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भारत की जन्मदर में गिरावट

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।)

संदर्भ

भारत के महापंजीयक ने नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (Sample Registration Survey : SRS) सांख्यिकीय रिपोर्ट 2023 जारी की है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • अशोधित जन्म दर : यह एक वर्ष में जनसंख्या में प्रति 1,000 लोगों पर पैदा हुए बच्चों की संख्या को दर्शाती है। 
    • राष्ट्रीय अशोधित जन्म दर (Crude Birth Rate : CBR) वर्ष 2022 में 19.1 से घटकर वर्ष 2023 में 18.4 हो गई है। 
    • सबसे अधिक सी.बी.आर. बिहार (25.8) और सबसे कम तमिलनाडु (12) में  थी।
  • अशोधित मृत्यु दर : देश की अशोधित मृत्यु दर वर्ष 2023 में 6.4 थी, जो वर्ष 2022 से 0.4 अंक कम है।
  • कुल प्रजनन दर: देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate : TFR) वर्ष 2023 में 1.9 तक गिर गई है। 
    • वर्ष 2021 और 2022 में, भारत की टी.एफ.आर. 2.0 पर स्थिर रही। 
    • टी.एफ़.आर. प्रति महिला अपनी संपूर्ण प्रजनन अवधि के दौरान जन्म लेने वाले अपेक्षित बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है। 
  • शिशु मृत्यु दर : राष्ट्रीय औसत घटकर 25 प्रति 1,000 जीवित जन्म (2023) हो गया।
  • वर्ष 2020-2022 और 2021-2023 की अवधि के बीच जन्म के समय राष्ट्रीय लिंगानुपात में 3 अंकों की वृद्धि हुई है।
    • रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth : SRB) 917 था। 
    • आंकड़ों से पता चला है कि छत्तीसगढ़ और केरल ने क्रमशः 974 और 971 पर उच्चतम एस.आर.बी. की सूचना दी, जबकि उत्तराखंड ने सबसे कम 868 की सूचना दी।
  • देश में बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक आयु के लोग) का अनुपात एक वर्ष में 0.7% अंक बढ़कर कुल जनसंख्या का 9.7% हो गया है।
    • केरल में बुजुर्ग आबादी (15%) का अनुपात सबसे अधिक जबकि असम में सबसे कम है।

राज्यवार स्थिति 

  • 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर टी.एफ.आर. से कम टी.एफ.आर. दर्ज किया है। 
    • प्रतिस्थापन स्तर टी.एफ.आर. प्रत्येक महिला द्वारा एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी की जगह लेने के लिए जन्म देने वाले बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है।

जन्मदर में गिरावट के कारण

  • महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण में वृद्धि।
  • परिवार नियोजन और गर्भनिरोधकों तक पहुँच में वृद्धि।
  • शहरीकरण और बच्चों के पालन-पोषण की बढ़ती लागत।
  • स्वास्थ्य सुधार से शिशु और मातृ मृत्यु दर में कमी।

परिणाम

  • जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत में प्रजनन क्षमता में तेज़ी से गिरावट के कारण यह अवधि कम हो सकती है।
  • श्रम बल: वृद्ध होती जनसंख्या और सिकुड़ते कार्यबल का दीर्घकालिक जोखिम।
  • सामाजिक क्षेत्र नियोजन: स्वास्थ्य सेवा, वृद्धों की देखभाल और कौशल विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता।
  • क्षेत्रीय भिन्नता: उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य (जैसे, बिहार, उत्तर प्रदेश) जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करना जारी रख सकते हैं।

आगे की राह

  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को मज़बूत करना।
  • प्रजनन क्षमता परिवर्तन में पिछड़ रहे राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • कार्यबल में संतुलित भागीदारी (विशेषकर महिलाओं) के लिए नीतियाँ।
  • वृद्धावस्था के लिए सामाजिक सुरक्षा सुधारों पर बल।
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