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भारत की वायु रक्षा प्रणाली: चुनौतियां और समाधान

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन, आतंरिक सुरक्षा, भारतीय सैन्य क्षमता)

संदर्भ

7 से 10 मई, 2025 के मध्य हुए सीमित भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली (Air Defence System) ने नियंत्रण रेखा एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं सहित पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान द्वारा लॉन्च किए गए 100 से अधिक ड्रोन व मिसाइलों को सफलतापूर्वक रोककर उन्हें निष्क्रिय कर दिया। 

भारत की वायु रक्षा प्रणाली के बारे में

  • भारत की वायु रक्षा प्रणाली एक बहुस्तरीय, तकनीकी रूप से उन्नत एवं रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तंत्र है जो भारतीय वायुसीमा को दुश्मन के विमानों, मिसाइलों, ड्रोन्स व अन्य हवाई खतरों से सुरक्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 
  • यह प्रणाली भारतीय वायुसेना (IAF), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), और अन्य रक्षा संगठनों के सहयोग से संचालित होती है। 

वर्तमान स्थिति

  • भारत की वायु रक्षा प्रणाली बहुस्तरीय (Multi-Layered) है जो विभिन्न दूरी एवं ऊँचाई के खतरों को नष्ट करने में सक्षम है। 
  • यह प्रणाली रडार, सेंसर, मिसाइल सिस्टम एवं कमांड-कंट्रोल नेटवर्क का एक एकीकृत ढांचा है। इसे निम्नलिखित स्तरों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • लंबी दूरी (Long-Range) : 200-400 किमी., बैलिस्टिक मिसाइलों एवं लड़ाकू विमानों के लिए।
    • मध्यम दूरी (Medium-Range) : 20-120 किमी., क्रूज मिसाइलों एवं ड्रोन्स के लिए।
    • छोटी दूरी (Short-Range) : 10-25 किमी., कम ऊँचाई के खतरों, जैसे- ड्रोन व हेलीकॉप्टर के लिए।
    • पॉइंट डिफेंस : महत्वपूर्ण स्थानों (शहर, सैन्य ठिकाने) की सुरक्षा।

प्रमुख प्रणालियाँ

लंबी दूरी की प्रणालियाँ

  • S-400 ट्रायम्फ (रूस)
    • रेंज : 400 किमी. (भारत ने इसे सुदर्शन चक्र नाम दिया है)
    • विशेषताएँ : यह विश्व की सबसे उन्नत प्रणालियों में से एक है जो बैलिस्टिक मिसाइलों, क्रूज मिसाइलों एवं लड़ाकू विमानों को नष्ट कर सकती है। यह एक साथ 36 लक्ष्यों को ट्रैक और 160 को नष्ट कर सकती है।
    • तैनाती : वर्ष 2018 में $5.43 बिलियन के सौदे के तहत खरीदा गया, 2021 से तैनाती शुरू। मुख्य रूप से चीन एवं पाकिस्तान की सीमाओं पर तैनात।
    • उपलब्धि : मई 2025 के भारत-पाकिस्तान टकराव में कई ड्रोन्स व मिसाइलों को नष्ट किया।
  • बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD)
    • रेंज : 2,000 किमी. तक की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की क्षमता।
    • विशेषताएँ : द्वि-स्तरीय प्रणाली (पृथ्वी एवं आकाश), जो मध्य-वायुमंडलीय व टर्मिनल चरण में मिसाइलों को नष्ट करती है।
    • विकास : DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित और दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों की सुरक्षा के लिए।

मध्यम दूरी की प्रणालियाँ

  • आकाश मिसाइल सिस्टम
    • रेंज : 25-30 किमी.
    • विशेषताएँ : DRDO द्वारा स्वदेशी, कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों, ड्रोन्स एवं क्रूज मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम।
    • उन्नत संस्करण : आकाश-NG (नेक्स्ट जेनरेशन), 40-50 किमी. रेंज, 2026 तक तैनाती की योजना।
    • उपलब्धि : मई 2025 में पाकिस्तानी ड्रोन्स एवं मिसाइलों को नष्ट करने में प्रभावी।
  • बराक-8 (MR-SAM)
    • रेंज : 70-100 किमी.
    • विशेषताएँ : भारत (DRDO) एवं इज़राइल (IAI) का संयुक्त विकास। क्रूज मिसाइलों, ड्रोन्स एवं विमानों को नष्ट करने में सक्षम। नौसेना व वायुसेना दोनों के लिए उपयोगी।
    • तैनाती : नौसेना के युद्धपोतों व थलसेना में एकीकृत।

पेचोरा (Pechora)

  • आधिकारिक नाम : एस-125 नेवा/पेचोरा 
    • 1970 के दशक से भारत के वायु रक्षा नेटवर्क में शामिल 
    • सोवियत मूल की मध्यम दूरी की सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली 
  • रेंज : ऑपरेशनल फायरिंग रेंज 30-35.4 किमी. तक 
  • ऊँचाई : 20 मीटर से लेकर 20-25 किमी. की ऊँचाई पर निशाना बनाने में सक्षम 
  • पता लगाना : सिस्टम का रडार 100 किमी. दूर तक के लक्ष्यों का पता लगाने में सक्षम 
  • सटीकता : लगभग 92% की उच्च मारक संभावना
  • विशेषता : 
    • धीमी गति से चलने वाले या निम्न उड़ान वाले लक्ष्यों के खिलाफ विशेष रूप से प्रभावी 
    • निम्न से मध्यम ऊंचाई वाले लक्ष्यों और ड्रोन व क्रूज मिसाइलों को रोकने के लिए डिज़ाइन और भारी इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग वाले वातावरण में भी काम करने में सक्षम  
    • 900 मीटर/सेकंड की गति से एक साथ दो लक्ष्यों को निशाना बनाने में सक्षम 
  • कार्यप्रणाली : इस प्रणाली में एक रडार-निर्देशित मिसाइल लांचर और एक फायर कंट्रोल यूनिट शामिल है जो आमतौर पर वी-600 मिसाइल का उपयोग करती है। यह लक्ष्यों का पता लगाने, ट्रैक करने और उन्हें लॉक करने के लिए पाँच पैराबोलिक एंटेना से लैस 4R90 यतागन रडार का उपयोग करता है।

छोटी दूरी की प्रणालियाँ

  • क्यू.आर.-एस.ए.एम. (Quick Reaction Surface-to-Air Missile)
    • रेंज : 25-30 किमी.
    • विशेषताएँ : DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित, कम ऊँचाई के खतरों जैसे ड्रोन व क्रूज मिसाइलों के लिए।
  • वी.एल.-एस.आर.एस.ए.एम. (Vertically Launched Short-Range SAM)
    • रेंज : 20-25 किमी.
    • विशेषताएँ : DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित, नौसेना व थलसेना के लिए। ड्रोन और हेलीकॉप्टर जैसे खतरों को नष्ट करने में सक्षम।
  • वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. (Very Short Range Air Defence System)
    • रेंज : 8 किमी., 4.5 किमी ऊँचाई
    • विशेषताएँ : मैन-पोर्टेबल (MANPADS), DRDO द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित। तेज गति के लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम। 3-4 अक्तूबर, 2024 को पोखरण में सफल परीक्षण।
  • समर (सरफेस-टू-एयर मिसाइल फॉर एश्योर्ड रीटेलिएशन) 
    • समर प्रणाली भारतीय वायुसेना द्वारा विकसित एक छोटी दूरी की स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली है जिसमें रूसी मूल की मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया है। समर-1 में 8 किमी. की रेंज वाली वायम्पेल आर-73ई (Vympel R-73E) मिसाइलें लगी हैं जबकि समर-2 में आर-27 (R-27) मिसाइलों का इस्तेमाल करके हमले की सीमा को लगभग 30 किमी. तक बढ़ाया गया है। इस प्रणाली को ड्रोन, हेलीकॉप्टर एवं लड़ाकू विमानों जैसे कम ऊँचाई पर उड़ने वाले खतरों का मुकाबला करने के लिए तैयार किया गया है।
  • अन्य प्रणाली : इग्ला (रूस), स्पाइडर (इज़राइल) एवं पुरानी L-70/ZSU-23-4 शिल्का गन सिस्टम

रडार एवं कमांड-कंट्रोल

  • रडार : रोहिणी, अर्जुन, राजेंद्र (DRDO), थेल्स एवं EL/M-2080 ग्रीन पाइन
  • आकाशतीर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम : 100 इकाइयाँ मार्च-सितंबर 2024 में तैनात। मई 2025 में ड्रोन एवं मिसाइल हमलों को नाकाम करने में महत्वपूर्ण।
  • एकीकृत काउंटर-यूएएस (C-UAS) ग्रिड : ड्रोन झुंड (ड्रोन स्वार्म) को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण, मई 2025 में प्रभावी।
    • यह सिस्टम सॉफ्ट किल (जैसे- जाम करना, जी.पी.एस. सिग्नल को लक्ष्यित करना) और हार्ड किल (जैसे- काइनेटिक इंटरसेप्शन, लेसर) दोनों तकनीकों का उपयोग करके यू.ए.एस. खतरों का पता लगाता है, उन्हें ट्रैक करता है, पहचानता है और उन्हें बेअसर करता है। यह न्यूनतम संपार्श्विक क्षति के साथ नो-फ्लाई ज़ोन लागू करने में मदद करता है और ऑपरेटरों को वास्तविक समय में निर्णय लेने के लिए ‘समग्र हवाई स्थिति’ परिदृश्य प्रदान करता है।
    • इंद्रजाल CUAS बड़े क्षेत्र में खतरे को बेअसर करने के लिए जाना जाता है। CUAS ग्रिड रडार, रेडियो-फ्रीक्वेंसी सेंसर, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड (ईओ/आईआर) कैमरे तथा ध्वनिक डिटेक्टरों को शामिल करते हुए एक स्तरित दृष्टिकोण के माध्यम से कार्य करते हैं, ताकि पहले यूएवी की पहचान की जा सके और उन पर निगरानी रखी जा सके।

अन्य देशों के साथ तुलना

पाकिस्तान

  • प्रणालियाँ : HQ-9 (125 किमी., चीन), स्पाडा 2000 (20-25 किमी., फ्रांस), LY-80 (40 किमी., चीन), FM-90 (15 किमी., चीन)
  • स्वदेशीकरण : न्यूनतम स्वदेशीकरण और आयात पर अत्यधिक निर्भरता।
  • कमजोरियां : सीमित रेंज, पुराने रडार एवं एकीकृत नेटवर्क की कमी। मई 2025 में लाहौर में HQ-9 नष्ट।
  • तुलना : भारत की S-400, आकाश और बराक-8 अधिक उन्नत व बहुस्तरीय हैं।

चीन

  • प्रणालियां: S-400 (400 किमी), HQ-9 (200 किमी), HQ-15/22 (150-200 किमी), TY-90/QW-2 (MANPADS)।
  • स्वदेशीकरण: मजबूत, HQ-9 और HQ-22 विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी।
  • ताकत: व्यापक क्षेत्रीय कवरेज, LAC पर तैनाती।
  • तुलना: भारत का S-400 समान, लेकिन BMD और प्रोजेक्ट कुशा (विकासाधीन) भारत को प्रतिस्पर्धी बनाएंगे।

इज़राइल

  • प्रणालियां: आयरन डोम (4-70 किमी), डेविड्स स्लिंग (40-300 किमी), एरो-2/3 (90-150 किमी), बराक-8 (70-100 किमी)। 
  • स्वदेशीकरण: लगभग पूर्ण, विश्व स्तर पर निर्यात।
  • ताकत: रॉकेट और ड्रोन खतरों में अत्यधिक प्रभावी (90%+ सफलता)।
  • तुलना: भारत की प्रणालियां व्यापक रेंज की हैं, लेकिन इज़राइल की आयरन डोम ड्रोन और रॉकेट में विशेषज्ञता रखती है।

अमेरिका

  • प्रणालियां: पैट्रियट PAC-3 (20-160 किमी), THAAD (200 किमी), Aegis BMD (700 किमी), NASAMS (40 किमी)।
  • स्वदेशीकरण: पूर्ण, विश्व में अग्रणी।
  • ताकत: वैश्विक तैनाती, उन्नत तकनीक।
  • तुलना: भारत की प्रणालियां क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी, लेकिन अमेरिका की वैश्विक पहुंच और तकनीकी श्रेष्ठता से पीछे।

DRDO और सरकार के प्रयास

  • आत्मनिर्भर भारत: DRDO ने आकाश, आकाश-NG, QR-SAM, VL-SRSAM, VSHORADS, और प्रोजेक्ट कुशा जैसी स्वदेशी प्रणालियों का विकास किया।
  • हाइपरसोनिक मिसाइल: नवंबर 2024 में 1,500 किमी रेंज की हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण, जो रडार से बचने में सक्षम है।
  • गौरव ग्लाइड बम: अप्रैल 2025 में 100 किमी रेंज की ग्लाइड बम का सफल परीक्षण।
  • आकाशतीर सिस्टम: 100 इकाइयां वर्ष 2024 में तैनात, ड्रोन और मिसाइल खतरों को नाकाम करने में प्रभावी।
  • BMD प्रोग्राम: दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की सुरक्षा के लिए।
  • उद्योग सहयोग: अडानी डिफेंस, भारत फोर्ज, और MSME के साथ साझेदारी।
  • प्रोजेक्ट कुशा: वर्ष 2028-29 तक 350 किमी. रेंज की स्वदेशी प्रणाली।

पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में चुनौतियां

  • पाकिस्तान
    • ड्रोन हमले: मई 2025 में पाकिस्तान ने सस्ते ड्रोनों और क्रूज मिसाइलों का उपयोग किया, जो कम ऊंचाई पर उड़ते हैं और रडार से बच सकते हैं।
    • सीमावर्ती तनाव: उरी और पुलवामा जैसे हमलों के बाद तनाव बढ़ा।
    • HQ-9 प्रणाली: पाकिस्तान की चीनी HQ-9 प्रणाली (125 किमी) भारत के लिए खतरा, लेकिन S-400 और आकाश ने इसे नाकाम किया।
  • चीन
    • LAC पर तैनाती: चीन की S-400 और HQ-9 प्रणालियां LAC पर तैनात, भारत के लिए चुनौती।
    • हाइपरसोनिक मिसाइलें: चीन की हाइपरसोनिक तकनीक भारत की रक्षा प्रणालियों के लिए खतरा।
    • साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध: चीन की उन्नत साइबर क्षमता रडार और कमांड-कंट्रोल सिस्टम को प्रभावित कर सकती है।

आगे की राह

  • उन्नत काउंटर-ड्रोन तकनीक : ड्रोन व लोइटरिंग मुनिशन के लिए लेजर-आधारित हथियार और C-UAS ग्रिड का विकास।
  • स्वदेशीकरण : प्रोजेक्ट कुशा, आकाश-NG, और QR-SAM की तैनाती में तेजी।
  • एकीकृत नेटवर्क : आकाशतीर सिस्टम को और मजबूत कर रडार और मिसाइल प्रणालियों का एकीकरण।
  • साइबर सुरक्षा : रडार एवं कमांड-कंट्रोल सिस्टम को साइबर हमलों से बचाने के लिए उन्नत तकनीक।
  • क्षेत्रीय सहयोग : इज़राइल एवं अमेरिका के साथ तकनीकी साझेदारी बढ़ाना।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता : सैन्य कर्मियों को ड्रोन और हाइपरसोनिक खतरों से निपटने के लिए प्रशिक्षण।

भारत की एकता एवं अखंडता में भूमिका

  • राष्ट्रीय सुरक्षा : S-400, आकाश एवं BMD जैसी प्रणालियाँ दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों और सैन्य ठिकानों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
  • आत्मविश्वास : मई 2025 में पाकिस्तानी हमलों को नाकाम करने से जनता और सेना का मनोबल बढ़ा।
  • आर्थिक स्थिरता : महत्वपूर्ण ढांचों की सुरक्षा से आर्थिक नुकसान कम होता है, जो राष्ट्रीय अखंडता के लिए आवश्यक है।
  • क्षेत्रीय एकता : सीमावर्ती क्षेत्रों (जम्मू एवं कश्मीर, अरुणाचल) में मजबूत वायु रक्षा तैनाती से क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहती है।
  • आत्मनिर्भरता : DRDO की स्वदेशी प्रणालियाँ राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाती हैं जो जनता को एकजुट करती है।

निष्कर्ष

भारत की वायु रक्षा प्रणाली S-400, आकाश, बराक-8 एवं आकाशतीर जैसे सिस्टमों के साथ विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी है। DRDO और सरकार के प्रयासों, जैसे प्रोजेक्ट कुशा और हाइपरसोनिक मिसाइल, ने इसे और मजबूत किया है। हालांकि, पाकिस्तान के ड्रोन हमले और चीन की हाइपरसोनिक तकनीक चुनौतियां हैं। उन्नत काउंटर-ड्रोन तकनीक, स्वदेशीकरण, और क्षेत्रीय सहयोग इनका समाधान कर सकते हैं। यह प्रणाली न केवल वायुसीमा की रक्षा करती है, बल्कि भारत की एकता, अखंडता, और राष्ट्रीय गौरव को भी मजबूत करती है।

AD गन (Air Defence Gun)

भारतीय सेना एवं वायुसेना कई प्रकार की वायु रक्षा बंदूकें (Anti-Aircraft Guns) उपयोग करती हैं, जैसे- L-70 बोफोर्स और ZU-23-2B आदि। ये बंदूकें कम दूरी और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लक्ष्यों, जैसे- ड्रोन व हेलीकॉप्टर को नष्ट करने के लिए एक प्रभावी हथियार है। 

  • L-70 बोफोर्स: 40 मिमी. की बंदूक, रडार-निर्देशित, 3-4 किमी. की रेंज
  • ZU-23-2B: 23 मिमी. की ट्विन-बैरल बंदूक, 2.5 किमी. की रेंज
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