(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न; कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय व बाधाएँ) |
संदर्भ
18 से 20 सितंबर, 2025 को कोच्चि में आठवें भारत अंतर्राष्ट्रीय चाय सम्मेलन (IITC) 2025 का आयोजन किया गया।
IITC 2025 के बारे में
- IITC 2025 भारत अंतर्राष्ट्रीय चाय सम्मेलन की आठवीं कड़ी थी, जो चाय उद्योग के हितधारकों को एकजुट करने का प्रमुख मंच है।
- यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ साउदर्न इंडिया (UPASI) द्वारा आयोजित इस तीन दिवसीय आयोजन में 10 से अधिक चाय उत्पादक और उपभोक्ता देशों से 450 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- सम्मेलन का विषय ‘कल के लिए चाय पारिस्थितिकी तंत्र का नवाचार’ था, जो उद्योग की स्थिरता, ब्रांडिंग एवं प्रीमियमकरण पर केंद्रित रहा।

प्रमुख लक्ष्य
- चाय उद्योग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नवाचार, अनुकूलन व उपभोग बढ़ाने की रणनीतियों पर विचार-विमर्श करना रहा।
- विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन से फसल पैटर्न में बदलाव, कीटों और रोगों की वृद्धि तथा उपज में कमी को रोकने के उपायों पर जोर दिया।
- इस सम्मेलन ने ब्रांडिंग, प्रीमियमकरण एवं युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के माध्यम से उपभोग बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।
- इसके अलावा ऑपरेशन फ्लड या ऑपरेशन सिल्वर जैसी सरकारी अभियान की तर्ज पर चाय प्रचार अभियान चलाने, नए बाजारों (जैसे- अफ्रीका, घाना) की खोज और पुराने बाजारों (जैसे- रूस, ईरान) में निर्यात बढ़ाने पर फोकस किया गया।
भारत में चाय उद्योग के बारे में
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है, जहां चाय न केवल एक पेय है बल्कि सांस्कृतिक प्रतीक भी।
- यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है, विशेष रूप से असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व केरल में।
- वर्ष 2024 में इस उद्योग का मूल्य एक लाख करोड़ रुपये था, जिसके वर्ष 2029 तक 1.47 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है (CAGR 6.98%)।
- चाय बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा संचालित टी डेवलपमेंट एंड प्रमोशन स्कीम (TDPS) के माध्यम से इस क्षेत्र का आधुनिकीकरण हो रहा है।
- ब्लैक टी 96% निर्यात का हिस्सा है, जबकि ग्रीन, हर्बल एवं स्पेशल्टी टी की मांग बढ़ रही है।
- उत्पादन का 80% घरेलू उपभोग है किंतु प्रति व्यक्ति उपभोग 840 ग्राम है, जो अन्य देशों से कम है।
अनुसंधान एवं नवाचार
- चाय उद्योग में अनुसंधान जलवायु प्रतिरोधी किस्मों, जैविक खेती और कीट प्रबंधन पर केंद्रित है।
- UPASI एवं चाय बोर्ड जैसी संस्थाएं हाइब्रिड किस्में विकसित कर रही हैं।
- नवाचार में नए ब्लेंड, आर.टी.डी. (रेडी-टू-ड्रिंक) उत्पाद, फंक्शनल टी (एंटीऑक्सीडेंट युक्त) और तकनीकी एकीकरण शामिल हैं। टाटा और HUL जैसी कंपनियां प्रीमियम उत्पाद ला रही हैं।
- जैविक चाय का पहला कन्साइनमेंट असम से ताइवान भेजा गया।
- इस सम्मेलन में विशेषज्ञों ने प्रौद्योगिकी से स्थिरता सुनिश्चित करने और उपभोक्ता अनुभव को बेहतर बनाने पर जोर दिया।
चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन: फसल पैटर्न में बदलाव, उपज में कमी (2025 में 13.4% गिरावट), कीट-रोगों की वृद्धि
- उपभोग में कमी: 2% वार्षिक वृद्धि, युवाओं में आकर्षण की कमी, मिथकों (अम्लता, निर्जलीकरण) का प्रचार
- उत्पादन लागत: श्रमिक प्रवास, बढ़ती लागत, दार्जिलिंग में 10.34% कमी
- निर्यात बाधाएं: व्यापार नीतियां, आयात वृद्धि (जनवरी-मार्च 2025 में 9.86 मिलियन किग्रा), कीमतों में गिरावट
- गुणवत्ता एवं बाजार: आयात से दबाव, नए बाजारों की कमी
आगे की राह
- नवाचार और अनुकूलन: नए ट्रेंड्स अपनाना, प्रीमियम उत्पाद विकसित करना, तकनीक से स्थिरता सुनिश्चित करना
- सरकारी अभियान: ऑपरेशन फ्लड जैसे प्रचार अभियान से उपभोग बढ़ाना, नए बाजार (अफ्रीका) की खोज करना
- अनुसंधान निवेश: जलवायु प्रतिरोधी किस्में और जैविक खेती को बढ़ावा देना
- ब्रांडिंग और प्रीमियमकरण: युवाओं के लिए आकर्षक उत्पाद, मिथकों को दूर करना और निर्यात विविधीकरण
- सहयोग: हितधारकों के बीच साझेदारी, TDPS जैसी योजनाओं का विस्तार और दीर्घकालिक निगरानी
भारतीय चाय बोर्ड
- स्थापना: वर्ष 1953 में चाय उद्योग के नियमन एवं विकास के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित
- मुख्यालय: कोलकाता, पश्चिम बंगाल।
- मुख्य उद्देश्य:
- चाय की उत्पादन वृद्धि और गुणवत्ता नियंत्रण
- चाय के निर्यात और घरेलू बाजार का विकास
- चाय किसानों और उत्पादकों के कल्याण के लिए नीतियाँ बनाना
- मुख्य कार्य:
- चाय बागानों का पंजीकरण और निरीक्षण
- अनुसंधान और प्रशिक्षण के माध्यम से उत्पादन प्रौद्योगिकी का सुधार
- भारतीय चाय का ब्रांडिंग और अंतरराष्ट्रीय प्रचार
- चाय उद्योग में कीट और रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- अनुसंधान और नवाचार:
- चाय की नई प्रजातियों और ऑर्गेनिक उत्पादन तकनीक का विकास
- पैदावार बढ़ाने और जलवायु अनुकूल खेती के लिए नई विधियाँ व प्रशिक्षण
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