चर्चा में क्यों ?
2025 में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) में कुल 7,698 शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें सबसे आम शिकायतें थीं:
- घरेलू हिंसा: पति या परिवारजन द्वारा शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न।
- उत्पीड़न और धमकियाँ: कार्यस्थल या सामाजिक स्तर पर।
- आपराधिक प्रकृति की धमकियाँ और यौन हिंसा के मामले।

इससे स्पष्ट होता है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएँ लगातार बनी हुई हैं, और आयोग की भूमिका इन समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय महिला आयोग: परिचय
- स्थापना: 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत।
- प्रकार: सांविधिक निकाय
- उद्देश्य: महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा, विधायी सुधारों की सिफारिश, शिकायत निवारण, कानूनी सहायता और पूछताछ।
- रिपोर्टिंग: आयोग वार्षिक और विशेष रिपोर्ट केंद्र सरकार को प्रस्तुत करता है। ये रिपोर्ट्स संबंधित राज्य सरकारों को कार्यवाही के लिए भेजी जाती हैं।
प्रमुख कार्य और जिम्मेदारियां
- कानून और नीतियों की समीक्षा
- महिलाओं से संबंधित प्रमुख कानूनों की समीक्षा और संशोधन की सिफारिश।
- घरेलू हिंसा अधिनियम (2005)
- महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम (2013)
- इन कानूनों में सुधार के लिए आयोग सरकार और न्यायपालिका को सिफारिशें भेजता है।
- शिकायत निवारण और सहायता
- वन-स्टॉप सेंटर: निर्भया फंड के तहत महिलाओं को कानूनी, चिकित्सा और मानसिक सहायता।
- स्वतः संज्ञान: संवेदनशील मामलों में स्वतः कार्रवाई, जैसे बाड़मेर आत्महत्या मामला (जून 2025)।
- NRI प्रकोष्ठ: भारतीय महिलाओं की शिकायतों का निवारण जो NRI या प्रवासी पतियों द्वारा छोड़ी गई हैं।
- शिक्षा और जागरूकता
- डिजिटल साक्षरता अभियान: “यशोदा AI पहल” – महिलाओं में AI और डिजिटल साक्षरता बढ़ाना।
- विवाह-पूर्व परामर्श: “तेरे मेरे सपने” कार्यक्रम के माध्यम से वैवाहिक जीवन के मुद्दों पर मार्गदर्शन।
- त्वरित विवाद समाधान
- पारिवारिक महिला लोक अदालतें: विवाह और पारिवारिक विवादों का त्वरित समाधान।
- आयोग राज्य सरकारों और NGOs के साथ समन्वय कर मध्यस्थता में भी सहायता करता है।
उपलब्धियां और प्रमुख पहलें
- संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को मजबूत करने में योगदान।
- वन-स्टॉप सेंटर और सहायता केंद्रों की स्थापना।
- संवेदनशील मामलों में स्वतः संज्ञान और जांच।
- डिजिटल साक्षरता और AI जागरूकता के माध्यम से महिलाओं की क्षमता विकास।
- पारिवारिक और विवाह विवादों का त्वरित समाधान।
- NRI प्रकोष्ठ के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाओं की सुरक्षा।
राष्ट्रीय महिला आयोग की आलोचनाएँ
- पर्याप्त अधिकार का अभाव
- आयोग के पास अर्ध-न्यायिक शक्तियाँ नहीं हैं।
- यह केवल सिफारिश कर सकता है, कानून लागू नहीं कर सकता।
- इसे अक्सर “दंतहीन बाघ” कहा जाता है।
- सीमित संसाधन और पहुंच
- बजट और स्टाफ की कमी।
- ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में उपस्थिति सीमित।
- जनता में जागरूकता कम।
- समन्वय और प्रभावकारिता
- राज्य महिला आयोगों के साथ तालमेल की कमी।
- अधिकार क्षेत्र और जिम्मेदारियों को लेकर टकराव।
- आयोग की सिफारिशों पर अक्सर कार्रवाई नहीं होती।
- राजनीतिक हस्तक्षेप
- अध्यक्षों की नियुक्ति राजनीतिक दबाव में होती है।
- बार-बार अध्यक्ष बदलने से स्वतंत्रता प्रभावित।
- संवेदनशील मामलों (जैसे हाथरस, मणिपुर) में कार्रवाई में देरी।
आगे की राह: संसदीय समिति की सिफारिशें
- अधिक स्वतंत्र और प्रभावी आयोग
- NCW अधिनियम की समीक्षा।
- आयोग को वास्तविक अर्ध-न्यायिक शक्तियाँ देना।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना
- पुलिस और अन्य एजेंसियों पर आयोग के निर्देशों के पालन की बाध्यता।
- पालन न करने पर दंड का प्रावधान।
- राज्य आयोगों के साथ तालमेल
- कानूनी रूप से समन्वय और अधिकार क्षेत्रों की स्पष्टता।
- स्वतंत्र नियुक्तियां
- सिविल सोसाइटी और न्यायपालिका की भागीदारी से योग्यता आधारित चयन।
- संसाधन और पहुँच बढ़ाना
- फंडिंग बढ़ाना।
- क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करना।
- NGOs के साथ साझेदारी और डिजिटल शिकायत निवारण।
- वंचित समूहों पर विशेष ध्यान
- अनुसूचित जाति/जनजाति, दिव्यांग और अल्पसंख्यक महिलाओं पर फोकस।
- डेटा संग्रह और अनुसंधान
- महिलाओं से संबंधित विकास और अन्य संकेतकों पर डेटा संग्रह।
- स्थानीय शोध और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा।
निष्कर्ष
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण संस्थान है।
- लेकिन प्रभावी बनने के लिए:
- अधिक कानूनी शक्तियां
- स्वतंत्रता
- जमीनी स्तर पर मजबूत उपस्थिति अत्यंत आवश्यक हैं।
- सशक्त NCW ही भारत में महिलाओं के साथ न्याय और लिंग समानता सुनिश्चित करने की कुंजी है।