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भारत का जल संकट और आर्सेनिक प्रदूषण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: पर्यावरण प्रदूषण एवं स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे)

संदर्भ

भारत में जल संकट को प्रायः सूखे, बाढ़, अनियमित मानसून और भूजल के अत्यधिक दोहन से जोड़कर देखा जाता है। किंतु पेयजल में आर्सेनिक (Arsenic) प्रदूषण नामक एक अन्य गंभीर संकट फैल रहा है। यह संकट उस तरह से नहीं दिखाई देता है जिस तरह प्राकृतिक आपदाएँ दिखाई पड़ती हैं किंतु इसके दुष्परिणाम स्वास्थ्य, उत्पादकता व मानवीय गरिमा पर व्यापक प्रभाव डालते हैं और विशेषकर गरीब समुदाय इससे अधिक प्रभावित होता है।

भारत में जल संकट

  • भारत की 60% से अधिक आबादी आज भी भूजल पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन, असंतुलित दोहन एवं प्रदूषण ने जल सुरक्षा को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। जल संकट केवल जल की कमी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जल की गुणवत्ता और उसकी सुरक्षा भी शामिल है। आर्सेनिक प्रदूषण इसी गुणवत्ता संकट का सबसे खतरनाक रूप है।
  • प्रमुख प्रदूषकों में आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट, औद्योगिक अपशिष्ट और कृषि में उपयोग होने वाले रसायन शामिल हैं। इनमें आर्सेनिक सबसे खतरनाक है क्योंकि यह धीरे-धीरे शरीर में प्रवेश करता है और दीर्घकालिक बीमारियों का कारण बनता है।

भारत में आर्सेनिक का प्रभाव 

भारत के पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक की समस्या सर्वाधिक है।

  • पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उत्तर प्रदेश : सर्वाधिक प्रभावित राज्य
  • गंगा-बराक- ब्रह्मपुत्र बेसिन : उच्च आर्सेनिक प्रदूषण वाला क्षेत्र
  • करोड़ों लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आर्सेनिक युक्त जल पीने को विवश हैं।

स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर प्रभाव

  • स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • त्वचा संबंधी रोग, कैंसर, यकृत और फेफड़ों की बीमारियाँ
      • बच्चों में वृद्धि रुक जाना या अवरुद्ध विकास (Stunted Growth)
    • आयु के अनुपात में बच्चे की लंबाई कम रह जाने को स्टंटिंग (Stunting) कहते हैं।
    • परिवारों पर अत्यधिक चिकित्सा व्यय
  • पारिस्थितिकी पर प्रभाव:
    • फसल उत्पादन पर प्रभाव 
    • प्रदूषित जल से खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव 
    • स्थानीय जैव विविधता पर दीर्घकालिक खतरे

आर्सेनिक रिमूवल यूनिट्स (ARUs) का उपयोग

भारत सरकार के जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण घरों तक सुरक्षित पेयजल पहुँचाने का लक्ष्य है। आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में आर्सेनिक रिमूवल यूनिट्स (ARUs) लगाए गए हैं।

  • लाभ: अस्थायी समाधान के रूप में स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने का प्रयास
  • समस्या:
    • 35% से 83% तक ही आर्सेनिक हटाने में सफल
    • कई इकाइयाँ रखरखाव के अभाव में बंद
    • उच्च लागत एवं अस्थिरता

चुनौतियाँ

  • तकनीकी समाधानों का असफल या सीमित प्रभाव
  • पारदर्शी और वास्तविक निगरानी तंत्र का अभाव
  • गरीब परिवारों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ
  • जागरूकता की कमी और सांस्कृतिक-सामाजिक बाधाएँ
  • सीमा पार भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग की कमी (भारत-बांग्लादेश-नेपाल क्षेत्र)

आगे की राह

  • नीतिगत उपाय
    • आर्सेनिक प्रदूषण को ‘धीमी आपदा’ (Slow-onset Disaster) मानकर आपदा प्रबंधन स्तर की प्राथमिकता देना
    • जल गुणवत्ता की रियल-टाइम मॉनिटरिंग (GIS डैशबोर्ड, मोबाइल रिपोर्टिंग)
  • समुदाय आधारित प्रयास
    • आशा कार्यकर्ता, स्कूल एवं स्वयं सहायता समूहों को जल सुरक्षा अभियानों में शामिल करना
    • रंग-कोडेड ट्यूबवेल्स और स्थानीय स्तर पर जल परीक्षण
  • क्षेत्रीय सहयोग
    • बांग्लादेश जैसे देशों से तकनीकी एवं सामाजिक नवाचार अपनाना
    • साझा निगरानी एवं सीमा-पार जल शासन को मजबूत करना
  • लंबी अवधि की रणनीति
    • पृष्ठीय जल उपचार संयंत्र (Surface Water Treatment Plants)
    • पाइप्ड जलापूर्ति का सार्वभौमिक विस्तार
    • जन-जागरूकता अभियान और स्वास्थ्य-आधारित हस्तक्षेप

निष्कर्ष

भारत ने जल जीवन मिशन के तहत जल तक पहुँच में उल्लेखनीय प्रगति की है किंतु केवल पहुँच ही पर्याप्त नहीं है। यदि नल से निकलने वाला जल स्वास्थ्य के लिए खतरा है तो यह समाधान नहीं बल्कि समस्या का नया रूप है। आर्सेनिक प्रदूषण यह स्पष्ट करता है कि संरचना आधारित दृष्टिकोण के साथ-साथ सुरक्षा, पारदर्शिता एवं सामुदायिक भागीदारी को भी समान महत्व देना आवश्यक है। सुरक्षित जल कोई विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए; यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार और एक न्यायपूर्ण समाज का मूल आधार होना चाहिए।

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