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निसार: नासा-इसरो संयुक्त उपग्रह रडार

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष)

संदर्भ

नासा एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मिलकर निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) नामक एक अत्याधुनिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह तैयार किया है जिसका प्रक्षेपण 30 जुलाई, 2025 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से होने वाला है।

निसार (NISAR) के बारे में

  • प्रक्षेपण तिथि एवं स्थान : 30 जुलाई, 2025 को शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जी.एस.एल.वी.-एफ16 रॉकेट द्वारा 
  • कक्षा : 743 किमी. ऊंचाई पर सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (Sun-Synchronous Orbit)
    • इसमें उपग्रह हर दिन एक ही स्थान पर एक ही समय पर पहुंचता है।
  • वजन : 2,392 किग्रा.
  • मिशन अवधि : 3 वर्ष (नासा के लिए) और 5 वर्ष (इसरो के लिए)
  • विशेषता : दुनिया का पहला दोहरी आवृत्ति (ड्यूल-फ्रीक्वेंसी) रडार उपग्रह, जो एल-बैंड (1.25 GHz) और एस-बैंड (3.2 GHz) रडार का उपयोग करता है।
  • डाटा उपलब्धता : सभी वैज्ञानिक डाटा मुफ्त में उपलब्ध होंगे, आपातकालीन स्थिति में कुछ घंटों में और सामान्य स्थिति में 1-2 दिन में।

उद्देश्य

  • पृथ्वी की सतह की निगरानी : हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की सतह का नक्शा तैयार करना
  • प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अध्ययन : ग्लेशियरों का पिंघलना, समुद्री बर्फ का हटना, भूकंप, ज्वालामुखी, तूफान एवं भूस्खलन जैसे प्राकृतिक खतरे
  • जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, जैसे- समुद्र स्तर में वृद्धि और कार्बन भंडारण में बदलाव का अध्ययन
  • कृषि और संसाधन प्रबंधन : मृदा की नमी, सतह के जल स्तर और फसल वृद्धि की जानकारी प्रदान करना
  • आपदा प्रबंधन : भूकंप, सुनामी एवं ज्वालामुखी उद्गार जैसी आपदाओं के लिए त्वरित डाटा उपलब्ध कराना

विशेषताएँ

  • दोहरी रडार प्रणाली
    • एल-बैंड रडार : घने जंगलों एवं मोटी वनस्पति के माध्यम से सतह का अध्ययन, भू-भाग की स्थलाकृति मापने में उपयोगी।
    • एस-बैंड रडार : मृदा की नमी और सतह की बनावट का उच्च-रिजॉल्यूशन विश्लेषण, विशेष रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों में।
  • स्वीप एस.ए.आर. तकनीक : 242 किमी. चौड़ा स्वाथ और उच्च-रिजॉल्यूशन छवियां प्रदान करता है।
  • 12 मीटर का एंटीना : सोने की परत वाला जालीदार एंटीना रडार सिग्नल को केंद्रित करता है।
  • सेंटीमीटर-स्तर की सटीकता : पृथ्वी की सतह पर एक सेंटीमीटर जितने छोटे बदलावों को मापने की क्षमता।
  • मौसम से स्वतंत्र : बादल, धुंध एवं अंधेरे में भी डाटा संग्रहण, दिन-रात कार्यक्षमता।

नासा-इसरो सहयोग

  • सहयोग : वर्ष 2014 में हस्ताक्षरित समझौते के तहत नासा एवं इसरो का पहला रडार-आधारित पृथ्वी अवलोकन सहयोग।
  • नासा का योगदान :
    • एल-बैंड रडार, जी.पी.एस., ठोस-अवस्था रिकॉर्डर, पेलोड डाटा सिस्टम एवं 12-मीटर एंटीना
  • इसरो का योगदान :
    • एस-बैंड रडार, उपग्रह का मुख्य ढांचा (बस), जी.एस.एल.वी. मार्क II रॉकेट और प्रक्षेपण सेवाएँ
  • डाटा साझाकरण : डाटा भारत एवं अमेरिका के डाटा सर्वर पर मुफ्त उपलब्ध होगा, जो वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ावा देगा।

बजट

  • कुल लागत : 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 12,500 करोड़ रुपए), जो इसे दुनिया का सबसे महंगा पृथ्वी अवलोकन उपग्रह बनाता है।
  • इसरो का हिस्सा : 788 करोड़ रुपए (लगभग 93 मिलियन डॉलर)
  • नासा का हिस्सा : 1,118 मिलियन डॉलर
  • प्रक्षेपण लागत : इसरो द्वारा वहन की जाएगी।

महत्व

  • वैज्ञानिक प्रगति : पृथ्वी की सतह, जलवायु एवं पारिस्थितिकी तंत्र के अध्ययन में क्रांतिकारी बदलाव
  • आपदा प्रबंधन : भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी एवं भूस्खलन जैसी आपदाओं के लिए त्वरित व सटीक डाटा
  • कृषि सुधार : मृदा की नमी एवं फसल वृद्धि की जानकारी से किसानों को बेहतर सिंचाई और उत्पादकता में मदद
  • पर्यावरण संरक्षण : जंगलों, ग्लेशियरों व समुद्र तटों की निगरानी, कार्बन भंडारण और जैव विविधता संरक्षण में सहायता
  • वैश्विक सहयोग : भारत एवं अमेरिका के बीच अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग का प्रतीक और भविष्य के संयुक्त मिशनों का मार्ग प्रशस्त करने में सहायक 
  • भारत की स्थिति : इसरो की तकनीकी क्षमता को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने में सहायक
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