(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार) |
संदर्भ
ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत सरकार के उपक्रम गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) ने नॉर्वे की कंपनी कॉन्ग्सबर्ग के साथ पहले स्वदेशी ध्रुवीय अनुसंधान पोत (Polar Research Vessel: PRV) के निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।
समझौता ज्ञापन(MoU) के बारे में
- यह समझौता भारत के पहले स्वदेशी ध्रुवीय अनुसंधान पोत के सह-डिजाइन एवं निर्माण के लिए है।
- MoU के तहत नॉर्वे की कंपनी कॉन्ग्सबर्ग डिज़ाइन विशेषज्ञता प्रदान करेगी, जिससे यह पोत वैश्विक मानकों के अनुरूप होगा और भारत के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग को मजबूत करेगा।
- यह पोत कोलकाता में जी.आर.एस.ई. के यार्ड में निर्मित होगा, जो भारत की पोत निर्माण क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा और सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
क्या होते हैं ध्रुवीय अनुसंधान पोत
- ये विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए ऐसे पोत होते हैं जो ध्रुवीय क्षेत्रों (उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव के आसपास के क्षेत्र, जैसे- आर्कटिक व अंटार्कटिका) और समुद्री वातावरण में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक मंच के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
- ये पोत दुर्लभ पर्यावरणीय परिस्थितियों, जैसे - अत्यधिक ठंड, बर्फीले क्षेत्र एवं तूफानी समुद्र में कार्यक्षम होते हैं।
भारत के पहले ध्रुवीय अनुसंधान पोत की विशेषताएँ
- उन्नत वैज्ञानिक उपकरण : पोत नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित होगा, जो समुद्र की गहराइयों का अध्ययन, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित डाटा संग्रह में सक्षम होंगे।
- इसमें सोनार सिस्टम, समुद्री सेंसर एवं पर्यावरणीय निगरानी उपकरण शामिल होंगे, जो ध्रुवीय व दक्षिणी महासागर में अनुसंधान को समर्थन देंगे।
- ध्रुवीय परिस्थितियों के लिए डिज़ाइन : यह पोत कठोर ध्रुवीय पर्यावरण, जैसे-अत्यधिक ठंड, बर्फीले क्षेत्र एवं तूफान युक्त समुद्रों में कार्य करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया जाएगा।
- इसमें बर्फ तोड़ने (Ice-breaking) की क्षमता होगी, जो आर्कटिक व अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में नेविगेशन को संभव बनाएगी।
- NCPOR की आवश्यकताओं के अनुरूप : पोत का डिज़ाइन राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) की विशिष्ट अनुसंधान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाएगा, जो भारत के ध्रुवीय अनुसंधान स्टेशनों (अंटार्कटिका में भारती और मैत्री, आर्कटिक में हिमाद्री) के कार्यों को समर्थन देगा।
- पर्यावरणीय एवं जलवायु अनुसंधान : यह पोत जलवायु परिवर्तन, समुद्री जैव-विविधता एवं बर्फ गलन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनुसंधान को सक्षम बनाएगा, जिससे वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में योगदान मिलेगा।
भारत के लिए महत्व
- वैज्ञानिक अनुसंधान में प्रगति : यह पोत भारत के ध्रुवीय अनुसंधान स्टेशनों (अंटार्कटिका में भारती व मैत्री, आर्कटिक में हिमाद्री) के कार्यों को सशक्त करेगा। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन, जैसे वैश्विक मुद्दों पर गहन अध्ययन को सक्षम बनाएगा।
- तकनीकी आत्मनिर्भरता : कोलकाता में गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स द्वारा निर्मित यह पोत भारत की जहाज निर्माण क्षमताओं को प्रदर्शित करेगा। यह ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देगा और स्वदेशी तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करेगा।
- आर्थिक लाभ : पोत का निर्माण स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन देगा, रोजगार सृजन करेगा और भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं कूटनीति : यह समझौता भारत एवं नॉर्वे के बीच तकनीकी व वैज्ञानिक सहयोग को मजबूत करता है तथा भारत की अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को बढ़ावा देगा।
- इसके अलावा भारत को ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- सागर एवं महासागर दृष्टिकोण : यह पोत भारत के ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास) और ‘महासागर’ (म्यूचुअल एंड होलिस्टिक एडवांसमेंट फॉर सिक्योरिटी एक्रॉस द रीजन) दृष्टिकोण को साकार करेगा। यह भारत की समुद्री रणनीति को मजबूत करेगा और क्षेत्रीय सुरक्षा व आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा।