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जल संरक्षण में समुदायों की भागीदारी

 “यदि जल है, तो कल है — और यदि समाज जागरूक है, तो जल सुरक्षित है।”

भारत में जल संकट आज एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, उद्योगीकरण और जलवायु-परिवर्तन ने जल-संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डाला है।
ऐसे में केवल सरकारी योजनाएँ पर्याप्त नहीं — स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी ही स्थायी समाधान है।

भारत में जल संकट की स्थिति

संकेतक

स्थिति

प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता (1951)

5177 घन मीटर/वर्ष

प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता (2025)

~1400 घन मीटर/वर्ष

भारत की जनसंख्या का हिस्सा

विश्व का 18%

जल संसाधनों का हिस्सा

विश्व का केवल 4%

भूजल दोहन

विश्व में सर्वाधिक (~25%)

  • भारत “जल तनाव (Water Stress)” की स्थिति में है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, 700 से अधिक ब्लॉक “गंभीर या अति-शोषित” श्रेणी में हैं।

समुदाय आधारित जल संरक्षण क्यों आवश्यक ?

(1) स्थानीय ज्ञान और परंपराएँ

  • ग्रामीण भारत में सदियों से वर्षा-जल संचयन, तालाब, बावड़ी, जोहड़, आहर-पइन जैसी प्रणालियाँ थीं — जो सामुदायिक सहयोग से चलती थीं।

(2) स्वामित्व की भावना

  • जब लोग स्वयं योजना का हिस्सा बनते हैं, तो जल स्रोतों की रक्षा और रख-रखाव के प्रति उत्तरदायित्व बढ़ता है।

(3) विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन

  • स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने से योजनाएँ स्थानीय भूगोल, संस्कृति और जरूरतों के अनुकूल बनती हैं।

(4) सरकारी योजनाओं की सीमाएँ

  • केवल टॉप-डाउन योजनाएँ (ऊपर से नीचे) अक्सर स्थानीय स्तर पर असफल रहती हैं यदि समुदाय की सहमति और भागीदारी न हो।

समुदाय आधारित जल संरक्षण के प्रमुख मॉडल (Models of Community Participation)

(1) राजस्थान का जोहड़ मॉडल – राजेन्द्र सिंह (Waterman of India)

  • अलवर जिले में गाँव-गाँव जोहड़ (छोटे तालाब) बनाकर सूखे क्षेत्र को पुनर्जीवित किया गया।
  • नदी अर्जुनी और रूपारेल फिर से बहने लगीं।
  • यह “जन-सहभागिता से जल पुनर्जीवन” का आदर्श उदाहरण है।

 (2) महाराष्ट्र का “पानी पंचायत” मॉडल

  • 1980 के दशक में शुरू हुआ।
  • सिद्धांत: “समान जल-वितरण और सामूहिक निर्णय”
  • किसान समूहों ने जल वितरण और सिंचाई में सामाजिक समानता का उदाहरण प्रस्तुत किया।

 (3) गुजरात का “Sardar Patel Participatory Water Conservation Program”

  • चेक-डैम निर्माण में किसानों, NGOs और सरकार की साझेदारी।
  • हजारों गाँवों में भूजल स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि।

 (4) हिमालयी राज्य – चाल-खाल और नौला प्रणाली

  • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में समुदाय स्वयं जलस्रोतों की सफाई, वृक्षारोपण और पुनर्भरण कार्य करते हैं।

 (5) दक्षिण भारत – Kudimaramathu (तमिलनाडु)

  • प्राचीन परंपरा जिसमें ग्रामीण स्वयं अपने जलाशयों की मरम्मत करते थे; सरकार अब इसे पुनर्जीवित कर रही है।

नीति और संस्थागत प्रयास (Policy & Institutional Initiatives)

नीति / योजना

समुदाय से जुड़ा प्रावधान

जल शक्ति अभियान (2019)

“जन आंदोलन से जन भागीदारी” पर बल; कैच द रेन (Catch the Rain) अभियान।

अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana)

समुदाय आधारित भूजल प्रबंधन; पंचायतों को योजना, कार्य और मॉनिटरिंग में शामिल किया गया।

मनरेगा (MGNREGA)

जल संरक्षण संरचनाएँ जैसे तालाब, नाला-बांध, चेक-डैम आदि — श्रमदान और जनभागीदारी से।

जल जीवन मिशन (JJM)

प्रत्येक ग्रामीण परिवार को पाइप जल कनेक्शन — ग्राम जल समितियाँ इसका संचालन करती हैं।

राष्ट्रीय जल नीति (2023 का मसौदा)

सामुदायिक और पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों के पुनर्जीवन पर बल।

समुदाय आधारित जल संरक्षण के लाभ (Benefits)

  1. जल संसाधनों का सतत उपयोगसामूहिक नियंत्रण से अत्यधिक दोहन पर अंकुश लगता है।
  2. पर्यावरणीय पुनर्जीवनजल स्रोतों के पुनर्भरण से वनस्पति, जीव और भूमि उत्पादकता बढ़ती है।
  3. सामाजिक एकता और सशक्तिकरणपंचायत, महिला समूह, किसान समूह — सामूहिक निर्णय-प्रक्रिया मजबूत होती है।
  4. आर्थिक लाभजल-सुलभता से कृषि उत्पादन और ग्रामीण आय दोनों बढ़ते हैं।
  5. जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में मददवर्षा-जल संचयन और सूखे की तैयारी में स्थानीय समुदायों की भूमिका निर्णायक।

प्रमुख चुनौतियाँ (Challenges)

समस्या

विवरण

सामाजिक असमानता

जल संसाधनों पर प्रभुत्व सम्पन्न वर्गों का नियंत्रण; गरीब वर्ग की भागीदारी सीमित।

तकनीकी ज्ञान की कमी

कई बार पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों का उचित संयोजन नहीं हो पाता।

स्थायी वित्तीय संसाधन का अभाव

परियोजनाएँ आरंभ तो होती हैं पर दीर्घकालीन रख-रखाव में कमी।

सरकारी सहयोग की अनियमितता

योजनाओं की निरंतरता व नीति-समन्वय का अभाव।

शहरी क्षेत्रों में भागीदारी का अभाव

नगर स्तर पर नागरिकों की जल-संरक्षण में भूमिका अभी सीमित है।

आगे की दिशा (Way Forward)

  1. ‘जल पंचायतें’ और ‘जल उपयोगकर्ता संघ’ (Water User Associations) का विस्तार — स्थानीय निर्णयों को मान्यता दी जाए।
  2. महिला भागीदारी सुनिश्चित करना जल प्रबंधन में महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावी हितधारक हैं।
  3. तकनीक और पारंपरिक ज्ञान का एकीकरणGIS, सेंसर, रेन-वॉटर हार्वेस्टिंग के साथ स्थानीय पद्धतियाँ।
  4. शिक्षा और जनजागरूकता अभियानस्कूल स्तर से जल साक्षरता (Water Literacy)।
  5. प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन (Incentive Mechanism) ग्रामों को जल संरक्षण में उपलब्धि पर पुरस्कार।
  6. नागरिक-आधारित शहरी पहलेंसोसाइटी/अपार्टमेंट स्तर पर ग्रे-वाटर रीसायकल और रेनवॉटर सिस्टम अनिवार्य।
  7. नदियों की पुनर्जीवन परियोजनाएँ जैसे “Rejuvenation of River Ganga” में ग्राम स्तर की निगरानी समिति।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • “जल का संरक्षण सरकार नहीं, समाज की साझेदारी से संभव है।”
  • भारत के प्राचीन दर्शन में “नदी-देवता”, “तालाब-देवता” जैसे रूपों ने जल को पवित्र माना।
    आज उसी भावना को आधुनिक नीति-निर्माण से जोड़ने की आवश्यकता है।
  • समुदाय-आधारित जल प्रबंधन = स्थानीय ज्ञान + सामाजिक सहयोग + वैज्ञानिक नीति
  • यदि प्रत्येक गाँव, वार्ड और नगर अपने स्तर पर जल-संरक्षण की जिम्मेदारी ले, तो भारत 2047 तक “जल आत्मनिर्भर राष्ट्र” (Water Secure India) बन सकता है।
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