(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध) |
संदर्भ
कभी एक ही राष्ट्र का हिस्सा रहे पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के बीच संबंध 1971 के युद्ध के बाद से जटिल रहे हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद, दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार देखा गया है। अगस्त 2025 में पाकिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार की ढाका यात्रा इन संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
मोहम्मद इशाक डार की बांग्लादेश यात्रा के बारे में
- 24 अगस्त, 2025 को पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री मोहम्मद इशाक डार ने ढाका में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस और विदेश मामलों के सलाहकार मो. तौहीद हुसैन से मुलाकात की।
- यह यात्रा दोनों देशों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनयिक सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित थी।
- डार ने बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के अमीर शफीकुर रहमान और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की नेता खालिदा जिया से भी मुलाकात की, जो संबंधों को सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर मजबूत करने का संकेत देता है।
- यह यात्रा वर्ष 2012 में हिना रब्बानी खार की यात्रा के बाद 13 वर्षों में किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा थी, जो दोनों देशों के बीच सहयोग के नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।
यात्रा के परिणाम
- छह समझौता ज्ञापन (MoUs): व्यापार, राजनयिक प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मीडिया सहयोग पर समझौते, जैसे:
- व्यापार संयुक्त कार्य समूह की स्थापना
- पाकिस्तान और बांग्लादेश विदेश सेवा अकादमियों के बीच सहयोग
- बांग्लादेश संवाद संगठन (BSS) और पाकिस्तान प्रेस कॉर्पोरेशन (APPC) के बीच समाचार आदान-प्रदान
- ISSI (इस्लामाबाद) और BIISS (ढाका) के बीच रणनीतिक अध्ययन सहयोग
- 2025-2028 के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम
- राजनयिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीजा-मुक्त यात्रा
- पाकिस्तान-बांग्लादेश ज्ञान गलियारा: अगले पाँच वर्षों में 500 बांग्लादेशी छात्रों को पाकिस्तान में छात्रवृत्ति और 100 सिविल सेवकों को प्रशिक्षण।
- वाणिज्यिक कदम: 50,000 टन चावल का आयात, कराची-ढाका उड़ानें शुरू करने की मंजूरी और बैंकिंग चैनल विस्तार।
- क्षेत्रीय सहयोग: डार ने SAARC के पुनर्जनन की आवश्यकता पर बल दिया, जिसे बांग्लादेश ने समर्थन दिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- पाकिस्तान और बांग्लादेश वर्ष 1947 में एक ही राष्ट्र (पाकिस्तान) का हिस्सा थे तथा 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद अलग हो गए।
- वर्ष 1971 के युद्ध में भारत ने बांग्लादेश का समर्थन किया और इसने दोनों देशों के बीच गहरी खाई पैदा की।
- पाकिस्तानी सेना पर नरसंहार और युद्ध अपराधों का आरोप लगा, जिसमें लाखों लोग मारे गए व हजारों महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ।
- वर्ष 1974 का त्रिपक्षीय समझौता (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश) ने कुछ मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की किंतु बांग्लादेश में कई लोग इसे अपर्याप्त मानते हैं।
- शेख हसीना की सरकार (2009-2024) ने 1971 के युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमे चलाए, जिसने संबंध अधिक तनावपूर्ण हो गए।
1971 के अनसुलझे मुद्दे
- जवाबदेही एवं माफी : बांग्लादेश द्वारा पाकिस्तान से औपचारिक माफी और युद्ध अपराधों की जवाबदेही की मांग की जाती है। डार ने 1974 समझौते और मुशर्रफ के 2002 के पश्चाताप का हवाला दिया किंतु बांग्लादेश इसे अपर्याप्त मानता है। तौहीद हुसैन ने कहा हमें जवाबदेही और मुआवजा चाहिए।
- वित्तीय दावे: बांग्लादेश ने 1971 के युद्ध के आर्थिक नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की, जो अब तक अनसुलझा है।
- सामाजिक घाव: बांग्लादेश में 1971 की यादें अभी भी गहरी हैं, जिसके कारण जनता में पाकिस्तान के प्रति अविश्वास बना हुआ है।

हाल के घटनाक्रम
- शेख हसीना का पतन: अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार के पतन और उनके भारत में शरण लेने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की पहल की। हसीना की भारत-समर्थक नीतियों ने पहले संबंधों को सीमित किया था।
- आर्थिक सहयोग: वर्ष 2024 में समुद्री व्यापार शुरू, फरवरी 2025 में सरकारी व्यापार विस्तार और जुलाई 2025 में आंतरिक सुरक्षा सहयोग समझौता।
- राजनयिक आदान-प्रदान: 15 साल बाद पहली बार अप्रैल 2025 में पाकिस्तान की विदेश सचिव अमना बलोच ने ढाका की यात्रा की। जुलाई 2025 में पाकिस्तानी गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने यात्रा की।
- चीन की भूमिका: जून 2025 में कुनमिंग में बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन की त्रिपक्षीय बैठक क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा दे रही है।
भारत का दृष्टिकोण
वर्ष 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला भारत इस नए सौहार्द को सतर्कता से देख रहा है। शेख हसीना की सरकार के दौरान बांग्लादेश भारत का नजदीकी रणनीतिक और आर्थिक साझेदार था। हसीना के पतन और अंतरिम सरकार की पाकिस्तान-चीन निकटता ने भारत की चिंताएँ बढ़ाई हैं। बांग्लादेश ने हसीना की प्रत्यर्पण की मांग की, जिसे भारत ने अस्वीकार कर दिया, जिससे द्विपक्षीय तनाव बढ़ा। डार की यात्रा और SAARC के पुनर्जनन की बात भारत के लिए एक संकेत है कि क्षेत्रीय गतिशीलता बदल रही है।
भारत के लिए चुनौतियाँ
- रणनीतिक नुकसान : हसीना की सरकार के पतन से भारत का बांग्लादेश में प्रभाव कम हुआ, जबकि पाकिस्तान एवं चीन की सक्रियता बढ़ी है।
- SAARC का पुनर्जनन: पाकिस्तान एवं बांग्लादेश द्वारा SAARC को पुनर्जनन की मांग भारत के लिए चुनौती है क्योंकि भारत ने वर्ष 2016 के बाद से SAARC को सीमित किया है।
- चीन की भूमिका: चीन की मध्यस्थता और बांग्लादेश में निवेश भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कम कर सकता है।
- आर्थिक प्रतिस्पर्धा: पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के बढ़ते व्यापार (जैसे- चावल आयात, वस्त्र सहयोग) भारत के निर्यात बाजार को प्रभावित कर सकते हैं।
आगे की राह: भारत का दृष्टिकोण
- भारत को बांग्लादेश के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों का लाभ उठाकर क्षेत्रीय प्रभाव को पुनः स्थापित करना होगा।
- बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ उच्च-स्तरीय राजनयिक संवाद शुरू करना चाहिए ताकि विश्वास बहाल हो और प्रत्यर्पण जैसे मुद्दों पर तनाव कम हो।
- भारत को आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए बांग्लादेश को व्यापार रियायतें, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश और शैक्षिक आदान-प्रदान की पेशकश करनी चाहिए।
- SAARC के पुनर्जनन में सक्रिय भूमिका निभाकर भारत क्षेत्रीय सहयोग को अपने पक्ष में आकार दे सकता है। साथ ही, चीन की बढ़ती भूमिका का मुकाबला करने के लिए भारत को बांग्लादेश में रणनीतिक परियोजनाओं (जैसे- बंदरगाह और ऊर्जा क्षेत्र) में निवेश बढ़ाना होगा।
- बांग्लादेश के साथ सांस्कृतिक और जन-जन के संबंधों को मजबूत करने के लिए साहित्य, कला एवं खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- भारत को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए त्रिपक्षीय (भारत-बांग्लादेश-म्यांमार) सहयोग पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि चीन व पाकिस्तान की संयुक्त रणनीति का संतुलन बनाया जा सके।