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नीलकुरिंजी (Neelakurinji)

(प्रारंभिक परीक्षा के लिए – नीलकुरिंजी, शोला वन)

नीलकुरिंजी

  • नीलकुरिंजी का वैज्ञानिक नाम, स्ट्रोबिलैन्थेस कुंथियानस है।
  • यह एकेंथेसी परिवार की एक झाड़ी है, जो केरल और तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाई जाती है।
    • पश्चिमी घाट के अलावा, कर्नाटक में बेल्लारी जिले तथा पूर्वी घाट में शेवरॉय पहाड़ियों में भी इसे देखा जा सकता है।
  • नीलकुरिंजी का पौधा जीनस स्ट्रोबिलैन्थस , परिवार एकेंथेसी से संबंधित है।
  • जीनस की कुल 250 प्रजातियाँ हैं, इनमें से लगभग 46 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती है।
  • नीलकुरिंजी 1,300-2,400 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है, तथा 30 से 60 सेमी की ऊंचाई तक बढ़ता है।
  • स्थानीय रूप से इसे कुरिंजी के रूप में जाना जाता है, इसका वर्णन प्राचीन तमिल साहित्य में भी मिलता है।
  • इस पौधे का नाम प्रसिद्ध कुंती नदी के नाम पर रखा गया है, जो केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क से होकर बहती है, जहां यह पौधा बहुतायत से पाया जाता है।
  • नीलकुरिंजी के फूल 12 वर्ष में एक बार ही खिलते है।
  • नीलगिरि हिल्स (शाब्दिक अर्थ नीले पहाड़) को अपना नाम नीलकुरिंजी के नीले फूलों से ही मिला।
  • पलियान जनजाति (तमिलनाडु) अपनी आयु की गणना के लिए, इसका उपयोग संदर्भ के रूप में करती है।
  • केरल का कुरिंजिमाला अभयारण्य, इडुक्की जिले के कोट्टाकंबूर और वट्टावड़ा गांवों में लगभग 32 किमी के 2 कोर निवास स्थान में नीलकुरिंजी का संरक्षण करता है।

संकट

  • इस पौधे की प्रजातियों के आवास, जैसे शोला वन और घास के मैदानों को चाय और कॉफी के बागानों में बदल दिया गया है।
  • पाइनस, वेटल और यूकेलिप्टस जैसी विदेशी प्रजातियों के अंधाधुंध रोपण ने भी इन दुर्लभ पौधों की प्रजातियों के मूल आवासों पर अतिक्रमण कर लिया है।
  • पर्यटन में वृद्धि, अतिक्रमण, पानी की कमी और प्लास्टिक कचरे के जमाव ने इसके पारिस्थितिकी तंत्र को और खराब कर दिया है।

Shola-forest

शोला वन

  • शोला वन दक्षिणी भारत के, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में फैले उच्च ऊंचाई पर स्थित, घास के मैदानों से घिरे हुए उष्णकटिबंधीय पर्वतीय वनों के पैच है।
    • शोला वन, के ये पैच मुख्य रूप से घाटियों में पाए जाते हैं, और आमतौर पर पर्वतीय घास के मैदान को एक दूसरे से अलग करते है।
    • शोला और घास के मैदान मिलकर शोला-घास का मैदान परिसर या मोज़ेक बनाते हैं।
  • दक्षिण भारत के शोला वनों का नाम तमिल शब्द सोलाई से लिया गया है, जिसका अर्थ है उष्णकटिबंधीय वर्षा वन।
  • शोला वन कई संकटग्रस्त और स्थानिक प्रजातियों का घर है।
  • शोला वनों में किसी भी अन्य मिट्टी की तुलना में उच्च जल धारण क्षमता होती है।

संकट

  • शोला वन और घास के मैदान, बड़े पैमाने पर मानवजनित गतिविधि के साथ-साथ आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर खतरों का सामना कर रहे है।
  • शोला पेड़ की प्रजातियों में सबसे कम पुनर्जनन दर होती है, ये बहुत जल्दी स्थापित नहीं होते हैं, और जलवायु परिवर्तन के प्रति बहुत संवेदनशील होते है।
  • इन वनों और घास के मैदानों को कृषि और हिल स्टेशनों के निर्माण के लिए काटा जा रहा है।
  • पश्चिमी घाट में बॉक्साइट, जिप्सम, ग्रेनाइट और अन्य खनिजों जैसे विभिन्न कारणों से खनन गतिविधियों के बढ़ने के कारण भी इनका विनाश हो रहा है।
  • बांध और जलविद्युत परियोजनाएं, इनके समक्ष एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह बड़े पैमाने पर वनों को जलमग्न कर देता है।

Western-Ghats

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