New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM Diwali Special Offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 22nd Oct. 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 20th Nov., 11:30 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 03rd Nov., 11:00 AM

म्यांमार में तख्तापलट और भारत की रणनीति

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

म्यांमार में सत्ता संघर्ष का परिणाम म्यांमार के जनरल मिन आंग ह्लिंग के नेतृत्व में तख्तापलट के रूप में पुन: सामने आया है, जिसने वास्तव में लोकतांत्रिक म्यांमार के लिये दशकों से चली आ रही उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। म्यांमार में लोकतंत्र की अनिश्चितता के बीच दो शक्तिशाली देश यहाँ अपने शक्ति और प्रभाव के लिये प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जो क्षेत्र के भू-राजनीति के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत को पहले से मौजूद रणनीतिक विकल्पों के साथ रचनात्मक प्रतिक्रिया देनी होगी।

तख्तापलट, राजनीति और भू-राजनीति

  • जहाँ फरवरी 2021 से पूर्व म्यांमार का लोकतंत्र अल्पसंख्यकों के प्रति असहयोगी और असहिष्णु था, वहीं अब इसके राजनीतिक भविष्य का और अधिक जटिल होना तय है।
  • तख्तापलट के मद्देनज़र अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध के खतरे तथा उनकी प्रतिक्रियाओं की आशंका से म्यांमार में अद्वितीय राजनीतिक स्थिति पैदा हो सकती है।
  • सत्ता में बने रहने के लिये रोहिंग्या मुद्दे पर ‘आंग सान सू की’ की चुप्पी के कारण भले ही उनकी लोकतांत्रिक साख आज कम हुई है, परंतु म्यांमार में लोकतंत्र बहाली को आगे बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। रोहिंग्या मुद्दे और वर्तमान घटना के कारण ‘आंग सान सू की’ म्यांमार में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की राजनीतिक गणना के केंद्र में आ गईं हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में ‘सू की’ का समर्थन करने वालों को म्यांमार में लोकतंत्र रक्षक के रूप में उनको प्रस्तुत करने के लिये रोहिंग्या के खिलाफ उनकी सरकार के पिछले कार्यों की निंदा करनी पड़ सकती है। अब जब वह म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के अंतर्राष्ट्रीय अभियान की पोस्टर लीडर होंगी, तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में रोहिंग्या मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिये जाने की उम्मीद है।

चीन का मुद्दा

  • अल्पावधि में यह तख्तापलट चीन, भारत और यहाँ तक ​​कि बाकी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हितों को क्षति पहुँचाएगा, जिनमें से सभी अपने-अपने तरीकों से म्यांमार के साथ संबंधों में संलग्न थे।
  • हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रियाएँ म्यांमार के सैन्य शासन को चीन की ओर रुख करने के लिये मज़बूर करेंगीं। भले ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का देश में ‘जुंटा शासन’ पर गहरा असर न पड़े और इसके जनरलों के हित अधिक प्रभावित न हों, फिर भी यह आशा की जाती है कि चीन क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर म्यांमार को राजनीतिक व राजनयिक समर्थन प्रदान करेगा।
  • चीन के लिये तख्तापलट ने म्यांमार में उसकी बड़ी क्षेत्रीय आर्थिक योजनाओं को कम समय के लिये ही सही परंतु जटिल कर दिया है। हाल के दिनों में चीन और ‘आंग सू की’ के मध्य रिश्ते मज़बूत हुए थे, जिस कारण वे पश्चिम में बढ़ती आलोचना का सामना कर रही थीं। जुंटा द्वारा ‘आंग सू की’ को जेल में डालना चीन की योजनाओं को जटिल बना सकता है।
  • चीन के लिये सकारात्मक पक्ष यह है कि पश्चिमी प्रतिबंधों से सेना को चीन के करीब आने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा। साथ ही चीन लोकतंत्र का बहुत बड़ा समर्थक नहीं रहा है और वह म्यांमार में नई योजनाओं का प्रयोग करके इस तख्तापलट का सबसे बड़ा लाभार्थी हो सकता है।
  • इस प्रकार, चीन के पास जुंटा का समर्थन करने और उसके बदले में चीनी हितों को संरक्षित करने का कारण विद्यमान है और परंपरागत रूप से चीन का करीबी न माने जाने वाली सेना अपने दृष्टिकोण में बदलाव ला सकती है।

भारत की आशंका

  • भारत तख्तापलट के प्रति प्रतिक्रिया को लेकर दुविधा में है। अभी तक भारत, म्यांमार में दोनों प्रकार के शक्ति केंद्रों के साथ अनुकूलन में रहा है और उसको अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों व आदर्शों की चिंता करने या अपने राष्ट्रीय हितों का त्याग करने के बारे में चिंतित रहने की आवश्यकता नहीं थी।
  • आदर्शों और हितों के बीच एक मुश्किल विकल्प के कारण भारत की म्यांमार नीति अभी तक आकार नहीं ले पाई है। एक तरफ जहाँ ‘सू की’ का राजनीतिक प्रयोग दोषरहित नहीं था वहीं दूसरी ओर भारत के राष्ट्रीय हितों को सैन्य शासन ने आघात नहीं पहुँचाया था।
  • नई परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रीय हित वहाँ सत्ता में रहने वाले पर निर्भर करता है और भारत को पश्चिमी व अमेरिकी रुख को देखते हुए जुंटा का समर्थन करना मुश्किल होगा। दूसरी ओर, भारत वहाँ लोकतंत्र की बहाली की माँग करके जुंटा को नाराज कर सकता है, जोकि घनिष्ठ पड़ोसी होने के नाते भारत के लिये हानिकारक हो सकता है।

आगे की राह

  • म्यांमार की सेना उत्तर-पूर्वी उग्रवाद को रोकने में भारत की सहायता कर सकती है। पिछले दिनों दोनों देशों की सेनाओं के बीच समन्वित कार्रवाई और खुफिया जानकारी के साझाकरण से भारत को सहायता मिली है।
  • इसके अतिरिक्त म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद रोहिंग्या के मामलें में भी भारत के लिये असहज स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस क्षेत्र में रोहिंग्या की चिंताओं को दूर न करने या उनके अधिकारों के उल्लंघन से इस समुदाय के भीतर चरमपंथ का उदय हो सकता है, जो कि लंबे समय के लिये भारत के हित में नहीं होगा। साथ ही इससे भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी असर पड़ेगा।
  • इस प्रकार भारत के पास स्पष्ट नीति के साथ विकल्पों का आभाव है। ऐसी स्थिति में भारत को म्यांमार में सत्ता के साथ संबंध को बनाए रखना चाहिये और देश में राजनीतिक सुलह के लिये विवेकपूर्ण तरीके से ज़ोर देना चाहिये। इस बीच दोनों पक्षों के मध्य व्यापार, कनेक्टिविटी और सुरक्षा लिंक में सुधार पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR
X