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वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट का भारत के लिए निहितार्थ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

वर्तमान में भारत एक डिजिटल नवप्रवर्तक एवं दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी के साथ एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक शक्ति है। हालाँकि, विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (2025) के अनुसार लैंगिक समानता के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है।

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2025

  • यह रिपोर्ट 148 देशों में लैंगिक समानता को चार प्रमुख आयामों के आधार पर मापती है: 
    • आर्थिक भागीदारी एवं अवसर
    • शैक्षिक प्राप्ति
    • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
    • राजनीतिक सशक्तीकरण
  • इसके तहत 0 से 1 के पैमाने पर स्कोर दिया जाता है जहाँ 1 पूर्ण समानता एवं 0 पूर्ण असमानता को दर्शाता है। 

भारत की स्थिति 

  • भारत 148 देशों में 131वें स्थान पर है जो वर्ष 2024 के 129वें स्थान से दो रैंक की गिरावट को दर्शाता है। इसका लैंगिक समानता स्कोर 64.4% है।
    • आर्थिक भागीदारी एवं अवसर : भारत का स्कोर 36.7% है जो कार्यबल में महिलाओं की निम्न भागीदारी (41.2%) और नेतृत्वकारी भूमिकाओं में 28.8% हिस्सेदारी को दर्शाता है।
    • शैक्षिक प्राप्ति : भारत ने शिक्षा के सभी स्तरों पर लैंगिक समानता हासिल कर ली है जो एक सकारात्मक विकास है।
    • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता : असमान शिशु लैंगिक जन्मानुपात चिंता का विषय है।
    • राजनीतिक सशक्तीकरण : इस क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन कमजोर है।

भारत में विद्यमान संरचनात्मक मुद्दे 

आर्थिक भागीदारी एवं अवसर 

  • महिलाएँ अभी भी पुरुषों की तुलना में एक-तिहाई से भी कम कमाती हैं और महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी अभी भी बहुत कम है।
  • महिलाएँ अनौपचारिक एवं जीविका संबंधी कार्यों में व्यस्त रहती हैं और निर्णय लेने वाले क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व बेहद कम होता है। 
  • अवैतनिक देखभाल कार्यों का बोझ महिलाओं के समय एवं उनकी क्षमता पर एक बड़ा बोझ बना हुआ है। 
    • समय उपयोग सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय महिलाएँ, पुरुषों की तुलना में लगभग सात गुना ज़्यादा अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं। 
    • फिर भी, यह महत्वपूर्ण श्रम राष्ट्रीय लेखांकन में अदृश्य रहता है और सार्वजनिक नीति में इसके लिए पर्याप्त धन नहीं होता है।
  •  मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने 2015 में अनुमान लगाया था कि लैंगिक असमानता को पाटने से वर्ष 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 अरब डॉलर की वृद्धि हो सकती है। 
  • वर्तमान गति से वैश्विक आर्थिक लैंगिक असमानता को पाटने में एक सदी से भी अधिक समय लग सकता है और भारत इस लक्ष्य से भी पीछे है।

स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता 

  • भारत में आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा के मामले में विशेष रूप से निम्न स्कोर है जो सार्थक लैंगिक समानता के लिए आवश्यक स्तंभ हैं।
    • ये केवल सामाजिक संकेतक नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय प्रगति में बाधक संरचनात्मक विफलता के संकेत हैं।
  • शैक्षिक उपलब्धि में प्रगति के बावजूद भारत महिलाओं के स्वास्थ्य एवं स्वायत्तता को सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार जन्म के समय भारत का लिंगानुपात दुनिया में सर्वाधिक विषम बना हुआ है जो निरंतर पुत्र को प्राथमिकता देने को दर्शाता है। 
  • महिलाओं की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा अब पुरुषों की तुलना में कम है।
  • ऐसे परिणाम प्रजनन स्वास्थ्य और निवारक देखभाल एवं पोषण (विशेष रूप से निम्न-आय व ग्रामीण पृष्ठभूमि की महिलाओं के मामले में) की दीर्घकालिक उपेक्षा की ओर संकेत करते हैं।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के अनुसार, 15 से 49 आयु वर्ग की लगभग 57% भारतीय महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं जिससे उनकी सीखने, काम करने या सुरक्षित रूप से गर्भधारण करने की क्षमता कम हो जाती है।

निर्भरता अनुपात में वृद्धि

भारत जनसांख्यिकीय दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। वर्ष 2050 तक वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत लगभग दोगुना होकर जनसंख्या का लगभग 20% हो जाने की संभावना है। इस जनसांख्यिकीय बदलाव में मुख्यत: वृद्ध एवं विधवा महिलाएँ शामिल होंगी, जो प्राय: अत्यधिक निर्भर होती हैं। 

आगे की राह 

बजट आवंटन में वृद्धि 

बजट आवंटन में वृद्धि महिलाओं के कल्याण एवं शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच में सुधार के लिए आवश्यक है। 

बुनियादी ढाँचे में निवेश

  • बाल देखभाल केंद्रों, वृद्ध देखभाल सेवाओं व मातृत्व लाभ जैसे देखभाल संबंधी बुनियादी ढाँचे में निवेश से महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश करने में मदद मिलेगी। 
  • केंद्र व राज्य सरकारों को समय-उपयोग सर्वेक्षणों, लैंगिक बजट और देखभाल संबंधी बुनियादी ढाँचे में प्रत्यक्ष निवेश के माध्यम से अपने आर्थिक एवं सामाजिक नीति ढाँचों में अवैतनिक देखभाल कार्यों को शामिल करने की शुरूआत करनी चाहिए। 
    • इस संदर्भ में भारत द्वारा उरुग्वे व दक्षिण कोरिया जैसे देशों से सीखा जा सकता है जिन्होंने सकारात्मक परिणामों के साथ देखभाल अर्थव्यवस्थाओं को अपनी विकास योजनाओं में शामिल करना शुरू कर दिया है।

महिलाओं को श्रम बल में शामिल करना 

  • महिलाओं के कार्यबल से बाहर होने पर निर्भरता अनुपात और भी तेज़ी से बढ़ेगा, जिससे श्रमिकों पर अधिक दबाव पड़ेगा तथा वित्तीय स्थिरता कमज़ोर होगी। 
  • इस प्रवृत्ति को उलटने के लिए स्वास्थ्य, श्रम एवं सामाजिक सुरक्षा को जोड़ने वाली एकीकृत नीतियों की आवश्यकता है जो महिलाओं को लाभार्थी के रूप में नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था के निर्माता के रूप में देखें।
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