New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 : न्यायालयों में लैंगिक असमानता

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 1 व 2: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन; न्यायपालिका की संरचना, संगठन व कार्य)

संदर्भ

भारत में न्यायपालिका के उच्च स्तर पर महिलाओं की भागीदारी आज भी अत्यंत सीमित है। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, उच्च न्यायालयों में केवल 14% और सर्वोच्च न्यायालय में मात्र 3.1% महिला न्यायाधीश हैं। यह स्थिति न्याय प्रणाली में लैंगिक समानता के गंभीर अभाव को उजागर करती है।

भारत न्याय रिपोर्ट 2025 के बारे में

  • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 एक स्वतंत्र मूल्यांकन है जो देश की न्याय प्रणाली में समानता, प्रतिनिधित्व एवं दक्षता की स्थिति का विश्लेषण करता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, न्यायपालिका के ऊपरी स्तरों में महिलाओं की अत्यल्प उपस्थिति न्याय तक समान पहुँच के लक्ष्य में बाधा है।
  • सर्वोच्च न्यायालय में 34 न्यायाधीशों में केवल एक महिला हैं और 25 उच्च न्यायालयों में से सिर्फ एक में महिला मुख्य न्यायाधीश हैं।

न्यायालयों में लैंगिक समानता

  • महिलाओं की कम भागीदारी का प्रमुख कारण कोलेजियम प्रणाली है जिसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति सीमित समूह के निर्णय पर निर्भर करती है।
  • इसके विपरीत निचली अदालतों में स्थिति बेहतर है क्योंकि वहाँ चयन प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से होता है जिससे महिलाओं को समान अवसर मिलता है।
  • निचली अदालतों में महिलाएँ लगभग 38% न्यायाधीशों के रूप में कार्यरत हैं।
  • हालाँकि, अब भी 20% जिला न्यायालय परिसरों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है।

सुधार की आवश्यकता

  • न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर की एक प्रतियोगी परीक्षा की आवश्यकता है।
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 2023 में ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस (AIJS) की स्थापना का सुझाव दिया था, जिससे चयन प्रक्रिया पारदर्शी और योग्यता-आधारित बने।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर जो आशंकाएँ हैं, वे निराधार हैं क्योंकि निचली न्यायपालिका में ऐसी परीक्षाएँ बिना किसी हस्तक्षेप के होती हैं।
  • यह प्रणाली न केवल पारदर्शिता लाएगी बल्कि समाज के कम प्रतिनिधित्व वाले वर्गों को भी अवसर देगी।

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) एक मॉडल के रूप में

  • UPSC का मॉडल इस दिशा में एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • UPSC के माध्यम से भर्ती होने वाली सिविल सेवाओं में आज विविधता और महिला भागीदारी दोनों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2024 में चयनित 1009 उम्मीदवारों में से 318 ओ.बी.सी., 160 एस.सी., 87 एस.टी., 109 ई.डब्ल्यू.एस. और 11 महिलाओं ने शीर्ष 25 में स्थान पाया।
  • IPS में भी वर्ष 2024 में 54 महिलाएँ चुनी गईं, जो कुल संख्या का 28% हैं।
  • यह मॉडल दर्शाता है कि पारदर्शी और राष्ट्रीय प्रतियोगिता प्रणाली से न्यायपालिका में भी समावेशिता व संतुलन लाया जा सकता है।

आगे की राह

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 312 संसद को ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जैसी नई सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार देता है।
  • यह सेवा न्यायिक चयन प्रक्रिया में एकरूपता, पारदर्शिता एवं अवसर की समानता सुनिश्चित करेगी।
  • इस परीक्षा का आयोजन UPSC द्वारा किया जा सकता है जबकि नियंत्रण सर्वोच्च न्यायालय के अधीन रहे।
  • चयनित उम्मीदवारों को उचित प्रशिक्षण व न्यायिक प्रशासन में अनुभव प्रदान करना आवश्यक होगा।

निष्कर्ष

न्याय केवल न्यायाधीशों के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है।

यदि भारत की न्यायपालिका को अधिक समावेशी, संतुलित व प्रतिनिधिक बनाना है, तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना अनिवार्य है। एक पारदर्शी और राष्ट्रीय स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षा न्याय प्रणाली में समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR