(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
हाल के वर्षों में सरकारी योजनाओं, निजी बीमा कंपनियों और बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागतों के कारण भारत में स्वास्थ्य बीमा का उल्लेखनीय विस्तार हुआ है। हालाँकि, सामर्थ्य, कवरेज अंतराल और नियामक चुनौतियों के कारण सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा प्राप्त करने में इसकी प्रभावशीलता पर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
क्या है सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल
भोरे समिति (1946) की रिपोर्ट के अनुसार सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (Universal Health Care: UHC) वह न्यूनतम गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल है जिसे समुदाय के सभी सदस्यों को उनकी भुगतान क्षमता की परवाह किए बिना सुनिश्चित की जानी चाहिए।
भारत में स्वास्थ्य बीमा की स्थिति
- विगत 10 वर्षों में राज्य प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में भारी वृद्धि हुई है। आयुष्मान भारत के तहत 2018 में शुरू की गई प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) इस संबंध में एक मील का पत्थर है।
- इसमें प्रति परिवार प्रति वर्ष अधिकतम ₹5 लाख का बीमा कवर है।
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक प्रमुख राज्य का अपना राज्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है जिनमें से अधिकांश पी.एम.जे.ए.वाई. पर आधारित हैं।
- ये सभी बीमा योजनाएँ इन-पेशेंट केयर तक ही सीमित हैं, जिसमें मरीज पैनल में शामिल सार्वजनिक और निजी (लगभग आधे-आधे) अस्पतालों की सूची में से चुनाव कर सकते हैं।
- वर्ष 2023-24 में PMJAY ने लगभग 12,000 करोड़ रुपए के वार्षिक बजट के साथ 58.8 करोड़ व्यक्तियों को कवर किया (यह मानते हुए कि राज्यों ने निर्धारण के अनुसार कुल का 40% योगदान दिया)।
- गुजरात, केरल एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों के लिए प्रासंगिक डाटा उपलब्ध हैं और यहाँ राज्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम बजट वर्ष 2018-19 से वर्ष 2023-24 के बीच वास्तविक रूप से 8% से 25% प्रति वर्ष की दर से बढ़ा है।
वर्तमान प्रवृत्ति
- तीव्र विस्तार : आयुष्मान भारत-पी.एम.जे.ए.वाई. (2018) के बाद स्वास्थ्य बीमा कवरेज में तेज़ी से वृद्धि हुई है जो आबादी के निचले 40% लोगों को लक्षित करता है।
- निजी क्षेत्र की भूमिका : निजी बीमा कंपनियाँ शहरी और मध्यम वर्ग के बाज़ारों पर हावी हैं, जो विविध उत्पाद प्रस्तुत करती हैं।
- हालाँकि, इनमें उच्च प्रीमियम एवं कुछ अपवाद भी शामिल हैं।
- डिजिटल प्रोत्साहन : भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority: IRDAI) की पहल, पॉलिसी की ऑनलाइन बिक्री और स्वास्थ्य तकनीक प्लेटफ़ॉर्म ने पहुँच को बढ़ावा दिया है।
- प्रीमियम लगत में वृद्धि : स्वास्थ्य सेवा में मुद्रास्फीति एवं महामारी के बाद की माँग के कारण प्रीमियम की लागत में भारी वृद्धि हुई है।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल से लाभ
- वित्तीय सुरक्षा : अत्यधिक आउट-ऑफ-पॉकेट (OOP) व्यय को कम करने में मदद करता है, जो अभी भी कुल स्वास्थ्य व्यय का लगभग 48% है।
- जोखिम पूलिंग : महंगे उपचारों, विशेष रूप से पुरानी एवं जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों, तक पहुँच का विस्तार करता है।
- समावेशन अभियान : सरकार समर्थित बीमा कमज़ोर समूहों के लिए स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार करता है।
चिंताएँ और जोखिम
- बहिष्करण प्रथाएँ: पहले से मौजूद बीमारियों से संबंधित प्रावधान, सीमाएँ और दावों को अस्वीकार करना विश्वास एवं समावेशिता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
- बढ़ती लागत: प्रीमियम में वृद्धि मध्यम वर्ग को कवरेज से बाहर कर सकती है।
- शहरी पूर्वाग्रह: ग्रामीण और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों का बीमा कम है।
- कम जागरूकता: कई परिवार स्वास्थ्य बीमा लाभों से अनजान हैं या पॉलिसियों को समझने में असमर्थ हैं।
- नियामक कमियाँ: दावों के निपटान को लेकर विवाद और मानकीकरण का अभाव है।
- स्वास्थ्य असमानता: अस्पताल में भर्ती होने पर ध्यान केंद्रित करने से निवारक और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की उपेक्षा होती है।
- भ्रष्टाचार : स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ भ्रष्टाचार और दुरुपयोग की शिकार होती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने हाल ही में PMJAY के तहत धोखाधड़ी करने वाले 3,200 अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की सिफ़ारिश की है।
आगे की राह
- पारदर्शिता एवं मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए आई.आर.डी.ए.आई. की नियामक निगरानी को मज़बूत करना
- आयुष्मान भारत कवरेज का विस्तार और समान पहुँच के लिए राज्य योजनाओं के एकीकरण पर बल
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए समुदाय-आधारित बीमा और सहकारी मॉडल को प्रोत्साहन
- अस्पताल में भर्ती होने पर निर्भरता कम करने के लिए निवारक और बाह्य रोगी देखभाल कवरेज पर ध्यान केंद्रित करना
- केवल बीमा पर निर्भरता कम करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय (वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2%) में वृद्धि की आवश्यकता है।
- विश्व बैंक के नवीनतम विश्व विकास संकेतकों के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय अभी भी सकल घरेलू उत्पाद का 1.3% ही था, जबकि विश्व औसत 6.1% है।
- इस कमी को दूर करने और सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा मानकों में बदलाव लाने के गंभीर प्रयास के बिना सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को हासिल नहीं किया जा सकता है।