(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।) |
संदर्भ
अमेरिका द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ (tariff) का असर सितंबर 2025 के निर्यात आँकड़ों में स्पष्ट रूप से देखा गया है। यह कदम अमेरिका के व्यापार संरक्षणवादी रुख को दर्शाता है, जिसने भारत सहित कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाला है।
अमेरिकी टैरिफ प्रभाव : एक अवलोकन
अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 50% तक का टैरिफ लागू किया है, जिससे भारत के निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ा है। विशेष रूप से टेक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी तथा लेदर गुड्स जैसे पारंपरिक क्षेत्रों की निर्यात वृद्धि दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
मुख्य बिंदु
- सितंबर 2025 में भारत का अमेरिका को निर्यात 15% तक गिरा, जबकि अप्रैल-अगस्त 2025 में यह 20% था।
- टेक्सटाइल्स और रेडीमेड गारमेंट्स निर्यात में 10.1% की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई।
- कॉटन यार्न और फैब्रिक का निर्यात 11.7% घटा।
- जेम्स एंड ज्वेलरी की वृद्धि दर घटकर मात्र 0.4% रह गई।
- इसके विपरीत, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का निर्यात 50.5% बढ़ा, खासकर स्मार्टफोन निर्यात में तेजी से।
- ट्रंप की टैरिफ नीति का अमेरिकी बाजार में झींगा की कीमतों पर असर पड़ना शुरू हो गया है, और कीमतों में 15-20% की बढ़ोतरी हुई है।
- अमेरिकी झींगा बाजार में भारत की आपूर्ति का हिस्सा लगभग 45% है, जिसका मूल्य सालाना लगभग 6 अरब डॉलर है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- रोजगार पर असर: टेक्सटाइल्स, लेदर और ज्वेलरी सेक्टर में लाखों लोगों की नौकरियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
- व्यापार असंतुलन: अमेरिका भारत के कुल निर्यात का लगभग पाँचवाँ हिस्सा खरीदता था, जो अब घट रहा है।
- निर्यात बाजार में बदलाव: भारत के निर्यातक अब चीन, यूएई, स्पेन और बांग्लादेश जैसे वैकल्पिक बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं।
- विनिर्माण क्षेत्र पर दबाव: उच्च टैरिफ के कारण छोटे और मध्यम निर्यातक लागत बढ़ने से प्रतिस्पर्धा खो रहे हैं।
चुनौतियाँ
- अमेरिकी बाजार पर निर्भरता: भारत का निर्यात अभी भी अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर है।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की जटिलता: चीन जैसे देशों की सस्ती उत्पादन लागत भारत की प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकती है।
- घरेलू नीति की कमी: निर्यात प्रोत्साहन और लॉजिस्टिक सुधार में अभी भी कई कमियाँ हैं।
- मुद्रा विनिमय उतार-चढ़ाव: डॉलर के मुकाबले रुपये की अस्थिरता से भी निर्यात प्रभावित होता है।
आगे की राह
- विविध बाजार रणनीति: भारत को अमेरिकी निर्भरता घटाकर यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका जैसे नए बाजारों में विस्तार करना चाहिए।
- घरेलू उत्पादन प्रोत्साहन: “मेक इन इंडिया” और PLI योजनाओं के तहत उच्च मूल्यवर्धित वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना होगा।
- व्यापारिक कूटनीति: भारत को अमेरिका के साथ टैरिफ पुनर्संरचना और मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत तेज करनी चाहिए।
- प्रौद्योगिकी निवेश: इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भारत की सफलता यह दर्शाती है कि तकनीकी निवेश से टैरिफ प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
अमेरिकी टैरिफ ने भारत के पारंपरिक निर्यात क्षेत्रों को झटका दिया है, लेकिन यह अवसर भी प्रदान करता है कि भारत अपने निर्यात ढांचे को अधिक विविध, आधुनिक और प्रतिस्पर्धी बनाए। भारत को दीर्घकालिक रणनीति के तहत नवाचार, विविधता और व्यापारिक संतुलन पर ध्यान देना होगा, ताकि ऐसी नीतिगत झटकों का असर भविष्य में कम किया जा सके।