भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण
- बैंकों का राष्ट्रीयकरण भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में एक परिवर्तनकारी घटना (Transformative Event) थी, जिसने पूरे बैंकिंग परिदृश्य को नया रूप दिया।
- इसने कई लाभ पहुँचाए, लेकिन कुछ आलोचनाएं भी झेली हैं।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अर्थ (Meaning of Nationalisation of Banks)
बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalisation) का मतलब होता है — निजी बैंकों के स्वामित्व (Ownership) और नियंत्रण (Control) को सरकार के अधीन कर देना।
- इससे संबंधित बैंक एक सरकारी क्षेत्रीय इकाई (Public Sector Entity) के रूप में कार्य करने लगते हैं।
- इस प्रक्रिया में सरकार उस बैंक की बहुसंख्यक हिस्सेदार (Majority Shareholder) बन जाती है।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की पृष्ठभूमि
- स्वतंत्रता के बाद भारत की अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था थी जिसमें निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों की भूमिका थी।
- 1950 और 60 के दशक में यह देखा गया कि अधिकांश वाणिज्यिक बैंक केवल मुनाफे के लिए कार्य कर रहे थे और उनका ध्यान केवल शहरी क्षेत्रों और बड़े औद्योगिक संस्थानों तक सीमित था। कृषि, लघु उद्योग, गरीब और ग्रामीण क्षेत्र उपेक्षित थे।
- इसके परिणामस्वरूप आर्थिक असमानता, कर्ज में डूबे किसान, और वित्तीय बहिष्करण की समस्याएं उत्पन्न हुईं।
- इन समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने बैंकिंग को सामाजिक नियंत्रण में लेने की दिशा में कदम उठाए और अंततः बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के विभिन्न चरण (Phases of Nationalisation of Banks in India)
पहला चरण: 1955 - स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का गठन
- 1955 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) का गठन किया गया।
- यह पहला बड़ा कदम था जिससे बैंकिंग को सरकारी नियंत्रण में लाया गया और इसका विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक किया गया।
दूसरा चरण: 1969 - 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण
- 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिनके पास ₹50 करोड़ या उससे अधिक की जमा राशि थी।
- इन बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, आदि शामिल थे।
- यह कदम बैंकिंग क्षेत्र में सामाजिक और क्षेत्रीय असमानता को समाप्त करने की दिशा में निर्णायक माना गया।
3. तीसरा चरण: 1980 - 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण
- 1980 में सरकार ने 6 और वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
- इसके साथ ही राष्ट्रीयकृत बैंकों की संख्या 20 हो गई।
- इन बैंकों की कुल जमा राशि देश की बैंकिंग संपत्ति का 90% से अधिक हो गई, जिससे सरकार का नियंत्रण बैंकिंग क्षेत्र में और सुदृढ़ हुआ।
चरण
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वर्ष
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विवरण
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पहला चरण
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1955
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इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) का गठन।
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दूसरा चरण
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1969
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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण। इन बैंकों के पास ₹50 करोड़ से अधिक की जमा राशि थी।
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तीसरा चरण
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1980
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6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। अब कुल 20 राष्ट्रीयकृत बैंक अस्तित्व में आ गए।
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अन्य उल्लेखनीय घटनाएँ
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1993 में न्यू बैंक ऑफ इंडिया का पंजाब नेशनल बैंक में विलय हुआ
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राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता और कारण(Rationale and Imperatives Behind Bank Nationalisation in India)
नियोजित आर्थिक विकास की रणनीति(Strategic Alignment with Planned Economic Development)
- स्वतंत्रता उपरांत भारत ने समाजवादी मिश्रित अर्थव्यवस्था (Socialist Mixed Economy) का मार्ग चुना।
- पंचवर्षीय योजनाओं (Five-Year Plans) को क्रियान्वित करने हेतु सरकार को वित्तीय तंत्र पर प्रभावकारी नियंत्रण (Effective Financial Control) की आवश्यकता थी।
युद्धोत्तर आर्थिक संकट और संसाधन आवंटन(Post-war Economic Crisis and Need for Resource Mobilisation)
- 1962 (भारत-चीन) एवं 1965 (भारत-पाक) युद्धों के उपरांत राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) बढ़ा।
- ऐसे परिदृश्य में वित्तीय संसाधनों का केंद्रीकृत नियोजन (Centralised Planning of Resources) अत्यावश्यक हो गया।
खाद्य संकट एवं कृषि-पुनरुद्धार की आवश्यकता(Food Security Challenges and Agricultural Revitalisation)
- 1960 के दशक में लगातार सूखे से अन्न संकट उत्पन्न हुआ तथा भारत को अमेरिका के PL-480 कार्यक्रम पर निर्भर रहना पड़ा।
- हरित क्रांति (Green Revolution) को साकार करने के लिए सस्ती और सुलभ ग्रामीण बैंकिंग सेवाएं (Affordable Rural Credit Mechanism) अनिवार्य थीं।
वित्तीय असमानता और ऋण वितरण में पक्षपात(Financial Disparity and Skewed Credit Allocation)
- 1951–1968 के मध्य, बैंक ऋण का 68% उद्योगों को मिला, जबकि कृषि को मात्र 2%।
- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की पहुँच नगण्य थी, जिससे वित्तीय बहिष्करण (Financial Exclusion) और विकासात्मक विषमता (Developmental Disparity) बढ़ी।
निजी बैंकिंग प्रणाली की सीमाएँ(Limitations of Private Sector Banking System)
- निजी बैंक लाभ-केन्द्रित थे और उनकी सेवाएं शहरी उच्चवर्ग तक सीमित थीं।
- इस प्रकार, वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) बाधित हो रहा था।
सार्वजनिक हित एवं समाजोन्मुखी बैंकिंग (Public Welfare and Socio-Economic Transformation)
- सरकार बैंकों को विकास का उपकरण (Instrument of Development) बनाकर सामाजिक कल्याण (Social Welfare) सुनिश्चित करना चाहती थी।
- राष्ट्रीयकरण इस दिशा में संविधान-सम्मत जनोन्मुखी कदम (Constitutionally Aligned People-Centric Measure) था।
अन्य प्रमुख कारण (Other Key Reasons):
- सामाजिक कल्याण (Social Welfare)
- निजी एकाधिकार पर नियंत्रण (Controlling Private Monopolies)
- ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग विस्तार (Financial Inclusion in Rural Areas)
- क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना (Removing Regional Imbalance)
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के प्रभाव
बाधाओं का विघटन और समावेशन की ओर बढ़ाव(Elimination of Barriers and Expansion of Inclusivity)
- राष्ट्रीयकरण के पश्चात, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवरोध (Social, Economic and Political Barriers) जो ग्राहकों और बैंकों के बीच विद्यमान थे, ध्वस्त हो गए।
- इससे ग्राहक आधार में विस्फोटक वृद्धि (Explosive Growth in Customer Base) और बैंकिंग सेवाओं की सुलभता व गुणवत्ता में सुधार (Enhanced Accessibility and Quality of Banking Services) हुआ।
बैंकिंग नेटवर्क का भू-सांस्कृतिक विस्तार(Geo-Cultural Expansion of the Banking Network)
- बैंकों ने पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में शाखाएँ स्थापित (Branch Penetration in Backward and Rural Areas) करना आरंभ किया।
- इसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वित्तीय अंतर्वाह (Financial Inflow into Rural Economy) को बढ़ाया तथा स्थानीय रोजगार (Localized Employment) के अवसरों को जन्म दिया।
शाखा-संवृद्धि में क्रांतिकारी उछाल(Revolutionary Surge in Branch Proliferation)
- 1969 से 1997 के मध्य, शाखाओं की संख्या 7,219 से बढ़कर 57,000 हो गई — अर्थात 800% की वृद्धि दर (800% Growth in Branch Network)।
- इसी अवधि में:
- जमाओं (Deposits) में 11,000% और
- ऋणों (Advances) में 9,000% की अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
प्राथमिक क्षेत्र केंद्रित वित्त पोषण(Focused Financing Towards Priority Sectors)
- राष्ट्रीयकरण के उपरांत, बैंकों को कृषि, लघु उद्योग एवं ग्रामीण विकास जैसे प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों (Priority Sectors) की ओर उन्मुख किया गया।
- ये वे क्षेत्र थे जिन्हें निजी बैंक उपेक्षित (Neglected by Private Banks) करते थे।
भारतीय बैंकिंग प्रणाली की साख और प्रामाणिकता में वृद्धि(Augmentation of Trust and Credibility in Indian Banking)
- बैंकिंग की आसान पहुँच, बढ़ते ग्राहकों और संगठित बैंकिंग व्यवहार (Organised Banking Habits) ने बैंकिंग प्रणाली की लोकप्रियता व विश्वसनीयता (Popularity and Reliability) को सुदृढ़ किया।
- नागरिकों में संस्थागत वित्तीय विश्वास (Institutional Financial Trust) गहरा हुआ।
प्राथमिकता क्षेत्र ऋण अनिवार्यता(Statutory Implementation of Priority Sector Lending (PSL))
- राष्ट्रीयकरण के परिणामस्वरूप PSL योजना लागू की गई, जिसके तहत बैंकों को विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में न्यूनतम ऋण आवंटन (Mandatory Credit Allocation to Select Sectors) सुनिश्चित करना पड़ा।
- इससे कृषि और संबद्ध क्षेत्र (Agriculture & Allied Sectors) में राष्ट्रीय आय में भागीदारी (Contribution to National Income) बढ़ी।
घरेलू बचतों का संचयन एवं पुनर्निवेश(Mobilisation and Productive Deployment of Domestic Savings)
- राष्ट्रीयकरण ने आमजन की बचत को संस्थागत रूप में केंद्रित (Institutionalised Aggregation of Household Savings) किया।
- इन बचतों को उत्पादक क्षेत्रों (Productive Sectors) में पुनर्निवेश किया गया, जिससे सतत आर्थिक विकास (Sustainable Economic Development) को गति मिली।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण की आलोचनाएँ(Critical Appraisal of Bank Nationalisation in India)
अपर्याप्त बैंकिंग पहुँच और वित्तीय वंचना(Inadequate Outreach and Continued Financial Exclusion)
- यद्यपि राष्ट्रीयकरण के उपरांत बैंकिंग नेटवर्क का विस्तार हुआ, फिर भी अनेक ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्र (Remote and Tribal Areas) अनबैंक्ड (Unbanked Zones) बने रहे।
- प्रतिस्पर्धा की अनुपस्थिति (Absence of Market Competition) के कारण बैंकों में कार्यकुशलता, नवाचार और ग्राहक सेवा (Efficiency, Innovation and Customer Service) की भारी कमी देखी गई।
कार्यकुशलता व लाभप्रदता में संस्थागत क्षरण(Institutional Erosion of Efficiency and Profitability)
- राजनीतिक नियंत्रण (Political Control) के चलते बैंकिंग प्रबंधन में व्यवसायिक दृष्टिकोण का लोप (Decline of Professionalism) हुआ।
- इसके कारण परिचालन दक्षता (Operational Productivity) और शुद्ध लाभ (Net Profitability) में स्थायी गिरावट दर्ज की गई।
अत्यधिक राजनीतिक एवं प्रशासकीय हस्तक्षेप(Excessive Political and Bureaucratic Interventions)
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक राजनीतिक दबावों एवं लोकलुभावन योजनाओं (Populist Schemes) की बलि चढ़ गए।
- उदाहरणार्थ:
- ऋण मेलों (Loan Melas) के ज़रिये अनुपयुक्त उधार (Unsound Lending) किया गया।
- इससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets - NPAs) में नाटकीय वृद्धि हुई, जो आज भी बैंकिंग प्रणाली को संरचनात्मक रूप से नुकसान पहुँचा रही है।
प्रशासनिक खर्च और संसाधनों का दुरुपयोग(Escalation in Operational Costs and Resource Misallocation)
- शाखाओं के अतिविस्तार (Over-Expansion of Branch Network) और
- अधिशेष मानव संसाधन (Excessive Manpower) के चलते वेतन व पेंशन व्यय (Wage and Pension Liabilities) में भारी वृद्धि हुई।
- ट्रेड यूनियन गतिरोधों (Trade Union Disruptions) के कारण निर्णय प्रक्रिया बाधित होती रही, जिससे सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
ब्याज दरों की जटिल एवं अपारदर्शी संरचना(Complex and Non-Transparent Interest Rate Regime)
- अलग-अलग ऋण अवधि और उधारकर्ताओं के लिए असंगत ब्याज दरें (Inconsistent Interest Rates) तय की गईं।
- इससे ऋण प्रक्रिया जटिल, अलाभकारी और जोखिमपूर्ण (Complicated, Unprofitable and Risk-Prone) बन गई, जिसके चलते एनपीए की संभावना और बढ़ गई।
संक्षेप में (In Summary):
आलोचना (Criticism)
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अर्थ (Meaning in English)
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अपर्याप्त बैंकिंग सुविधाएँ
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Inadequate Banking Facilities
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कार्य कुशलता में कमी
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Decreased Operational Efficiency
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राजनीतिक हस्तक्षेप
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Political Interference
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खर्च में वृद्धि
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Rise in Operational Expenditure
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ब्याज दर की जटिलता
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Complex Interest Rate Structure
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राष्ट्रीयकरण के बाद सुधार की दिशा में कदम
वर्ष
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पहल
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1991
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नरसिंह राव सरकार द्वारा आर्थिक उदारीकरण के तहत बैंकिंग सुधारों की शुरुआत।
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1993
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न्यू बैंक ऑफ इंडिया का PNB में विलय।
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2010 का दशक
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जनधन योजना, डिजिटल बैंकिंग, PSB विलय, और बैंक बोर्ड ब्यूरो जैसे कदम।
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2019–20
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सरकार द्वारा कई सार्वजनिक बैंकों का आपस में विलय कर 12 PSBs बनाए गए।
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भारत में वर्तमान में राष्ट्रीयकृत बैंकों की सूची:
- बैंक ऑफ इंडिया
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन ओवरसीज बैंक
- पंजाब एंड सिंध बैंक
- बैंक ऑफ बड़ौदा
- केनरा बैंक
- इंडियन बैंक
- पंजाब नेशनल बैंक
- यूको बैंक
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (विशेष दर्जा प्राप्त सार्वजनिक बैंक)