(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
- अल्पसंख्यक-संचालित स्कूलों को बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (Right to Education: RTE) अधिनियम, 2009 से छूट प्रदान करने के मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय की बड़ी पीठ को सौंप दिया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 के अपने संविधान पीठ के उस फैसले पर पुनर्विचार करने का आह्वान किया है जिसमें अल्पसंख्यक संस्थानों को इस कानून के लागू होने से पूरी तरह छूट दी गई थी।
पृष्ठभूमि
- आर.टी.ई. अधिनियम, 2009 निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में वंचित समूहों के बच्चों के लिए 25% आरक्षण अनिवार्य करता है।
- अनुच्छेद 21A में 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है।
- अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का अधिकार प्रदना करता है।
संबंधित न्यायिक निर्णय
सोसाइटी फॉर अनएडेड प्राइवेट स्कूल्स बनाम भारत संघ (2012) वाद
- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में 25% आर.टी.ई. कोटा को बरकरार रखा।
- किंतु अनुच्छेद 30 के अधिकारों का हवाला देते हुए अल्पसंख्यक संस्थानों को इससे बाहर रखा।
- बाद के निर्णयों में यह सवाल उठा कि :
- क्या सभी अल्पसंख्यक स्कूलों (सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त) को छूट दी जानी चाहिए।
- क्या यह छूट आर.टी.ई. की सार्वभौमिक प्रकृति को कमज़ोर करती है।
- वर्तमान संदर्भ अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) और अनुच्छेद 30 (अल्पसंख्यक अधिकार) के बीच संतुलन बनाने पर स्पष्टता चाहता है।
प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट वाद 2014
- इस मामले में पाँच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(सी) की संवैधानिकता का परीक्षण किया।
- यह प्रावधान शैक्षणिक संस्थानों को प्रारंभिक शिक्षा में सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने के लिए प्रवेश स्तर पर वंचित समूहों और कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए 25% आरक्षण प्रदान करने का आदेश देता है।
- हालाँकि, वर्ष 2014 के फैसले में यह निष्कर्ष निकाला गया कि धारा 12(1)(सी) इन संस्थानों के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन करती है और उनकी संस्थागत स्वायत्तता को प्रभावित करती है।
- संविधान पीठ ने अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे से पूरी तरह बाहर कर दिया।
सर्वोच्च न्यालय की हालिया टिपण्णी
- न्यायमूर्ति दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्णय दिया कि प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट के फैसले ने अनजाने में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की नींव को ही खतरे में डाल दिया है।
- पीठ के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम से छूट देने से समान स्कूली शिक्षा की अवधारणा का विखंडन होता है और अनुच्छेद 21A में निहित समावेशिता एवं सार्वभौमिकता का विचार कमज़ोर होता है।
- यह जाति, वर्ग, पंथ एवं समुदाय के बच्चों को एकजुट करने के बजाय साझा शिक्षण स्थलों की परिवर्तनकारी क्षमता को ‘विभाजित’ एवं ‘कमज़ोर’ करता है।
- अल्पसंख्यक का दर्जा शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अधिदेश को दरकिनार करने का एक ज़रिया बन गया है।
वाद का महत्त्व
- संवैधानिक संतुलन : यह मामला इस बात का परीक्षण करता है कि अल्पसंख्यक अधिकार बनाम शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुँच जैसे मौलिक अधिकार कैसे परस्पर क्रिया करते हैं।
- शिक्षा नीति पर प्रभाव : यह फैसला हज़ारों अल्पसंख्यक-संचालित स्कूलों और लाखों बच्चों को प्रभावित कर सकता है।
- सामाजिक न्याय संबंधी चिंताएँ : छूट से वंचित बच्चों की गुणवत्तापूर्ण निजी शिक्षा तक पहुँच सीमित हो सकती है।
- बड़ी पीठ का फैसला अल्पसंख्यक संस्थानों में आर.टी.ई. के दायरे की आधिकारिक व्याख्या प्रदान करेगा।
निष्कर्ष
न्यायालय का अंतिम फैसला शिक्षा में अल्पसंख्यक स्वायत्तता की रक्षा और आर.टी.ई. के तहत सभी बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के बीच संतुलन को आकार देगा।