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राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र- 3: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी)

संदर्भ 

केंद्रीय बजट 2025-26 में वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन (National Mission on High Yielding Seeds) की घोषणा की। 

राष्ट्रीय उच्च उपज बीज मिशन के बारे में  

  • बजट आवंटन : 100 करोड़ रुपए  
  • लक्ष्य : इस मिशन का प्रमुख लक्ष्य भारत की खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के साथ ही पारंपरिक फसलों की सुरक्षा करना, बीज संप्रभुता को बढ़ावा देना और जैव विविधता की रक्षा करना है। 
  • उद्देश्य : 
    • अनुसंधान को बढ़ावा देना : इस मिशन का उद्देश्य नए उच्च उपज वाले बीजों पर अनुसंधान को बढ़ावा देकर बीजों की विभिन्न किस्में विकसित करना 
    • प्रतिरोध क्षमता में सुधार : इसमें ऐसे बीजों के निर्माण पर ध्यान दिया जाएगा जो कीटों एवं जलवायु तनाव का प्रतिरोध कर सकें तथा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पर्यावरणीय परिस्थितियां बदलने पर भी वे उत्पादक बने रहें।
    • व्यावसायिक उपलब्धता : इसका लक्ष्य इन बीजों को किसानों के लिए आसानी से सुलभ बनाना है तथा उन्हें इन किस्मों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।

उच्च उपज वाले बीजों के बारे में

कृषि फसलों में उच्च उपज वाले बीज किस्में (HYV) पारंपरिक किस्मों के विपरीत आमतौर पर उच्च उत्पादकता, शीघ्र परिपक्वता एवं बेहतर गुणवत्ता वाली किस्में होती हैं जिसके निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  • भूमि की प्रति इकाई उच्च उत्पादकता 
  • भूमि-उपयोग परिवर्तन को कम करने में सहायक 
  • सिंचाई पर निर्भरता में कमी 
  • प्रतिकूल मौसम की स्थिति (सूखा, बाढ़, लवणता) के प्रति सहनशीलता
  • पोषक तत्वों का अधिक अवशोषण
  • फसल नुकसान में कमी 

मिशन की प्रमुख चुनौतियां

  • पारंपरिक बीजों की मांग में कमी : उच्च उपज वाले बीजों को बढ़ावा देने से पारंपरिक देशी बीजों में कमी आ सकती है। भारत में पारंपरिक एवं स्वदेशी बीजों का समृद्ध इतिहास है जो कई वर्षों से स्थानीय जलवायु व मृदा के साथ अनुकूलित हो चुके हैं। ये बीज प्राय: कीटों के प्रति अधिक लचीले होते हैं और रसायनों का कम उपयोग करते हैं।
  • मोनोकल्चर को बढ़ावा : कुछ उच्च उपज वाली किस्मों के व्यापक उपयोग से मोनोकल्चर खेती को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • मोनोकल्चर का आशय बड़े क्षेत्रों में एक ही फसल उगाना है जिससे अस्थायी रूप से पैदावार बढ़ सकती है लेकिन फसलें बीमारियों व कीटों के प्रति संवेदनशील भी हो जाती हैं।
  • परागण विविधता में कमी : एक समान बीज किस्मों को बढ़ावा देने से परागण विविधता में कमी हो सकती है। विभिन्न फसलें और उनके पुष्प चक्र मधुमक्खियों व तितलियों की आबादी का समर्थन करने में मदद करते हैं। ऐसे परागण में कमी पारिस्थितिकी तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। 

क्या आप जानते हैं?

  • खाद्य प्रणालियाँ कार्बन उत्सर्जन के एक बड़े हिस्से के लिए ज़िम्मेदार हैं। नेचर फ़ूड में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2015 में खाद्य-प्रणाली उत्सर्जन वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 18 Gt CO2 के बराबर था, जो कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 34% था। 
    • इसका सबसे बड़ा हिस्सा कृषि एवं भूमि उपयोग व भूमि-उपयोग परिवर्तन गतिविधियों से था। 
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