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पोषण और संज्ञानात्मक विकास

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ

बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिन यानी जन्म से लेकर लगभग तीन वर्ष की आयु तक का समय उसकी भविष्य की शारीरिक, मानसिक व सामाजिक क्षमता तय करने वाला होता है। इस समय मस्तिष्क का तीव्र विकास होता है और पोषण इसकी नींव तय करता है। यदि इस दौरान पोषण और संज्ञानात्मक गतिविधियों की कमी हुई, तो बच्चे की शैक्षणिक, सामाजिक और मानसिक क्षमता पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।

हालिया मुद्दा 

  • भारत में अभी भी कुपोषण एवं पोषण असंतुलन बड़ी चुनौती है। जन्म के समय 30% बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं।
  • जीवन के पहले तीन वर्षों में पोषण की कमी स्थायी विकासात्मक नुकसान कर सकती है।
  • अकेले पोषण कार्यक्रमों का प्रभाव सीमित पाया गया; पोषण एवं संज्ञानात्मक प्रेरणा (Stimulation) दोनों का संयोजन अधिक प्रभावी है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • जन्म से 2 वर्ष तक मस्तिष्क का लगभग 80% विकास हो जाता है।
  • इस दौरान न्यूरॉन्स के बीच संबंध (सिनेप्स) सबसे तीव्र गति से बनते हैं।
  • न्यूरोप्लास्टिसिटी के कारण पहले तीन वर्षों में सीखने की क्षमता अधिक स्थायी होती है।
  • भारत में स्टंटिंग दर (आयु के अनुपात में लंबाई में कमी) 2021 में 35% से अधिक है।

पोषण और संज्ञान का संबंध

  • मस्तिष्क एवं संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास सीधे पोषण पर निर्भर करता है।
  • वेल्लोर, तमिलनाडु के अध्ययन में पाया गया कि लौह खनिज की कमी से 5 वर्ष की आयु में भाषा व संज्ञानात्मक प्रदर्शन प्रभावित होता है।
  • पोषण की कमी से बच्चे में ध्यान, स्मृति, सोचने व समस्या समाधान की क्षमता प्रभावित होती है।
  • पोषण और संज्ञानात्मक प्रेरणा का संयोजन:
    • भाषा विकास में 20-30% सुधार
    • स्मृति एवं सीखने की क्षमता में 25% तक सुधार
  • पर्याप्त पोषण और मानसिक प्रेरणा बच्चों को सामाजिक, भावनात्मक एवं व्यवहारिक रूप से भी सक्षम बनाते हैं।
  • प्रोटीन, आयरन, जिंक, विटामिन B12 और ओमेगा-3 फैटी एसिड मस्तिष्क विकास के लिए आवश्यक हैं।
  • समय पर टीकाकरण, स्वच्छ जल एवं स्वच्छता भी संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं।

भारत में बाल-देखभाल कार्यक्रम

  1. एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS):
    • 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्र और कर्मी
    • पोषण एवं प्रारंभिक शिक्षा दोनों पर फोकस
  2. ‘पोषण भी पढ़ाई भी’ योजना:
    • पोषण और संज्ञानात्मक विकास का संयोजन
  3. नवचेतना– प्रारंभिक बाल संवेदी ढांचा:
    • जन्म से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए 140 आयु-विशिष्ट गतिविधियाँ
    • माता-पिता एवं आंगनवाड़ी कर्मियों के लिए सरल, खेल-आधारित गतिविधियाँ
    • घर पर अनुपालन योग्य, सीखने को मजेदार बनाने वाला

भारत में कमी के क्षेत्र

  • कवरेज में कमी: सभी लक्षित बच्चों तक सेवा न पहुँच पाना 
  • शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्र: सेवाओं की गुणवत्ता मने कमी 
  • तकनीकी उपयोग की कमी: डाटा-संचालित निगरानी एवं मूल्यांकन सीमित
  • क्रेच सुविधाओं का अभाव: कामकाजी माताओं के लिए बाधा

आवश्यक सुधार

  • तकनीकी सुधार (जैसे- मोबाइल ऐप्स, डाटा संग्रहण) से सेवाओं की प्रभावशीलता बढ़ सकती है।
  • महिलाओं के सशक्तिकरण और रोजगार में भागीदारी के लिए क्रेच एवं देखभाल सुविधाएँ जरूरी हैं।
  • प्रारंभिक वर्षों में निवेश से मानव पूंजी में दीर्घकालिक सुधार होगा, जो आर्थिक विकास को भी प्रभावित करेगा।

चिंताएँ

  • यदि पोषण एवं संज्ञानात्मक विकास पर ध्यान नहीं दिया गया तो शैक्षणिक व मानसिक प्रदर्शन प्रभावित होगा।
  • तेज़ी से बढ़ती तकनीकी प्रगति और स्वचालन के कारण अल्प-कुशल श्रमिकों के रोजगार कम होंगे।
  • सामाजिक असमानता और गरीबी के कारण सभी बच्चों को समान अवसर नहीं मिल रहे।

प्रमुख सरकारी पहल 

  • ICDS और ‘पोषण भी पढ़ाई भी’
  • नवचेतना ढांचा– घर पर खेल-आधारित संज्ञानात्मक गतिविधियाँ
  • आंगनवाड़ी और क्रेच सेवाओं का विस्तार
  • तकनीक आधारित निगरानी– मोबाइल ऐप, डाटा संग्रह, प्रदर्शन मूल्यांकन
  • सक्रिय माताओं व समुदाय को प्रशिक्षण देना– पोषण एवं संज्ञानात्मक विकास पर जागरूकता

आगे की राह

  • पोषण और संज्ञानात्मक प्रेरणा को समान महत्व देना
  • तकनीकी नवाचार और डेटा-संचालित मूल्यांकन से सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाना
  • घर पर भी प्रारंभिक प्रेरणा सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता एवं समुदाय को सशक्त बनाना
  • महिलाओं को कार्यबल में शामिल करना और क्रेच/देखभाल सुविधाओं के विभिन्न मॉडल अपनाना
  • निवेश का प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए नीति एवं कार्यक्रमों का सतत मूल्यांकन करना

निष्कर्ष

‘हम वही हैं जो हम खाते हैं और सोचते हैं’। प्रारंभिक वर्षों में खोया हुआ विकास कभी पूरी तरह वापस नहीं आता है। इसलिए बाल पोषण एवं संज्ञानात्मक विकास में निवेश केवल स्वास्थ्य के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक व आर्थिक प्रगति के लिए भी आवश्यक है।

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