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए उपयुक्त, लेकिन 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता
- यू/ए 13+: 13 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए उपयुक्त, लेकिन 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता
- यू/ए 16+: 16 वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए उपयुक्त, लेकिन 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए माता-पिता के मार्गदर्शन की आवश्यकता
- ए (Adult): केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के लिए, जिसमें नग्नता या अश्लील सामग्री की अनुमति होती थी।
- एस (Special): विशेष दर्शकों (जैसे- डॉक्टर, इंजीनियर) के लिए सीमित
बोर्ड द्वारा फिल्म निर्माण के लिए प्रमुख दिशानिर्देश
- किसी फिल्म में सभी असामाजिक गतिविधियों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए।
- फिल्मों में आपराधिक गतिविधियों का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए।
- नस्लवाद, धार्मिक भेदभाव या किसी अन्य सामाजिक अन्याय के संदेश को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।
- शराब, नशीली दवाओं या धूम्रपान के सेवन को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।
- यौन हिंसा एवं अपराधों सहित महिलाओं के चरित्र को अपमानित करने वाली अश्लीलता या अश्लील दृश्यों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।
- विदेशी नागरिकों के साथ संबंधों पर फिल्मों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
भारतीय सिनेमा में अभिव्यक्ति एवं विचार की स्वतंत्रता
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है।
- यह अधिकार पूर्ण नहीं है और इस पर उचित प्रतिबंध भी हैं।
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 सेंसरशिप के आधार निर्धारित करता है।
फिल्म उद्योग को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कानून
- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952
- कॉपीराइट अधिनियम, 1957
- ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999
- सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024
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