(प्रारंभिक परीक्षा: संविधान, शासन, और समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय में बिहार में विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision: SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई हो रही है जिसमें मतदान के अधिकार (Right to Vote) की कानूनी स्थिति पर बहस छिड़ी है।
भारत में प्राप्त विभिन्न प्रकार के अधिकार
- प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights)
- ये वे अधिकार हैं जो जन्म से मिलते हैं और जिन्हें कोई छीन नहीं सकता है, जैसे- जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार।
- भारतीय अदालतें इन्हें सीधे लागू नहीं करतीं हैं किंतु इन्हें मौलिक अधिकारों में शामिल किया जा सकता है।
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
- संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35) में दिए गए हैं, जैसे- समानता, स्वतंत्रता एवं धर्म की स्वतंत्रता।
- ये अधिकार बहुत शक्तिशाली हैं; सरकार इनके खिलाफ कानून नहीं बना सकती है।
- इन्हें सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 32 के तहत सीधे लागू किया जा सकता है।
- संवैधानिक अधिकार (Constitutional Rights)
- संविधान में भाग III से बाहर दिए गए हैं, जैसे- संपत्ति का अधिकार, मुक्त व्यापार एवं बिना कानूनी प्राधिकार के कर न लगाना।
- ये अधिकार केंद्र एवं राज्य सरकारों के कानूनों के जरिए लागू होते हैं।
- इन्हें उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 या संबंधित कानूनों के तहत लागू किया जा सकता है।
- वैधानिक अधिकार (Statutory/Legal Rights)
- संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए सामान्य कानूनों से मिलते हैं।
- उदाहरण: मनरेगा के तहत कार्य का अधिकार, वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों के अधिकार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत रियायती अनाज का अधिकार।
- इन्हें संबंधित कानूनों के तहत लागू किया जाता है।
मतदान का अधिकार : एक अवलोकन
- अनुच्छेद 326
- हर 18 वर्ष से अधिक आयु का नागरिक, जो संविधान या कानून के तहत अयोग्य नहीं है, मतदाता के रूप में पंजीकरण का हकदार है।
- इसमें किसी भी तरह का भेदभाव (जैसे- धर्म, जाति, लिंग) नहीं किया जा सकता है।
- संबंधित कानून
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RP Act, 1950)
- धारा 16 : गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है।
- धारा 19 : मतदाता की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए और वह निर्वाचन क्षेत्र में ‘सामान्य रूप से निवासी’ होना चाहिए।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP Act, 1951)
- धारा 62 : मतदाता सूची में शामिल व्यक्ति को मतदान का अधिकार है, बशर्ते वह अयोग्य न हो या जेल में न हो।
- अयोग्यता के आधार
- गैर-नागरिकता, मानसिक अस्थिरता या आपराधिक सजा के कारण मतदान से वंचित किया जा सकता है।
न्यायपालिका के प्रमुख निर्णय
- एन.पी. पोन्नुस्वामी केस (1952) : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार वैधानिक (Statutory) है, न कि मौलिक या सामान्य कानून का अधिकार।
- ज्योति बसु केस (1982) : न्यायालय ने दोहराया कि मतदान का अधिकार केवल वैधानिक है और इस पर कानूनी सीमाएँ लागू होती हैं।
- PUCL केस (2003) : जस्टिस पी.वी. रेड्डी ने कहा कि मतदान का अधिकार भले ही मौलिक न हो किंतु संवैधानिक अधिकार है।
- कुलदीप नायर केस (2006) : सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने फिर कहा कि मतदान का अधिकार केवल वैधानिक है।
- राज बाला केस (2015) : PUCL केस के आधार पर न्यायालय ने इसे संवैधानिक अधिकार माना।
- अनूप बरनवाल केस (2023) : बहुमत ने कुलदीप नायर केस का समर्थन किया और कहा कि मतदान का अधिकार वैधानिक है।
- जस्टिस अजय रस्तोगी ने असहमति में कहा कि मतदान का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की आजादी) का हिस्सा है और संविधान की मूल संरचना (Free and Fair Elections) से जुड़ा है।
- वर्तमान स्थिति : सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले के अनुसार, मतदान का अधिकार वैधानिक है किंतु भविष्य में इसे संवैधानिक दर्जा दिया जा सकता है।
अन्य महत्वपूर्ण पहलू
- महत्व
- मतदान का अधिकार लोकतंत्र की नींव है क्योंकि यह नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का मौका देता है।
- यह अभिव्यक्ति की आजादी (अनुच्छेद 19) और संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
- चुनौतियाँ
- मतदाता सूची में त्रुटियाँ : बिहार SIR मामले में गलत नाम हटाने या जोड़ने की शिकायतें।
- जागरूकता की कमी : कई नागरिक अपने मतदान के अधिकार को पूरी तरह समझते नहीं हैं।
- अयोग्यता के दुरुपयोग : कुछ लोग राजनीतिक कारणों से मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं।
- वैधानिक सीमाएँ
- जेल में बंद लोग या गैर-नागरिक मतदान नहीं कर सकते हैं।
- कुछ मामलों में (जैसे- मानसिक अस्थिरता) यह अधिकार छीना जा सकता है।
भविष्य की संभावनाएँ
- संवैधानिक दर्जा : सर्वोच्च न्यायालय भविष्य में मतदान के अधिकार को संवैधानिक अधिकार घोषित कर सकता है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र का हिस्सा है।
- मतदाता सूची सुधार : पारदर्शी एवं निष्पक्ष प्रक्रिया से मतदाता सूची को अपडेट करना, जैसे- SIR जैसे अभियानों में सुधार
- जागरूकता अभियान : लोगों को उनके मतदान के अधिकार और इसके महत्व के बारे में शिक्षित करना
- तकनीकी उपयोग : मतदाता पंजीकरण एवं मतदान प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए ऑनलाइन व बायोमेट्रिक तकनीक का उपयोग
- कानूनी सुधार : RP Act, 1950 एवं 1951 में संशोधन करके मतदान के अधिकार को अधिक मजबूत करना
- निष्पक्ष चुनाव : चुनाव आयोग को और अधिक शक्तियाँ देकर स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना
निष्कर्ष
मतदान का अधिकार भारत के लोकतंत्र का आधार है। हालाँकि, वर्तमान में इसे वैधानिक अधिकार माना जाता है किंतु यह संविधान के अनुच्छेद 326 और अभिव्यक्ति की आजादी से गहराई से जुड़ा है। बिहार SIR मामला और सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई इसकी कानूनी स्थिति को और स्पष्ट कर सकती है। भविष्य में मतदान के अधिकार को संवैधानिक दर्जा देने और मतदाता सूची में सुधार करने से भारत का लोकतंत्र और मजबूत होगा।