(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
संदर्भ
भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्थापित राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क (NPSN) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना बनाई है। हालाँकि, विशेषज्ञों ने इस कदम को समय से पहले एवं जोखिम भरा बताया है क्योंकि पड़ोसी देशों में पोलियो के मामले अभी भी मौजूद हैं।
राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क (NPSN) के बारे में
- क्या है : यह नेटवर्क भारत में पोलियो एवं अन्य बीमारियों की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्तमान में इसमें 200 से अधिक इकाइयाँ हैं।
- स्थापना : 1990 के दशक में WHO के सहयोग से
- उद्देश्य : भारत में पोलियो उन्मूलन करना
- महत्वपूर्ण योगदान
- पोलियो निगरानी : वाइल्ड पोलियो वायरस (प्राकृतिक रूप से फैलने वाला) और वैक्सीन-जनित पोलियो वायरस (VDPV) की निगरानी।
- टीकाकरण समर्थन : ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) और इंजेक्शन आधारित पोलियो वैक्सीन (IPV) अभियानों का समन्वय
- अन्य बीमारियाँ : खसरा (Measles), रूबेला (Rubella), डिप्थीरिया (Diphtheria), काली खाँसी (Pertussis) एवं निओनेटल टेटनस (Neonatal Tetanus) की निगरानी
- स्वास्थ्य प्रशिक्षण : नए टीकों के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण
- उपलब्धि : भारत को वर्ष 2014 में पोलियो-मुक्त घोषित किया गया, जबकि वर्ष 2011 में अंतिम वाइल्ड पोलियो मामला दर्ज हुआ था। यह उपलब्धि NPSN की सक्रिय निगरानी एवं व्यापक टीकाकरण अभियानों का परिणाम थी।
NPSN को चरणबद्ध समाप्त करने की योजना
- वर्ष 2024-25 : 280 इकाइयों से कम करके 190 इकाइयाँ
- वर्ष 2025-26 : 190 से कम करके 140 इकाइयाँ
- वर्ष 2026-27 : और अधिक कमी। इसके बाद निगरानी को एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP) में समाहित किया जाएगा।
विशेषज्ञों की चिंताएँ
विशेषज्ञों ने इस निर्णय को समय से पहले एवं जोखिम भरा बताया है क्योंकि-
- पड़ोसी देशों में पोलियो : अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में परिसंचारी वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (cVDPV) के मामले बढ़ रहे हैं।
- वर्ष 2024 में पाकिस्तान में 49 और अफगानिस्तान में 23 मामले दर्ज हुए, जो वर्ष 2023 के 6 मामलों से काफी अधिक हैं।
- भारत की इन देशों के साथ खुली सीमाएँ जोखिम बढ़ाती हैं।
- वैक्सीन-जनित पोलियो का खतरा : वर्ष 2016 के बाद भारत में टाइप 2 पोलियो के खिलाफ टीकाकरण बंद कर दिया गया। यदि cVDPV टाइप 2 भारत में आता है तो व्यापक प्रसार एवं दर्जनों मामले हो सकते हैं।
- निगरानी की कमी : NPSN की समाप्ति से निगरानी कमजोर हो सकती है जिससे पोलियो का पुनरुत्थान संभव है। यह ‘भयावह’ हो सकता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर पोलियो अभी भी मौजूद है।
- अन्य बीमारियों पर प्रभाव : NPSN खसरा, रूबेला एवं अन्य वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों की निगरानी भी करता है। इसके समापन से इन बीमारियों की निगरानी प्रभावित हो सकती है।
- रोजगार संकट : NPSN में लगभग 800 स्वास्थ्य कर्मचारी एवं सहायक कर्मचारी कार्यरत हैं। समापन से इन कर्मचारियों की नौकरियाँ खतरे में हैं।
चुनौतियाँ
- पोलियो का पुनरुत्थान : पड़ोसी देशों से पोलियो आने का खतरा, विशेष रूप से cVDPV टाइप 2
- निगरानी में कमी : IDSP में निगरानी को समाहित करने में देरी या अपर्याप्त संसाधन से जोखिम बढ़ सकता है।
- कर्मचारी प्रभाव : नौकरी छूटने से स्वास्थ्य कर्मचारियों का मनोबल प्रभावित होगा।
- क्षेत्रीय समन्वय : अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के साथ टीकाकरण अभियानों में समन्वय की कमी भारत को प्रभावित कर सकती है।
आगे की राह
- IPV पर जोर : OPV को पूरी तरह से IPV से बदलना चाहिए क्योंकि यह cVDPV के जोखिम को कम करता है। इसके बाद निगरानी को कम किया जा सकता है।
- मजबूत IDSP : एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम को NPSN की क्षमताओं को अवशोषित करने के लिए संसाधन एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
- क्षेत्रीय सहयोग : भारत को WHO और पड़ोसी देशों के साथ मिलकर पोलियो उन्मूलन के लिए समन्वित प्रयास करने चाहिए।
- कर्मचारी पुनर्वास : NPSN कर्मचारियों को अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों में समायोजित करना चाहिए ताकि उनकी विशेषज्ञता का उपयोग हो सके।
- पर्यावरण निगरानी : पुणे जैसे शहरों में सीवेज नमूनों के माध्यम से पोलियो की निगरानी को बढ़ावा देना चाहिए।