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महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा विधेयक

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका)

संदर्भ

महाराष्ट्र विधानसभा ने महाराष्ट्र विशेष लोक सुरक्षा (Maharashtra Special Public Security: MSPS) विधेयक ध्वनिमत से पारित किया गया। इसका उद्देश्य वामपंथी उग्रवादी संगठनों या इसी तरह के संगठनों की कुछ गैरकानूनी गतिविधियों की प्रभावी रोकथाम करना है। 

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ

'गैरकानूनी गतिविधि' की परिभाषा

इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:

  • सार्वजनिक व्यवस्था या कानून के प्रशासन में व्यवधान
  • आपराधिक बल प्रयोग द्वारा लोक सेवकों पर दबाव डालना
  • हिंसा, तोड़फोड़ या सार्वजनिक भय पैदा करने वाले कार्य
  • आग्नेयास्त्रों/विस्फोटकों का उपयोग या प्रोत्साहन या संचार में व्यवधान
  • स्थापित कानूनों की अवज्ञा को प्रोत्साहित करना

सज़ा/दंड 

  • गैरकानूनी संगठन की सदस्यता : 2-3 साल की जेल + जुर्माना
  • धन उगाहना, प्रबंधन, सहायता, उकसाना: 7 साल तक की सजा + भारी जुर्माना
  • सभी अपराध संज्ञेय एवं गैर-जमानती हैं अर्थात बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति है। 
  • संपत्ति जब्ती : अधिकारी (डीएम/पुलिस आयुक्त) घोषित संगठन द्वारा उपयोग किए जाने वाले किसी भी परिसर को 15 दिन के नोटिस के बाद मुकदमा पूरा होने से पहले भी जब्त कर सकते हैं। 
    • हालाँकि, रहने वालों (महिलाओं/बच्चों सहित) को खाली करने का समय दिया जाना चाहिए।

विधिक समीक्षा 

  • एक सलाहकार बोर्ड (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के योग्य/न्यायिक तीन सदस्य) संगठनों को गैरकानूनी घोषित करने की समीक्षा एवं पुष्टि करता है।
  • प्रभावित पक्ष राहत के लिए 30 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

सलाहकार बोर्ड की संरचना

अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश व एक सरकारी वकील

जांच प्राधिकारी 

शहरी क्षेत्रों में एक सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) के नेतृत्व में; ग्रामीण क्षेत्रों में एक डी.एस.पी. (एस.आई. के बजाय) द्वारा

आलोचना

  • अस्पष्ट एवं व्यापक परिभाषाओं से वैध असहमति, विरोध व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आपराधिक ठहराने का जोखिम उत्पन्न होता है।
  • मामूली सुरक्षा उपायों के बावजूद मुकदमे से पहले संपत्ति को जब्त करने से उचित प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकता है और निर्दोष निवासियों को प्रभावित कर सकता है।
  • यह कानून ‘पुलिस राज्य’ को बढ़ावा दे सकता है जो असहमति एवं लोकतांत्रिक आलोचना को दबा सकता है। 
    • इस संदर्भ में इसकी तुलना औपनिवेशिक काल के रॉलेट अधिनियम से की जा रही है।
  • यद्यपि सलाहकार बोर्ड एवं उच्च न्यायालय की समीक्षा जाँच के उपाय हैं किंतु आलोचकों के अनुसार ये मनमाने प्रवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं।
  • वर्ष 1962 के ऐतिहासिक केदार नाथ सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह कानून को बरकरार रखते हुए एक सीमा खींची थी कि सरकार के खिलाफ भाषण या आलोचना को तब तक ‘राजद्रोह’ नहीं कहा जा सकता है जब तक कि उसके साथ हिंसा भड़काने का आह्वान न किया गया हो।

आगे की राह 

  • शांतिपूर्ण विरोध एवं असहमति को मान्यता देने के लिए विधेयक की परिभाषाओं को और स्पष्ट व विस्तृत करने की आवश्यकता है।
  • समयबद्ध समीक्षाओं और उच्च न्यायालयों के प्रभावी हस्तक्षेपों के माध्यम से न्यायिक निगरानी को मज़बूत किया जाना चाहिए।
  • विधेयक को अधिनियम का रूप देने से पहले सार्वजनिक परामर्श को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए।
  • शहरी क्षेत्रों में नागरिकों को अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए जन जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
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