(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना) |
संदर्भ
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 121 भाषाएँ एवं 270 मातृभाषाएँ हैं। देश की लगभग 96.71% जनसंख्या की मातृभाषा 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है।
- देश का बहुलवादी लोकतंत्र भाषाई धर्मनिरपेक्षता के विचार में गहराई से निहित है। हालाँकि, हाल के राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रवृत्ति हिंदी को थोपने की ओर संकेत कर रहे हैं जिससे भाषाई बहुसंख्यकवाद को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
भारत में भाषाई धर्मनिरपेक्षता
- भारत जैसे बहुभाषी समाज में भाषाई धर्मनिरपेक्षता सभी भाषाओं को बराबर सम्मान एवं संरक्षण देने का संवैधानिक व लोकतांत्रिक सिद्धांत है।
- यह मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 29, 30 एवं 343-351 में निहित है। त्रि-भाषा सूत्र शिक्षा एवं शासन में भाषाई विविधता सुनिश्चित करता है।
भारत में भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 343 : संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी
- अनुच्छेद 344 एवं 351 : हिंदी को बढ़ावा देना किंतु अन्य भाषाओं का भी विकास करना
- अनुच्छेद 29 एवं 30 : भाषाई अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार
- अनुच्छेद 350A एवं 350B : मातृभाषा में शिक्षा; भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति
भारत में भाषाई धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता
- विविधता में एकता : भाषा एक प्रमुख पहचान चिह्न है। एक भाषा थोपने से राष्ट्रीय एकीकरण को खतरा है।
- संघवाद : भाषा राज्य सूची का हिस्सा है; केंद्र द्वारा थोपने से राज्य की स्वायत्तता कमज़ोर हो सकती है।
- सांस्कृतिक संरक्षण : प्रत्येक भाषा का अपना विशिष्ट साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व होता है।
- शासन में समावेशिता : भाषाई समावेशिता प्रभावी लोक सेवा वितरण सुनिश्चित करती है।
भाषा थोपे जाने से संबंधित मुद्दे
- आधिकारिक प्रयोग, सरकारी परीक्षाओं एवं शिक्षा में हिंदी को ‘राष्ट्रीय’ भाषा के रूप में लागू करना।
- गैर-हिंदी भाषी राज्य (विशेषकर दक्षिण एवं पूर्वोत्तर) इसे अपनी क्षेत्रीय पहचान के लिए खतरा मानते हैं।
- तमिल, कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, बंगाली एवं आदिवासी भाषियों के बीच भाषाई अलगाव का खतरा।
आगे की राह
- लचीलेपन एवं क्षेत्रीय संवेदनशीलता के साथ त्रि-भाषा सूत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
- केवल हिंदी या अंग्रेजी ही नहीं बल्कि बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए।
- परीक्षाओं, प्रशासन एवं साइनेज में सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना चाहिए।
- क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं की सुरक्षा के लिए भाषा आयोगों की स्थापना करना चाहिए।
- कम बोली जाने वाली भाषाओं के लिए डिजिटल एवं तकनीकी सहायता को बढ़ावा देना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत की भाषाई विविधता एक ताकत है। संघीय सद्भाव, सांस्कृतिक समृद्धि एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के लिए भाषाई धर्मनिरपेक्षता की सुरक्षा आवश्यक है। भाषाई समरूपता की ओर कोई भी प्रयास भारत की बहुलतावाद की नींव के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है।