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व्यापार युद्ध का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2; उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।)

संदर्भ

हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध के कारण वैश्विक व्यापार व्यवस्था में अस्थिरता आई है। वैश्वीकरण के कारण इस अस्थिरता का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है। 

क्या है व्यापार युद्ध 

  • व्यापार युद्ध की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब देश एक-दूसरे पर आयात शुल्क बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए अमेरिका और चीन के बीच चल रही टैरिफ़ वॉर ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को बाधित किया है। इससे वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की मांग बढ़ने से भारत जैसे उभरते बाज़ार देशों के लिए नए अवसर और चुनौतियाँ दोनों उत्पन्न हुई हैं।

वर्तमान व्यापार युद्ध से भारतीय आयात में वृद्धि के संभावित कारण

वैकल्पिक आपूर्ति केंद्र के रूप में चीन से शिफ्टिंग

  • अमेरिका जैसे पश्चिमी देश चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। इससे कुछ कंपनियाँ भारत को विनिर्माण और आपूर्ति केंद्र के रूप में देख रही हैं। 
    • हालाँकि अल्पावधि में भारत को अभी भी आवश्यक कच्चे माल और उत्पादों के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता है।

विनिर्माण आधार की सीमाएँ

भारत का विनिर्माण क्षेत्र अभी इतना विकसित नहीं हुआ है कि वह घरेलू मांग की पूर्ति पूरी तरह से कर सके। इससे उच्च तकनीक वाले उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी आदि का आयात बढ़ सकता है।

रुपये का अवमूल्यन और तेल आयात
वैश्विक अस्थिरता के चलते रुपये का मूल्य कमजोर हुआ है, जिससे तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात पर भार बढ़ सकता है।

वैकल्पिक बाजारों की तलाश
चीन और अमेरिका के बीच तनाव के कारण कई देश भारत को एक वैकल्पिक व्यापार भागीदार के रूप में देख रहे हैं। इससे भारत का निर्यात तो बढ़ सकता है, पर उच्च गुणवत्ता वाले आगतों के लिए आयात भी बढ़ेगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव 

सस्ते उत्पादों की डंपिंग

  • ट्रेड वॉर के चलते चीन जैसे देश, जो अमेरिकी बाजार में निर्यात नहीं कर पा रहे हैं, अपने अतिरिक्त माल को भारत जैसे विकासशील देशों की ओर मोड़ सकते हैं। 
    • इससे भारत में सस्ते चीन निर्मित उत्पादों की डंपिंग से घरेलू उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

आयात वृद्धि का दबाव

  • अमेरिका-चीन के बीच व्यापार शुल्कों के चलते कंपनियां चीन से हटकर भारत जैसे विकल्पों की ओर झुक सकती हैं, जिससे भारत के आयात में कुछ तकनीकी और औद्योगिक वस्तुओं की मांग बढ़ सकती है।
  • वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण भारत को कम दरों पर आयात उपलब्ध हो सकता है, जिससे आयात वृद्धि हो सकती है।

 व्यापार घाटे में वृद्धि 

आयात में अप्रत्याशित वृद्धि से भारत का व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ सकता है, जो चालू खाता घाटे (Current Account Deficit) और मुद्रा विनिमय दर पर भी दबाव उत्पन्न कर सकता है।

घरेलू MSMEs पर प्रभाव

सस्ते आयातित उत्पादों के भारत में डंपिंग से घरेलू सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की प्रतिस्पर्धा क्षमता घट सकती है, जिससे रोजगार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

भारत के लिए संभावित अवसर

निर्यात अवसरों में वृद्धि

व्यापार युद्ध के कारण अमेरिका जैसे देश भारत से अधिक आयात करने पर विचार कर सकते हैं, विशेषकर आईटी सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्रों में।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत का प्रवेश

भारत को ‘चीन + 1’ रणनीति के अंतर्गत वैश्विक आपूर्ति शृंखला में स्थान पाने का अवसर मिल सकता है।

घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन

यदि भारत आत्मनिर्भरता की नीति (Atmanirbhar Bharat) के अंतर्गत अपने उद्योगों को मजबूत करता है, तो आयात के स्थान पर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।

भारत की नीति प्रतिक्रिया

  • 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियानों को बढ़ावा: सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर आयात पर निर्भरता कम करने का प्रयास कर रही है।
  • पी.एल.आई. योजना (Production Linked Incentive): इससे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहन मिल रहा है।
  • नई विदेश व्यापार नीति (2023): इसमें भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला का अभिन्न हिस्सा बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • टैरिफ नीति में बदलाव : अनावश्यक आयात को हतोत्साहित करने के लिए सीमा शुल्क में वृद्धि।
  • FTA समीक्षा : मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा कर संतुलित आयात-निर्यात को सुनिश्चित करना।

सुझाव

  • प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का विकास : भारत को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने की क्षमता विकसित करनी होगी।
  • लॉजिस्टिक्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार की आवश्यकता : विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर के बिना वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करना कठिन होगा।
  • नीतिगत स्थिरता और व्यापारिक सुगमता: निवेश आकर्षित करने के लिए नीतियों में स्पष्टता और स्थिरता ज़रूरी है।

निष्कर्ष:

व्यापार युद्ध भारत के लिए अवसर और चुनौती दोनों लेकर आया है। अल्पावधि में आयात में वृद्धि संभावित है, लेकिन दीर्घावधि में यदि भारत अपनी विनिर्माण क्षमताओं को सशक्त करता है तो यह देश की आयात पर निर्भरता घटाने के साथ ही  वैश्विक आपूर्ति शृंखला में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

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