(केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission: NMC) ने शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए बेंचमार्क दिव्यांगजनों (PwBD) के लिए एम.बी.बी.एस. प्रवेश हेतु अंतरिम दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें दिव्यांगता प्रतिशत से कार्यात्मक योग्यता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
दिशानिर्देश के मुख्य प्रावधान
- उद्देश्य : दिव्यांग उम्मीदवारों का चिकित्सा शिक्षा में निष्पक्ष समावेश सुनिश्चित करना।
- स्व-प्रमाणित शपथ पत्र : दिव्यांगजन उम्मीदवारों को अनिवार्य विशिष्ट दिव्यांगता पहचान पत्र (UDID) के साथ-साथ एक स्व-घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा जिसमें उनके द्वारा किए जा सकने वाले कार्य (और न किए जा सकने वाले कार्य) का विवरण दिया गया हो।
- मेडिकल बोर्ड सत्यापन : उम्मीदवारों को अपनी कार्यात्मक क्षमताओं के सत्यापन के लिए 16 नामित मेडिकल बोर्ड्स में से किसी एक के समक्ष उपस्थित होना होगा, जहाँ एम.बी.बी.एस. पाठ्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने की उनकी क्षमता का आकलन किया जाएगा।
- कार्यात्मक योग्यता पर ध्यान : ये दिशानिर्देश पहले की अंकगणितीय दिव्यांगता सीमा के स्थान पर वैकल्पिक कार्यात्मकताओं के माध्यम से उम्मीदवारों की कमियों की भरपाई करने की क्षमता के मूल्यांकन को शामिल करते हैं।
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम का अनुपालन : मेडिकल कॉलेजों को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम का पालन करने, समावेशी बुनियादी ढाँचा और उचित सुविधाएँ सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।
प्रभाव
- दिशानिर्देशों का उद्देश्य एम.बी.बी.एस. कार्यक्रमों की शैक्षणिक एवं नैदानिक कठोरता के साथ समावेशिता को संतुलित करना है।
- हालाँकि, मेडिकल बोर्ड्स की सीमित संख्या और राज्यों में उनका असमान वितरण उम्मीदवारों के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न करता है क्योंकि इससे प्रमाणन के लिए दिव्यांग छात्रों को लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ सकती है।
आलोचना
- एन.एम.सी. के अंतरिम दिशानिर्देश दिव्यांग छात्रों के लिए प्रवेश प्रक्रिया में संशोधन के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करते हैं। हालाँकि, आलोचकों का तर्क है कि ये दिशानिर्देश सक्षमतावाद को बढ़ावा दे सकते हैं।
- उदाहरण के लिए, सीढ़ियाँ चढ़ने जैसी आवश्यकताओं को चिकित्सा पद्धति के लिए अप्रासंगिक माना जाता है।
- आलोचक अस्पतालों में लिफ्ट जैसी सुविधाओं की वकालत करते हैं, जैसा कि यू.के. जैसे देशों में प्रचलित है।
निष्कर्ष
एन.एम.सी. का यह कदम भारत के चिकित्सा कार्यबल में विविधता को बढ़ावा देने तथा समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए प्रणालीगत परिवर्तनों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।