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निकेल निष्कर्षण: नई हाइड्रोजन प्लाज्मा विधि की खोज

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3 : समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग।)

संदर्भ

जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने एक नई, टिकाऊ और कार्बन-मुक्त विधि विकसित की है, जो हाइड्रोजन प्लाज्मा का उपयोग करके कम ग्रेड के अयस्कों से निकेल निकालती है। 

निकेल (Ni) के बारे में

  • यह एक चमकीली, सफेद रंग की धातु है, जिसका आवर्त सारणी में परमाणु क्रमांक 28 है।
  • यह अपने कठोर, संक्षारण-प्रतिरोधी और उच्च गलनांक गुणों के कारण यह विभिन्न औद्योगिक और तकनीकी अनुप्रयोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रकृति में उपस्थिति

निकेल मुख्य रूप से दो प्रकार के अयस्कों में पाया जाता है:

  • सल्फाइड अयस्क: ये भूमिगत गहरे खानों में पाए जाते हैं और इनका प्रसंस्करण आसान होता है। ये कनाडा, रूस और ऑस्ट्रेलिया में प्रचुर हैं।
  • लेटराइट अयस्क: ये सतही चट्टानों में गर्म और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये इंडोनेशिया, फिलीपींस और न्यू कैलेडोनिया में प्रचुर हैं।

महत्त्व

  • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी : निकेल का उपयोग लिथियम-आयन बैटरी में होता है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण के लिए आवश्यक हैं।
  • औद्योगिक अनुप्रयोग : यह स्टेनलेस स्टील और अन्य मिश्र धातुओं के उत्पादन में महत्वपूर्ण है, जो निर्माण, ऑटोमोबाइल और एयरोस्पेस उद्योगों में उपयोग होती हैं।
  • आर्थिक योगदान : निकेल की बढ़ती मांग वैश्विक और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देती है, विशेष रूप से उन देशों में जहां इसके भंडार प्रचुर हैं।
  • सामरिक महत्व : रक्षा और अंतरिक्ष उद्योगों में निकेल-आधारित मिश्र धातुओं का उपयोग इसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है।

निकेल निष्कर्षण और सतत विकास के आयाम

  • निकेल एक महत्वपूर्ण धातु है, जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में उपयोग होती है।
  • वर्ष 2040 तक इसकी मांग 60 लाख टन प्रति वर्ष से अधिक होने की उम्मीद है।
  • हालांकि, निकेल उत्पादन प्रक्रिया पर्यावरण के लिए हानिकारक है, क्योंकि एक टन निकेल उत्पादन से 20 टन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है।

निष्कर्षण की पुरानी प्रक्रिया

  • पारंपरिक निकेल निष्कर्षण एक बहु-चरणीय, ऊर्जा-गहन प्रक्रिया है, जिसमें कैल्सिनेशन, स्मेल्टिंग, रिडक्शन और रिफाइनिंग शामिल हैं।
  • यह प्रक्रिया कार्बन पर निर्भर करती है, जिसके परिणामस्वरूप भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है।

नई हाइड्रोजन प्लाज्मा विधि के बारे में

  • इस विधि में, शोधकर्ताओं ने कार्बन की जगह हाइड्रोजन को रिड्यूसिंग एजेंट के रूप में और ऊर्जा स्रोत के रूप में बिजली का उपयोग किया है।
  • यह प्रक्रिया एक इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस में हाइड्रोजन प्लाज्मा का उपयोग करती है, जो पदार्थ की अत्यधिक गर्म और प्रतिक्रियाशील चौथी अवस्था (प्लाज्मा) में होता है।
  • इस विधि के प्रमुख लाभ:
    • कार्बन-मुक्त प्रक्रिया: हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया से केवल पानी निकलता है, न कि कार्बन डाइऑक्साइड।
    • ऊर्जा दक्षता: यह पारंपरिक विधि की तुलना में 18% तक अधिक ऊर्जा-कुशल है।
    • कम उत्सर्जन: यह प्रत्यक्ष कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 84% तक कम कर सकती है।
    • तेज प्रक्रिया: हाइड्रोजन प्लाज्मा की उच्च प्रतिक्रियाशीलता के कारण यह प्रक्रिया तेज और ऊष्मागतिकी रूप से बेहतर है।

भारत के संदर्भ में महत्त्व

  • भारत में निकेल के भंडार, विशेष रूप से ओडिशा के सुकिंदा क्षेत्र में लेटराइट अयस्क के रूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। 
  • ये अयस्क 0.4-0.9% निकेल के साथ क्रोमाइट खानों के ऊपरी हिस्सों में पाए जाते हैं, लेकिन इनका उपयोग कम होता है क्योंकि पारंपरिक विधियां उच्च-ग्रेड अयस्कों पर निर्भर करती हैं।
  • भारत में निकेल के भंडार सीमित हैं, जिसके कारण उच्च-ग्रेड निकेल का आयात किया जाता है।
  • नई हाइड्रोजन प्लाज्मा विधि इन कम-ग्रेड अयस्कों से निकेल निकालने में सक्षम है, जो भारत के लिए निम्नलिखित लाभ प्रदान करती है:
    • आर्थिक विकास : यह तकनीक भारत के औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास को गति दे सकती है।
    • आत्मनिर्भरता : यह भारत को उच्च-ग्रेड अयस्कों के आयात पर निर्भरता कम करने में मदद करेगी।
    • जलवायु लक्ष्य : यह भारत के वर्ष 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करेगी।
    • निर्यात संभावनाएं : टिकाऊ निकेल उत्पादन भारत को वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
    • SDG समर्थन : यह विधि सतत विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG 7 (स्वच्छ ऊर्जा) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) को समर्थन देती है।

चुनौतियां

  • उच्च निवेश : इस तकनीक को औद्योगिक स्तर पर लागू करने के लिए उच्च प्रारंभिक निवेश और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता होगी।
  • तकनीकी बाधाएं : ऊष्मागतिकी, रासायनिक प्रतिक्रियाएं और ऑक्सीजन की आपूर्ति जैसे तकनीकी पहलुओं पर और अध्ययन की आवश्यकता है।
  • कौशल विकास : इस तकनीक को लागू करने के लिए विशेषज्ञता और प्रशिक्षित कार्यबल की जरूरत होगी।

निष्कर्ष

निकेल निष्कर्षण की नई तकनीक हरित क्रांति के हिस्से के रूप में उभर सकती है। यह तकनीक न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करती है, बल्कि इससे निकेल जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के अधिक सतत निष्कर्षण की संभावना भी बढ़ सकती है।

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