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जम्मू-कश्मीर और रोशनी अधिनियम

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2 : विषय- राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन।)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को ‘गैर-कानूनी, असंवैधानिक और अव्यावहारिक’ घोषित करते हुए इस अधिनियम के तहत हुए भूमि के आवंटन की जाँच को सी.बी.आई. द्वारा किये जाने के आदेश दिये हैं।

रोशनी अधिनियम

  • जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (कब्ज़ाधारी के लिये स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम, 2001 को लोकप्रिय रूप से रोशनी अधिनियम के रूप में जाना जाता है।
  • इस कानून के तहत, ऐसे लोग जिनके कब्ज़े में सरकारी ज़मीन थी, वे सरकार द्वारा तय की गई निश्चित रकम देकर इस ज़मीन का मालिकाना हक़ प्राप्त कर सकते थे।
  • ज़मीन पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को मालिकाना हक देने के लिये कटऑफ वर्ष 1990 निर्धारित किया गया था।
  • बाद में जम्मू-कश्मीर में आने वाली सरकारों ने सुविधानुसार इस कटऑफ वर्ष को कई बार बदला।
  • इस कारण सरकारी ज़मीनों पर अतिक्रमण के कई मामले सामने आने लगे और रोशनी अधिनियम से जुड़े विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ भी सामने आईं।
  • ध्यातव्य है कि सरकार का लक्ष्य लगभग 20 लाख कनाल (kanal - एक एकड़ का 8वाँ हिस्सा) भूमि पर कब्ज़ा किये या रह रहे लोगों को बाज़ार की दर पर भूमि का हस्तांतरण करके लगभग 25,000 करोड़ रुपए अर्जित करना था।
  • तत्कालीन सरकार का कहना था कि भूमि हस्तांतरण से उत्पन्न राजस्व का प्रयोग नई पनबिजली परियोजनाओं की शुरुआत के लिये किया जाएगा, इस वजह से इस अधिनियम का नाम ‘रोशनी’ पड़ गया।
  • विदित है कि उद्देश्यों में विफल रहने के कारण 28 नवम्बर, 2018 को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल ने रोशनी अधिनियम को रद्द कर दिया था।

हालिया विवाद क्या है?

  • इस वर्ष अक्तूबर में, उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को 'असंवैधानिक' घोषित करते हुए जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित सरकार को ज़मीन हड़पने वालों के नाम सार्वजनिक करने के आदेश दिये।
  • आदेश के बाद सरकार ने अपनी वेबसाइट पर इस अधिनियम के लाभार्थियों के नाम सार्वजानिक करने शुरू किये।
  • जो शुरूआती नाम वेबसाइट पर उपलब्ध कराए गए उनमें से अधिकतर जम्मू कश्मीर के प्रमुख राजनेताओं और उनके रिश्तेदारों के थे, इनमें से अधिकतर नेता गुपकर घोषणा से जुड़े दलों के थे। इसके आलावा कुछ नाम होटलों और ट्रस्ट संचालकों के भी थे। ध्यातव्य है कि ‘गुपकर घोषणा’ जम्मू-कश्मीर की ‘विशेष स्थिति’ की पुनर्बहाली हेतु संघर्ष के लिये एक संकल्प प्रस्ताव है, जिसमें जम्मू-कश्मीर के प्रमुख छ: दल सर्वसम्मति से जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वयत्तता और विशेष दर्जे की रक्षा के लिये एकजुट रहेंगे।

क्या था घोटाला?

  • इस अधिनियम के तहत हुए भूमि हस्तांतरणों की जाँच में पाया गया कि गुलमर्ग में भूमि कई अयोग्य लाभार्थियों को दी गई थी।
  • इसके अलावा कई सरकारी अधिकारियों ने अवैध रूप से ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया था और विभिन्न जगहों पर राज्य भूमि का स्वामित्व ऐसे लोगों को दे दिया था, जो रोशनी अधिनियम के तहत पात्रता के मानदंडों को पूरा नहीं करते थे।
  • कैग की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि लक्षित 25,000 करोड़ रुपए के मुकाबले, वर्ष 2007 और वर्ष 2013 के बीच भूमि के हस्तांतरण से केवल 76 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई थी।
  • कैग की रिपोर्ट में स्थाई समिति द्वारा तय की गई कीमतों में मनमानी तथा अनियमितताओं को मुख्य वजह बताते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि यह घोटाला राजनेताओं और सम्पन्न लोगों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया था।
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