(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
विशेषज्ञों के अनुसार यदि ‘रोज़गार सृजन एवं कौशल विकास’ बढ़ते कार्यबल की गति के अनुरूप नहीं हुए तो भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय आपदा में बदल सकता है।
भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश
- भारत के ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ को लंबे समय से देश के भविष्य के विकास का एक प्रमुख चालक माना जाता रहा है।
- 35 वर्ष से कम आयु के 80 करोड़ से ज़्यादा लोगों के साथ यह देश दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी में से एक होने का दावा करता है।
- भारत की औसत आयु 28.4 वर्ष (2024) है जिसमें 65% से अधिक जनसंख्या कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में है।
- संरचनात्मक सुधारों के बिना यह लाभांश सामाजिक अशांति, असमानता एवं आर्थिक मंदी का कारण बन सकता है।
- यह ‘जनसांख्यिकीय संपत्ति’ शिक्षा एवं वास्तविक दुनिया के कौशल, डिग्रियों व रोज़गार योग्यता के बीच के अंतर के बढ़ने के साथ ‘जनसांख्यिकीय दायित्व’ बनने के खतरे में है। अगर इस अंतर को दूर नहीं किया गया, तो भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक जनसांख्यिकीय विरोधाभास में बदल सकता है।
जनसांख्यिकीय लाभांश के समक्ष चुनौतियाँ
- शिक्षित युवाओं में बढ़ती बेरोज़गारी : भारत में प्रतिवर्ष लाखों स्नातक तैयार होते हैं, वहीं इनमें से कई स्नातक अभी भी अल्प-रोज़गार में हैं और तेज़ी से बेरोज़गार होते जा रहे हैं।
- यह केवल सामाजिक विज्ञान या गैर-STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) छात्रों के सामने आने वाली समस्या नहीं है।
- विगत एक दशक के आँकड़े बताते हैं कि भारतीय विश्वविद्यालयों से निकले 40%-50% इंजीनियरिंग स्नातकों को नौकरी नहीं मिली है जो शैक्षणिक शिक्षा व उद्योग की ज़रूरतों के बीच चिंताजनक अंतर को उजागर करता है।
- शिक्षा एवं उद्योग की माँग के बीच अंतराल : उच्च शिक्षा क्षेत्र के हितधारक इससे सहमत हैं कि पाठ्यक्रम तेज़ी से बदलती रोज़गार बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं हैं।
- इंडिया स्किल्स रिपोर्ट, 2024 के अनुसार 65% से अधिक हाई स्कूल स्नातक ऐसी डिग्रियां हासिल करते हैं जो उनकी रुचियों या क्षमताओं के अनुरूप नहीं होतीं हैं।
- ऐसे में छात्र अपनी डिग्रियों से तेजी से बदलते नौकरी बाजार के लिए अयोग्य होकर निकलते हैं।
- मर्सर-मेटल द्वारा तैयार किए गए ग्रेजुएट स्किल्स इंडेक्स, 2025 में पाया गया कि केवल 43% भारतीय स्नातक ही नौकरी के लिए तैयार माने जाते हैं।
- महिला श्रम बल की भागीदारी कम (~24%) है। इसके अतिरिक्त शहरी बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा पर दबाव भी है।
सरकार द्वारा निपटने के प्रयास
- भारत सरकार ने कौशल की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से कई पहल शुरू की हैं। एक महत्त्वपूर्ण स्किल इंडिया मिशन का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक लोगों को प्रशिक्षित करना था।
- हालाँकि, बड़े पैमाने पर वित्त पोषण के बावजूद यह मिशन इस लक्ष्य से बहुत पीछे रह गया।
- स्किल इंडिया मिशन के अलावा कई अन्य नीतियाँ भी शुरू की गई हैं, जिनमें शामिल हैं:
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
- प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (PMKK)
- जन शिक्षण संस्थान (JSS)
- प्रधानमंत्री युवा योजना (PMYY)
- आजीविका संवर्धन के लिए कौशल अर्जन और ज्ञान जागरूकता (संकल्प)
- प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना
आगे की राह
- भारत को एक ऐसी समेकित रणनीति की ज़रूरत है जो शिक्षा और कौशल विकास को उद्योग जगत की माँगों के साथ संरेखित करे। इसे साकार करने के लिए नीति आयोग, भारतीय विश्वविद्यालय संघ और कौशल मंत्रालय के साथ परस्पर समन्वय आवश्यक है।
- कौशल विकास के लिए एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने हेतु सरकार, निजी क्षेत्र एवं शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग आवश्यक होगा।
- विनिर्माण, हरित अर्थव्यवस्था और सेवाओं में रोज़गार सृजन की आवश्यकता है। साथ ही, व्यावसायिक प्रशिक्षण व कौशल कार्यक्रम तथा लिंग-समावेशी कार्यबल नीतियाँ भी अत्यंत आवश्यक हैं।
- ए.आई., डिजिटल अर्थव्यवस्था और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अवसरों का दोहन करने के लिए अवसर व अवसंरचना विकसित करना सामान्य की मांग है।