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सूक्ष्म प्लास्टिक: पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य के लिए एक छिपा हुआ खतरा

  • हाल ही में शोधकर्ताओं ने एक चिंताजनक खोज की है—मानव और कुत्तों के अंडकोष (testes) में सूक्ष्म प्लास्टिक (microplastics) पाए गए हैं।
  • यह खोज यह दर्शाती है कि प्लास्टिक प्रदूषण किस हद तक जैविक प्रणालियों में प्रवेश कर चुका है।
  • इससे मानव प्रजनन क्षमता और संपूर्ण प्रजनन स्वास्थ्य पर इसके संभावित प्रभावों को लेकर नई चिंताएं सामने आई हैं।

सूक्ष्म प्लास्टिक क्या होते हैं?

  • सूक्ष्म प्लास्टिक अत्यंत छोटे प्लास्टिक कण होते हैं, जिनका आकार सामान्यतः 5 मिलीमीटर से कम होता है।
  • इनका आकार इतना छोटा होता है कि ये जीवों के शरीर में आसानी से प्रवेश कर सकते हैं—समुद्री जीवों से लेकर मानव ऊतकों तक।

सूक्ष्म प्लास्टिक के प्रकार:

  • प्राथमिक सूक्ष्म प्लास्टिक (Primary Microplastics): ये जानबूझकर छोटे आकार में बनाए जाते हैं, जैसे:
    • सौंदर्य प्रसाधनों (cosmetics) में इस्तेमाल होने वाले स्क्रब बीड्स
    • व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद
    • सिंथेटिक वस्त्र (जिनसे धुलाई के दौरान माइक्रोफाइबर निकलते हैं)
  • द्वितीयक सूक्ष्म प्लास्टिक (Secondary Microplastics): – ये बड़े प्लास्टिक उत्पादों के टूटने से बनते हैं, जैसे:
    • पानी की बोतलें
    • पैकेजिंग सामग्री
    • मछली पकड़ने के जाल
  • इनके टूटने का कारण सूर्य की रोशनी, लहरों की क्रिया और भौतिक घर्षण होता है।

पर्यावरण पर प्रभाव

  • समुद्री वातावरण में, सूक्ष्म प्लास्टिक को छोटी मछलियाँ, शंख, और ज़ोप्लैंकटन अक्सर भोजन समझ कर निगल लेते हैं।
  • इससे उनके शरीर में रुकावटें, आंतरिक चोटें, और भूखमरी होती है, जिससे उनकी मृत्यु तक हो सकती है।
  • ये छोटे समुद्री जीव खाद्य श्रृंखला के निचले स्तर पर होते हैं, अतः सूक्ष्म प्लास्टिक धीरे-धीरे बड़ी मछलियों, समुद्री स्तनधारियों और अंततः मानव शरीर तक पहुँच जाते हैं।
  • सूक्ष्म प्लास्टिक अविघटनीय (non-biodegradable) होते हैं, और सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रहते हैं, जिससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होता है।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • सूक्ष्म प्लास्टिक अब तक मानव रक्त, फेफड़ों, स्तन दूध, गर्भनाल, और अब अंडकोषीय ऊतकों में भी पाए जा चुके हैं, जो उनकी व्यापकता को दर्शाता है।

स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव:-

  • श्वसन तंत्र में प्रवेश करने पर ये सांस की जलन, एलर्जी, और फेफड़ों में सूजन का कारण बनते हैं।
  • पाचन तंत्र में इनका जमाव अपच, सूजन, और अन्य पाचन संबंधी विकारों का कारण बन सकता है।
  • सबसे गंभीर प्रभाव एंडोक्राइन बाधा (endocrine disruption) है, जिसमें प्लास्टिक के रसायन हार्मोन की नकल करते हैं और हार्मोन असंतुलन, प्रजनन समस्याएं, और भ्रूण विकास में गड़बड़ी का कारण बनते हैं।
  • लंबे समय तक इनका संपर्क प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी जोड़ा जा रहा है (हालांकि इस पर अभी शोध जारी है)।

सूक्ष्म प्लास्टिक (Microplastics) से उत्पन्न खतरे के समाधान :-

1. नीतिगत एवं सरकारी समाधान

सख्त विनियमन (Regulation):-

  • सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध को और व्यापक बनाया जाए।
  • सौंदर्य प्रसाधनों और कपड़ा उद्योग में प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।

विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर):

  • उत्पादकों को उनके प्लास्टिक उत्पादों के जीवनचक्र के अंत तक ज़िम्मेदार ठहराया जाए।
  • कंपनियों को अनिवार्य रूप से रीसायक्लिंग योजनाएं अपनाने को बाध्य किया जाए।

शोधन संयंत्रों को उन्नत बनाना:

  • पानी के शोधन संयंत्रों में ऐसे फिल्टर लगाए जाएँ जो माइक्रोप्लास्टिक को अलग कर सकें।

2. वैज्ञानिक और तकनीकी समाधान

बायोडिग्रेडेबल विकल्पों का विकास:

  • प्राकृतिक रूप से नष्ट होने वाले प्लास्टिक विकल्प (जैसे PLA, PHA) का शोध और उत्पादन बढ़ाया जाए।

फाइबर कैप्चर तकनीक:

  • वॉशिंग मशीनों में माइक्रोफाइबर फिल्टर अनिवार्य किए जाएँ ताकि सिंथेटिक कपड़ों से निकले फाइबर जल निकासी में न जाएँ।

Microplastic Mapping और रिसर्च:

  • यह जानने के लिए कि सूक्ष्म प्लास्टिक कहाँ सबसे अधिक एकत्र होते हैं, जैविक निगरानी (Biomonitoring) और नैनो-ट्रैकिंग की जाए।

3. सामाजिक और जन-जागरूकता अभियान

शिक्षा और जन जागरूकता:

  • स्कूलों, कॉलेजों और जनमाध्यमों के ज़रिए प्लास्टिक के खतरों और विकल्पों के बारे में जागरूकता फैलाई जाए।

स्वेच्छिक प्लास्टिक प्रयोग में कटौती:

  • Bring Your Own Bag जैसी पहलें बढ़ाई जाएँ।
  • पुन: उपयोग योग्य बोतलें, बर्तन, और कपड़े अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए।

4. व्यक्तिगत स्तर पर समाधान

करना चाहिए

नहीं करना चाहिए

पुन: उपयोग वाले कप और बोतलों का उपयोग

सिंगल यूज़ बोतलें और प्लास्टिक स्ट्रॉ

प्राकृतिक कपड़ों (जैसे कपास, लिनन) को प्राथमिकता

सिंथेटिक वस्त्रों की अंधाधुंध खरीदारी

जैव-अपघटनीय उत्पादों का चयन

माइक्रोबीड युक्त स्क्रब या टूथपेस्ट

कम धोने वाले कपड़े चुनना

बार-बार सिंथेटिक कपड़ों को वॉश करना

5. वैश्विक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग

  • यूएनईपी, WHO और GEF जैसी संस्थाओं के साथ भारत को मिलकर:
    • वैश्विक मानक बनाना चाहिए,
    • रिसर्च में सहयोग करना चाहिए,
    • तकनीकी व वित्तीय सहायता लेनी चाहिए।
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