क्या है :यह अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट है जो ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले मीथेन उत्सर्जन पर नवीनतम आंकड़े, विश्लेषण और कमी के अवसर प्रदान करती है।
महत्त्व :यह ट्रैकर जलवायु परिवर्तन को सीमित करने और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए मीथेन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
मुख्य निष्कर्ष
मीथेन का प्रभाव :मीथेन CO2 से 84 गुना अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है और वायुमंडल में इसकी सांद्रता प्री-इंडस्ट्रियल (पूर्व-औद्योगिक) स्तर से 2.5 गुना बढ़ चुकी है।
ऊर्जा क्षेत्र का योगदान :ऊर्जा क्षेत्र (तेल, गैस, कोयला, बायोएनर्जी) से वर्ष 2024 में 120 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन हुआ, जिसमें परित्यक्त कुओं से 8 मिलियन टन उत्सर्जन शामिल हैं। बायोएनर्जी से 20 मिलियन टन उत्सर्जन हुआ।
क्षेत्रीय स्थिति :मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका (20 मिलियन टन), अमेरिका, रूस व चीन प्रमुख उत्सर्जक हैं। नॉर्वे और नीदरलैंड में न्यूनतम उत्सर्जन तीव्रता है।
कमी के अवसर : 70% उत्सर्जन को लीक डिटेक्शन, निम्न-उत्सर्जन उपकरण और फ्लेयरिंग प्रतिबंध से रोका जा सकता है। ये उपाय लागत-प्रभावी हैं क्योंकि कैप्चर की गई गैस बेची जा सकती है।
उपग्रह और निगरानी : उपग्रह डाटा से सुपर-एमिटिंग (अति-उत्सर्जक) घटनाओं का पता चला है, लेकिन रूस और वेनेजुएला में डाटा अंतर बना हुआ है।
वैश्विक प्रतिबद्धताएँ :ग्लोबल मीथेन प्लेज में 159 देश शामिल हैं किंतु चीन, भारत व रूस अभी इससे बाहर हैं। IEA का नेट जीरो परिदृश्य वर्ष 2030 तक इसमें 75% कमी का लक्ष्य रखता है।
नवाचार :ट्रैकर में देश-स्तरीय डाटा, परित्यक्त सुविधाओं का विश्लेषण एवं इंटरैक्टिव टूल शामिल हैं।