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दिव्यांगों के सहायक उपकरणों पर जी.एस.टी.

संदर्भ

  • हाल ही में, दिव्यांगों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सहायक उपकरणों पर 5% जी.एस.टी. लगाए जाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई।
  • याचिकाकर्ता (निपुण मल्होत्रा बनाम भारत संघ में) का तर्क है कि दिव्यांगों के लिये व्हीलचेयर, तिपहिया वाहन, ब्रेल पेपर और ब्रेल घड़ियाँ आदि सहायक उपकरणों पर लगाया गया कर भेदभावपूर्ण है। इन उत्पादों पर जी.एस.टी. अधिरोपण दिव्यांगों के गरिमापूर्ण जीवन जीने की क्षमता पर एक अतिरिक्त बोझ डालता है।

उच्चतम न्यायलय का तर्क

  • न्यायालय ने इस संदर्भ में संकेत दिया कि कर उदग्रहण की समीक्षा के मामले में उसकी शक्ति सीमित है, क्योंकि कर लगाने का निर्णय एक नीतिगत विषय है अतः न्यायपालिका को सामान्यतः इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
  • इस मामले को स्थगित करने से पूर्व न्यायलय ने यह सुझाव भी दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा जी.एस.टी. परिषद् को अपनी शिकायतें प्रस्तुत करके विकल्पों को समाप्त कर दिया गया है। कौन से उत्पादों पर किस दर से कर निर्धारित किया जाना है इसके लिये जी.एस.टी. परिषद् एक शासी निकाय है।

गतिशील सहायता उपकरणों पर कर अधिरोपण

  • वस्तु एवं सेवा कर अधिरोपण से पूर्व सहायक उपकरणों को अप्रत्यक्ष करों से पूरी तरह छूट प्राप्त थी। वस्तुतः ऐसे उत्पादों को प्रत्येक राज्य में मूल्य-वर्धित कर के भुगतान से भी छूट दी गई थी।
  • जी.एस.टी. के अधिरोपण के बाद इन उपकरणों पर 18% कर लगाया गया था जिसे बाद में घटाकर 5% कर दिया गया। लेकिन दिव्यांगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सबसे बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुओं की कीमतें इस दर पर भी कई गुना बढ़ जाती है।
  • सरकार का कहना है कि इन उत्पादों को कराधान से पूर्णता राहत नहीं दी जा सकती है, क्योंकि ऐसा करने से घरेलू विनिर्माता हतोत्साहित होंगे। हालांकि घरेलू विनिर्माता अंतिम खरीदार द्वारा विनिर्माण की प्रक्रिया में कच्चे माल पर किये गए कर भुगतान पर ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ (ITC) का दावा कर सकते हैं।
  • नीति-निर्माताओं का तर्क है कि अंतिम उत्पाद पर जी.एस.टी. नहीं लगाने की स्थिति में विनिर्माता पर आई.टी.सी. का अधिक बोझ पड़ेगा। चूंकि वह किये गए कर भुगतान के लिये किसी भी क्रेडिट का दावा नहीं कर सकता है जिससे उसे अंतिम उत्पाद की कीमतों को उच्चतर रूप से देना होगा। जिसके फलस्वरूप घरेलू विनिर्माता विदेशी निर्माताओं के समान नुकसान की स्थिति में रहेंगे।

विवाद का विषय

मुख्य रूप से यह विवाद दो मामलों से सम्बंधित है- पहला विवाद जी.एस.टी. परिषद् द्वारा जारी विभिन्न पूर्व अधिसूचनाओं में मानवीय जरूरतों के लिये आवश्यक कई उत्पादों को कर से छूट देने से सम्बंधित है। दूसरा, इन मामलों में विनिर्माताओं को इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने से रोकना विधायी क्षेत्र का मामला है।

न्यायालय तथा कर उदग्रहण

  • सामान्यतः न्यायपालिका विधायी और कार्यकारी क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप नहीं करती है। लेकिन यहाँ यह सुनिश्चित करना होगा की कर कानून किसी भी तरह से न्यायिक समीक्षा के लिये पूर्णतः अयोग्य नहीं हैं।
  • करों का सीधा सम्बंध सामाजिक व्यवस्था से होता है। किसी उत्पाद पर लगाए गए कर की प्रकृति और दर दोनों एक व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों को समान रूप से प्रभावित करते हैं।
  • एक स्वतंत्र देश की न्यायपालिका को यह जानने का अधिकार होना चाहिये कि कर का अधिरोपण मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है या नहीं। जैसा कि हाल ही में कनाडा और कोलम्बिया की शीर्ष अदालतों के द्वारा किया गया।

आगे की राह

  • घरेलू विनिर्माताओं को उनके द्वारा किये गये कर भुगतान के लिये आई.टी.सी. प्राप्त करने की प्रक्रिया निर्धारित करने की शक्ति संसद को दी गई है।
  • कराधान से मुक्त उत्पादों पर लिया गया कोई भी निर्णय सामाजिक सरोकार का विषय है। दिव्यांग वर्ग की स्थिति को देखते हुए कि ये ध्यान दिया जाना चाहिये कि यह हमारे न्यायिक समानता के तार्किक विचार के अनुरूप हो तथा इसमें असमानता या भेदभाव परिलक्षित न हो। इन करों के उदग्रहण की विफलता को जी.एस.टी. लेवी का भेदभावपूर्ण होना कहा जा सकता है।
  • सरकार के पास इन वस्तुओं को कर से छूट प्राप्त अन्य वस्तुओं से अलग मानने के कई कारण हैं। राज्य के नीति-निदेशक तत्त्वों में (अनुच्छेद 41, 46) राज्य को निःशक्त एवं दुर्बल वर्गों के हित में नीति-निर्माण का निर्देश दिया है। राज्य द्वारा इन निर्देशों का पालन करते हुए सहायक उपकरणों को कर भुगतान से पूर्णता छूट देने पर उसे समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त जी.एस.टी. परिषद् कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के समान सहायक उपकरणों पर लगाए गए कर पर पूरी तरह से छूट दे सकती है।

प्री फैक्ट्स :

  • भारतीय संविधान अनुच्छेद 41: राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
  • भारतीय संविधान अनुच्छेद 46: राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा।
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